कुछ रहस्य लंबे समय तक रहस्य बने रहते हैं। मुंबई के एक उपनगर सातांक्रुज में स्थित सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के लॉकर रूम में तीन मई, 1994 की सुबह साढ़े 11 बजे भी एक रहस्य पैदा हुआ था। बैंक लॉकर रूम में सांताक्रुज पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर खोपड़े और उनके कुछ सहायक, गायिका आशा भोसले अपने वकील रवींद्र पई के साथ, चार-पांच रिश्तेदारों के साथ उनकी बेटी वर्षा, बैंक मैनेजर और दिवंगत आरडी बर्मन के सेक्रेटरी भरत आशर उपस्थित थे। सभी की निगाहें लॉकर नंबर एसबीडी पर लगी थीं, जिसे चाभी नंबर 1035 से खोला जाना था।
दरअसल यह स्थिति आरडी के निधन के बाद उनके एक बैंक लॉकर से बनी थी। आरडी की पत्नी आशा भोसले का मानना था कि उनके पति के इस लॉकर में कुछ जमीनों के कागजात, बहुमूल्य गहने, खानदानी हीरे की अंगूठी आदि कई चीजों के होने की संभावना है। मगर उन्हें इस लॉकर पर दावा करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। पहले तो उन्हें इस लॉकर की चाभी नहीं मिली। बैंक ने उन्हें इस तथ्य से भी अवगत कराया कि आरडी बर्मन के जिंदा रहने से अब तक यह लॉकर खुला नहीं।
बावजूद इसके संदेह आरडी बर्मन के सेक्रेटरी भरत आशर पर जा रहा था। आरडी बर्मन के निधन के बाद आशा भोसले ने इस लॉकर पर अपना दावा किया। आरडी बर्मन ने इसका नामिनी अपने सेक्रेटरी आशर को बनाया था। आशर ने इस मामले में अनभिज्ञता जाहिर की।
मामला पुलिस के पास पहुंचा, तो पुलिस ने लॉकर सील करवा दिया। आशा भोसले ने अदालत की मदद ली। अदालत के निर्देश के मुताबिक 3 मई, 1994 को लॉकर का ताला उपरोक्त सभी व्यक्तियों की उपस्थिति में तोड़ा गया।
जब लॉकर का ताला टूटा तो जो कुछ लॉकर में था उसे देखकर लोगों को यकीन नहीं हो रहा था। लॉकर में दस्तावेज या गहने नहीं बल्कि पांच रुपए का एक नोट रखा हुआ था। लॉकर रूम में उपस्थित सभी लोगों के दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल घूम रहा था। क्या कोई व्यक्ति मात्र अपने पांच रुपए के एक नोट को सुरक्षित रखने के लिए किसी बैंक का लॉकर किराए पर लेगा और बदले में सैकड़ों रुपए सालाना भाड़ा चुकाएगा?
मगर इस सवाल का जवाब न आशा भोसले के पास था न भरत आशर के पास। इस घटना को 25 साल गुजर गए हैं मगर सवाल जस-का-तस है कि आरडी बर्मन ने एक पांच रुपए के नोट को रखने के लिए बैंक का लॉकर किराए से क्यों लिया था।

