निर्देशक दीपक शिवदासानी या तो ये तय नहीं कर पाए या उन्होंने जानबूझकर ऐसा किया-पता नहीं। यानी ये कि इस फिल्म में ग्लैमर की दुनिया में बसे सड़ांध को दिखाएं या इसे जासूसी किस्म की बनाएं। नतीजतन फिल्म दोनों को थोड़ा थोड़ा दिखाती है और इसी कारण आखिर में इतनी लचर हो जाती है दर्शक को लगता है कि जल्द खत्म हो तो घर जाएं। वैसे ये 2004 में बनी ‘जूली’ फिल्म का सिक्वेल है। वो फिल्म भी ज्यादा नहीं चली थी। फिल्म में जूली (राय लक्ष्मी) नाम की एक फिल्म स्टार है। अचानक एक दिन वह अपने जन्म दिन के अवसर पर सार्वजनिक रूप से अपने अतीत के बारे में कुछ खुलासा करती है। वो ये बताती है कि बचपन में उसके सौतेले पिता ने उस पर बुरी नजर डाली। इस खुलासे के बाद समाज और ग्लैमर की दुनिया में चटपटी कहानियां बनने लगती हैं। पर उसी दिन जूली जब एक गहने की दुकान में जाती है तो वहां कुछ अपराधी किस्म के लोग लूटपाट के लिए हमला करते हैं और जूली को मार देते हैं। पुलिस तहकीकात शुरू करती है तो मालूम होता है कि गहनों की दुकान पर लूटपाट तो एक बहाना था और असल मकसद तो जूली की हत्या थी। लेकिन जूली की हत्या क्यों की गई? कौन है हत्यारा?
पुलिस की छानबीन में कई नए तथ्य खुलते हैं और जिसमें अधिकांश इस बात से संबंधित हैं कि जूली को फिल्मी दुनिया में पैर जमाने के लिए तरह-तरह के समझौते करने पड़े और फिल्म निर्माताओं से लेकर अभिनेताओं और अंडरवर्ल्ड के अपराधियों द्वारा उसका यौन शोषण होता है। ये भी शक होता है कि क्या जूली की हत्या उसकी वास्तविक पिता ने कराया था जिसने उसकी मां को गर्भवती हालत मे ही छोड़ दिया था?
पर जब आखिर में पता चलता है कि जूली की हत्या किसने कराई तो कहानी दूसरी दिशा में मुड़ जाती है। और इस मोड़ से कहानी के अनुसलुझे तार नहीं सुलझे। हालांकि निर्देशक ने कोशिश की है कि ईसाई क्रास का लॉकेट कहानी में लाकर एक गुत्थी पैदा करें, लेकिन वैसा नहीं हो पाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि लॉकेट के पीछे की तरफ एक चिप छुपाया गया है और उस चिप में अस्थाना नाम के एक दलाल के परिवार की रहस्यमय गाथा है।
फिल्म की नायिका राय लक्ष्मी दक्षिण भारतीय फिल्मों की एक जानी मानी अभिनेत्री है। वह ग्लैमरस है और जिस तरह की वेशभूषा में उसे दिखाया गया है उसमें वो और अधिक ग्लैमरस दिखती है। फिल्म में कई इंटीमेट दृश्य भी हैं जो इसे ‘वयस्क के लिए’ बना देते हैं। ‘खरामा खरामा’ और ‘माला सिना’ बोलवाले गाने भी ग्लैमर में तड़का लगाते हैं। ‘माला सिना’ बोल वाले गाने के हिट होने की गुंजाइश। पर इस सबके बावजूद राय लक्ष्मी अपने अभियन को असरदार नहीं बना बाती। काफी समय तक तो उनको अस्पताल में दिखाया गया है और वहां उनका चेहरा भी नहीं दिखता। आदित्य श्रीवास्तव ने पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है।
वे सीईडी के चर्चित अभिनेता रहे हैं। मोबाइल में फोन आने पर जिस अंदाज में वे उसे देखते हैं उसमें एक स्टाइल है। इसके अलावा कोई और बात उनके पक्ष में नहीं कही जा सकती। पंकज त्रिपाठी भी अस्थाना नाम के ब्रोकर की अच्छी भूमिका निभाई है। रवि किशन दक्षिण भारतीय फिल्म अभिनेता में जमते हैं पर उनकी भूमिका छोटी है। फिल्म मध्यांतर के पहले ही पटरी से उतरने लगती है और आखिर में पूरी तरह उतर जाती है। क्या लाला भाई के नाम के अंडरवर्ल्ड माफिया का किरदार दाउद की शख्सियत पर रखा गया है? ऐसा लगता है। लेकिन इस किरदार की कोई जरूरत नहीं थी।