किस्सा 1973-74 का है। मनमोहन देसाई राजेश खन्ना को लेकर एक फिल्म ‘रोटी’ शुरू करने जा रहे थे और किसी ढंग के लेखक की तलाश में थे। राज कपूर को लेकर 1960 की ‘छलिया’ से फिल्में बना रहे देसाई चार साल पहले राजेश खन्ना को लेकर हिट फिल्म ‘सच्चा झूठा’ बना चुके थे। एक दिन देसाई के मित्र निर्माता नाडियाडवाला एक 35-36 साल के आदमी को लेकर आए और कहा कि यह लेखक है और इसे मौका दो। देसाई को जब पता चला कि लेखक का नाम कादर खान है, तो उन्होंने मजाक में कहा कि यार तुम किस मिया भाई को उठा लाए। ये तो शेरो शायरी, कव्वाली के लिए ठीक हैं। ये क्या डायलॉग लिखेंगे।
नाडियाडवाला की सिफारिश पर आखिर मनमोहन देसाई ने कहा कि ठीक है मेरी एक फिल्म बन रही है ‘रोटी’। उसका एक सीन देता हंू। अगर संवाद मुझे पसंद नहीं आए तो फाड़ के फेंक दूंगा। बात खत्म। देसाई की बात कादर खान के दिल को लग गई, खासकर मिया भाई वाली। कादर खान सिविल इंजीनियर थे और कॉलेज में ड्रामों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, लेखक और निर्देशक के सारे पुरस्कार खुद जीतते रहे थे। उन्होंने देसाई से कहा कि अगर मेरा लिखा हुआ पसंद आया तो आप क्या करेंगे? देसाई ने कहा कि अगर तुम्हारे लिखे हुए संवाद पसंद आए तो तुम्हें सिर पर उठा कर नाचूंगा।
कादर खान ने रात भर में सीन के संवाद लिख डाले, जो ‘रोटी’ का क्लाइमैक्स था। अगले दिन देसाई के घर पहुंच गए। खान को देखकर बुदबुदाए कि मिया भाई को सीन समझ नहीं आया इसलिए वापस सीन सुनने आ गया। कादर खान को देसाई का उपेक्षा-भरा रवैया बुरा लगा। संयम रखते हुए उन्होंने देसाई को सीन संवाद के साथ सुनाया। देसाई ने पूरा सीन सुन कर कहा एक बार और सुनाओ। कादर खान ने दोबारा सीन सुनाया। देसाई ने कहा कि एक बार और सुनाओ। खान ने तीसरी बार सीन सुनाया। देसाई लपक कर घर के अंदर गए और वहां से टेप रेकॉर्डर उठा कर लाए और कहा कि फिर से सीन सुनाओ। खान ने सीन दोहरा दिया। सीन जब खत्म हुआ तो देसाई दीवानों का तरह एक कमरे में घुसे और छोटा सा टीवी लेकर आए और कहा पहली बार ऐसा सीन सुना है। ये इनाम लो। फिर हाथ से सोने का ब्रेसलेट निकाल कर दिया और कहा यह भी लो। साथ ही कादर खान को अपने कंधे पर उठा लिया और नाचने लगे, ‘यह है लेखक। ऐसे लिखा जाता है सीन। अब फिल्मजगत को मिला है असली लेखक। कई लोगों को फोन किया और कादर खान की सिफारिश की।
फिर कादर खान से पूछा कि संवाद लिखने का कितना पैसा लोगे। कादर खान ने कहा कि अभी मैंने ‘रफूचक्कर’ (ऋषि कपूर-नीतू सिंह) लिखी है जिसके लिए मुझे 21 हजार रुपए मिले हैं। देसाई ने हिकारत से कहा, ‘देसाई की फिल्म का लेखक 21 हजार… मैं एक लाख 21 हजार रुपए देता हूं।’ खान ने देसाई की ‘रोटी’, ‘अमर अकबर एंथोनी’, ‘परवरिश’, ‘सुहाग’, ‘देशप्रेमी’, ‘कुली’ और ‘गंगा जमना सरस्वती’ का लेखन किया। वह पहले लेखक थे जिन्होंने फिल्म निर्माताओं को टेप रेकॉर्डर पर अपनी आवाज में संवाद देने का सिलसिला शुरू किया था, जिसे खूब पसंद किया गया।

