निर्देशक- नितिन कक्कड़
कलाकार- सैफ अली खान, अलाया फर्नीचरवाला, तब्बू, कुबरा सैत, चंकी पांडे।
कुछ लोग मिजाज से दिलफेंक होते हैं। शादी और बालबच्चों को जीवन का झमेला मानते हैं। एक दम बिंदास जीना चाहते हैं। खाओ, पिओ और ऐश करो। ऐसा ही एक शख्स है, जसविंदर सिंह उर्फ जैज ( सैफ अली खान)। जैज प्रौढ़ उम्र में पहुंच चुका है लेकिन न तो उसे परिवार की फिक्र है न समाज की। बस क्लब की जिंदगी उसे प्रिय है, जिसमें लड़कियां हैं और ढेर सारी मस्तियां। पीना, पिलाना। उसके लिए जिंदगी में मौजा ही मौजा है। और तभी एक दिन उसकी तरफ एक लड़की आती है जो बेहद आकर्षक दीखती है।
नाम है टिया (अलाया फर्नीचरवाला)। क्या वह इस लड़की से भी फ्लर्ट करेगा? लेकिन ये क्या? ये लड़की तो अपने उस पिता को खोजते खोजते आई है जिसके बारे में उसे निश्चित तौर पर कुछ पता नहीं है कि वो कौन है। क्या जैज ही उसका पिता है? क्या अब जैज अपनी पारिवारिक जिंदगी में वो भूमिका निभाएगा जिससे वो भागता और कतराता रहा है? कहानी में ट्विस्ट ये है कि टिया भी गर्भवती है। यानी पेच में पेच है। इसलिए कॉमेडी का डोज भरपूर है।
‘जवानी जानेमन’ हंसाती है। खासकर मध्यांतर तक। उसके बाद खुद थकने लगती है। आखिर तक आते-आते कुछ कुछ पकाऊ सी हो जाती है। फिल्म का मूल आइडिया आजकल की जिंदगी के उस पहलू को दिखाता है जिसमें मस्ती को जीवन का सब कुछ मान लिया जाता है लेकिन फिर हकीकत जब सामने आने लगती हैं तो दिमाग का दही बनने लगता है। फिल्म का संगीत पक्ष कमजोर है लेकिन संवाद चुस्त है।
फिल्म में सैफ अली खान अपने लिए फिल्मों में नई तरह की भूमिकाएं तलाशते दिखते हैं, जैसा कि ‘ताना जी अनसंग द वारियर’ में उन्होंने किया था। खलनायक की भूमिका निभाकर। इस फिल्म में भी उनकी भूमिका कुछ खास अंदाज लिए हुए है। फिल्म की हीरोइन आलिया फर्नीचरवाला पूजा बेदी की बेटी हैं। उनमें एक ताजगी है। और स्क्रीन प्रजेंस भी। तब्बू का रोल बड़ा नहीं है इसलिए उनको कुछ खास करने का मौका नहीं मिला है।
