भरतनाट्यम नृत्यांगना प्रतिभा प्रहलाद ने करीब 12 वर्ष पूर्व दिल्ली इंटरनेशनल आर्ट फेस्टीवल का आयोजन शुरू किया था। वे विदेशों में होने वाले कई उत्सवों से काफी प्रभावित थीं। उन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने इस उत्सव की परिकल्पना की। इसमें देश-विदेश के कलाकार शिरकत करते हैं। समारोह का समापन शिल्प केंद्र में हुआ। बीते रविवार को समापन समारोह में कथक नृत्यांगना विधा लाल व साथी कलाकारों ने नृत्य रचना अग्नि के रंग पेश की। ओडिशी नृत्यांगना सुतपा तालुकदार ने नृत्य रचना पंचतत्व पेश की। समारोह की अंतिम प्रस्तुति ध्रुपद गायन से हुआ। इसे गुंदेचा बंधुओं ने प्रस्तुत किया। जयपुर घराने की प्रतिनिधि कलाकार विधा लाल और साथी नृत्यांगनाओं ने नृत्य का आरंभ अग्निदेव की स्तुति से हुआ। यह अग्नि गायत्री मंत्र पर आधारित थी। इसके अगले अंश में अग्नि के रंग को पेश किया। नृत्य रचना में अग्नि के चार रंग-केसरिया, काले, लाल और पीले रंग को अलग-अलग लयों में पिरोया गया था। अग्नि के केसरिया रंग को ऋग्वेद के अग्निसूक्त के जरिए दर्शाया गया। इस अंश में नृत्यांगनाओं ने विलंबित लय में कुछ टुकड़े व तिहाइयों को पेश किया।

काले रंग का प्रतीक राख को माना गया है। अग्नि प्रज्वलित होने के बाद अंत में राख में परिवर्तित होती है, ऐसा ही मानव शरीर है, जो जीवन के अंत में माटी में परिवर्तित हो जाता है। इसी भाव को नृत्यांगना ने इस अंश में पेश किया। सात और चार के छंद में पिरोए गए, अग्नि के 104 नामों को भी इसमें उच्चारित किया गया था। जिसे नृत्यांगनाओं के दल ने नृत्य में ढाला। नृत्यांगना विधा लाल ने अगले अंश में अग्नि के लाल रंग को दर्शाया। इसके लिए कबीर दास की रचना विरह जलती मैं फिरूं का चयन किया गया था। द्रुत लय में तराना पेश किया। इसमें पीले रंग के भाव को दर्शाने का प्रयास किया गया। कथक की तिहाइयों, परणों और टुकड़ों में गूंथी गई, यह नृत्य रचना मोहक थी।

ओडिशी और समकालीन नृत्य शैली में पिरोई गई, अगली प्रस्तुति पंचतत्व थी। इसकी परिकल्पना सुतपा तालुकदार ने की थी। प्रकृति और पुरुष, आदि और अनंत व सांख्य दर्शन पर केंद्रित प्रस्तुति में दो तत्व पृथ्वी और जल को ही निरूपित किया गया। क्षिति को निरूपित करने के वास्ते रचना त्रैलोक्य पूजित वसुंधरा का प्रयोग किया। वहीं जल को दर्शाने के लिए सुश्यामला शस्यपूर्णा व नमस्ते सहसा्रारधार गजराजवाहन रचना का चयन किया गया। कलाकारों के समूह ने अपने हस्तकों, मुद्राओं, मुखौटों के जरिए भावों को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया। इस प्रस्तुति का संगीत मनोरम था। लेकिन, नृत्य रचना की अपूर्ण प्रस्तुति से पूर्णता का आभास नहीं हो पाया।