ऋषभ शेट्टी की कांतारा ने दर्शकों को एक वर्ग को अन्दर तक झकझोर दिया था। मैं भी ऐसे ही अभिभूत दर्शकों में एक था। मनोरंजन या मारधाड़ के बजाय तुलनात्मक धर्म का छात्र होने के नाते इस फिल्म की धार्मिक अंतर्धारा ने मुझे ज्यादा प्रभावित किया।

हिन्दी सिनेमा के आदिकाल में धार्मिक कथानक वाली फिल्मों की प्रचुर संख्या थी जिनकी प्रेरणा प्राचीय भारतीय साहित्य से मिलती थी। आज यह स्थिति है कि कुछ लोग हिन्दी सिनेमा को ‘एंटी-हिन्दू’ सिनेमा कहने लगे हैं। ऐसे में हिन्दू धर्म दर्शन को अकुंठ भाव से बड़े पर्दे पर प्रस्तुत करके ऋषभ शेट्टी ने अपना समकालीनों के बीच एक नई लकीर खींची।

सिनेमा में रिलीजन का चित्रण अक्सर चमत्कार और अत्याचार के दो पाटों के बीच पिसता रहता है। धर्म के मर्म को समझने वाली फिल्म बहुत कम बनती हैं। कांतारा ऐसी एक फिल्म थी जो आदिम प्रकृति-देव पूजक आस्थावानों की आस्था को पूरी संवेदनशीलता और सहानुभूति से प्रस्तुत करती है। इस फिल्म की कहानी के साथ ही तकनीकी पक्ष भी उतने ही सबल थे। फिल्म ने ऋषभ शेट्टी को रातोंरात नया फिल्मी सितारा बना दिया।

जिसने भी मूल कांतारा देखी होगी उसे इस फिल्म के सीक्वल का इन्तजार रहा होगा। यह अलग बात है कि ऋषभ शेट्टी ने फिल्म का सीक्वल न बनाकर प्रीक्वल बनाया यानी पिछली कहानी से भी पहले की कहानी कांतारा चैप्टर 1 के रूप में सुनायी।

तकनीकी रूप से कांतारा चैप्टर 1 भी पिछली फिल्म की तरह उत्कृष्ट है, पटकथा लेखन को छोड़कर। फिल्म में ऋषभ शेट्टी समेत सभी कलाकारों का अभिनय, शेट्टी का निर्देशन, फाइट-सिक्वेंस इत्यादि उत्कृष्ट हैं। फिल्म का पार्श्व संगीत अच्छा है मगर इस प्रीक्वल के संगीत को सुनकर दर्शक उस तरह अभिभूत नहीं होंगे जिस तरह कांतारा को देख-सुनकर हुए थे। अब दर्शक कांतारा चैप्टर 1 के संगीत की तुलना कांतारा के संगीत से करेंगे जो निस्संदेह ज्यादा बेहतर प्रतीत होगा।

मेरी नजर में फिल्म का सबसे कमजोर पहलू इसकी पटकथा है। फिल्म में तीन समानांतर कथानक हैं मगर अन्त में केवल दो प्लॉट क्लाइमेक्स में मिलते हैं। यह कुछ वैसा ही है जैसे हिमालय से तीन नदियाँ निकलीं मगर हिन्द महासागर तक केवल दो ही पहुँचें।

फिल्म का मध्य हिस्सा राजकुमार कुलशेखर पर केन्द्रित है। गुलशन देवैया ने राजकुमार कुलशेखर की भूमिका के संग न्याय किया है मगर उनकी मृत्य के बाद उनसे जुड़े सीक्वेंस मिसफिट लगने लगते हैं। ऐसा लगता है कि कुलशेखर से जुड़ा प्लाट फिल्म को लम्बा करने के लिए और अन्त में एक सरप्राइज एलीमेंट डालने के लिए डेवलप किया गया था। अगर ऐसा भी था तो यह प्लॉट उबाऊ होने की हद तक लम्बा हो गया है।

कांतारा चैप्टर 1 के दूसरे हाफ में पता चलता है कि कहानी का मूल टकराव कुलशेखर से जुड़ा नहीं है। फिल्म का दूसरा हाफ पहले हाफ से ज्यादा प्रभावशाली बन पड़ा है। फिल्म का क्लाइमेक्स जबरदस्त है। मगर कांतारा चैप्टर 1 एक आध्यात्मिक सिने यात्रा के बजाय बढ़िया मनोरंजक फिल्म जैसी लगती है। अखिल भारतीय स्तर पर सफल दो फिल्में बनाने के बाद ऋषभ शेट्टी के रूप में भारतीय सिनेमा को एक बड़ा सर्जक मिल चुका है मगर चैप्टर 1 को देखकर थोड़ी चिंता होती है। कांतारा की ऑर्गैनिक स्टोरी टेलिंग की जमकर तारीफ हुई थी। वीएफएक्स, फाइट सीक्वेंस, सरप्राइज एलीमेंट जैसे औजारों के इस्तेमाल से मनोरंजक फिल्म बना लेना ऋषभ की पहचान नहीं हो तो बेहतर है। उसके लिए एस. एस. राजामौली, प्रशान्त नील और रोहिट शेट्टी जैसे निर्देशक पहले से मौजूद हैं।

कांतारा चैप्टर 1 का बजट 125 करोड़ से बताया जा रहा है। कांतारा का बजट करीब 16 करोड़ रुपये था। ज्यादा पैसा फिल्म की आत्मा पर शायद भारी पड़ा है। उम्मीद है कि कांतारा चैप्टर 2 में ऋषभ शेट्टी इसका ध्यान रखेंगे।

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