अशोक बंसल
ब्रज की अति प्राचीन चरकुला नृत्य को जर्मनी, रूस, जापान जैसे देशों में पहुंचाने वाले कलाकार मदन लाल शर्मा आज बेहद तंगहाली की जिंदगी जी रहे हैं। वे अपने गांव मुखराई में एक परचून की दुकान खोलकर बैठे हैं। करीब दो हजार की आबादी वाले गांव मुखराई को देश-विदेश में शोहरत दिलाने का श्रेय मदन लाल को ही जाता है। आज 70 साल के मदन लाल प्रदेश सरकार द्वारा कलाकारों को दी जाने वाली पेंशन के लिए जगह-जगह गुहार लगा रहे हैं। दरअसल मुखराई गांव में चरकुला नृत्य और मदनलाल एक-दूसरे के पर्याय के तौर पर जाने जाते हैं। किवदंती है कि मथुरा से करीब 25 किलोमीटर दूर गोवर्धन -राधाकुंड के पास मुखराई गांव कृष्ण की प्रेयसी राधा की ननिहाल है। रावल गांव में जब राधा का जन्म हुआ और यह खबर जैसे ही नानी के पास मुखराई गांव में आई तो वह खुशी से झूम उठीं और बैलगाड़ी के पहिए पर जलते दीपक के साथ इसे अपने घूंघट वाले सर पर रख पूरे गांव में नाचीं। बस, तभी हुआ चरकुला नृत्य का जन्म।
मदन लाल रसिया गायक हैं। सन 1985 में उन्होंने कुछ महिलाओं के साथ मिलकर अपनी टीम बनाई और इस नृत्य को मंचीय रूप देने की शुरुआत की। गांव के बाहर मंच पर जिन महिलाओं ने इस नृत्य को करने की हिम्मत दिखाई उनमें अशर्फी देवी व लक्ष्मी देवी के नाम प्रमुख हैं। इस नृत्य में शारीरिक बल और कौशल की बेहद जरूरत होती है। यही कारण है कि जैसे ही इस नृत्य को मुखराई गांव की चार दीवारी को पार कर देश के विभिन्न शहरों में दिखाया गया-एक ठोस पहचान मिली। 1991 में जर्मनी और रूस में भारत महोत्सव हुए जहां मदन लाल को चरकुला की टीम के साथ भेजा गया। इन देशों में इन्हें भरपूर सम्मान मिला। लेकिन जीवन के सायं काल में उन्हें जीवनयापन के लिए परचून की दुकान का ही सहारा मिल पा रहा है।