तुर्की मूल के जर्मन फिल्मकार फतिह अकीन ( हैंम्बर्ग ) इस समय अनुराग कश्यप और उनकी पीढ़ी के कई भारतीय फिल्मकारों के रोल मॉडल हैं। ‘द एज आॅफ हेवन’ (2007) के लिए उन्हें कान में सर्वश्रेष्ठ पटकथा का पुरस्कार मिल चुका है । हालाकि ‘हेड आॅन’ (2004) से वे दुनिया भर में चर्चित हुए जब बर्लिन इंटरनेशनल फिल्मोत्सव में उसे बेस्ट फिल्म का गोल्डन बीयर मिला। अनुराग कश्यप की पहल पर वे अपनी कॉमेडी फिल्म ‘सोल किचन’ लेकर एनएफडीसी के फिल्म बाजार में गोवा आए थे। दस साल बाद कान के मुख्य प्रतियोगिता खंड में उनकी फिल्म ‘इन द फेड’ दिखाई गई जिसे काफी सराहा गया है। प्रीमीयर के साथ ही दुनिया भर में इस फिल्म के वितरण अधिकार बिक गए। यह फिल्म 23 नवंबर को रिलीज हो रही है।
यह आश्चर्यजनक है कि जब सारी दुनिया इस्लामी आतंक के दौर में जीने को मजबूर है तो फतिह अकीन 2017 में दस साल पुराने जर्मन नव नाजीवाद (2001-2007) को विषय बनाकर प्रतिशोध का सिनेमाई ड्रामा रच रहे हैं। उस दौर में हिटलर से प्रेरित ‘नेशनल सोशलिस्ट अंडरग्राउंड’ (एनएसयू) ने नस्ली हिंसा में जर्मनी में बड़े पैमाने पर गैर जर्मनों की हत्याएं की थी । 2013 में म्यूनिख में एनएसयू पर चर्चित मुकद्दमा भी चला था । ऐसे मामलों में जर्मन पुलिस अक्सर हत्यारों को सजा दिलाने के बजाय मारे गए लोगों पर ही ड्रग और जुए का आरोप लगाकर जांच को भरमा देती थी।
जर्मन गोरी महिला कात्जा सेकेर्सी (डियान क्रूगर) का सुखमय जीवन उस समय बरबाद हो जाता है, जब एक आतंकवादी बम विस्फोट में उसका तुर्की मूल का पति नूरी सेकेर्सी और बेटा रोक्को मारे जाते हैं। जर्मन पुलिस का मानना है कि यह हमला तुर्की या कुर्दिश माफिया द्वारा पैसों के लिए निजी झगड़े का नतीजा है। नूरी एक नामी ड्रग डीलर रहा है जो कात्जा से शादी के बाद सुधरकर तुर्की-कुर्दिश समुदाय को कानूनी सहायता देने का बिजनेस करता है। तभी पुलिस उस लड़की को पकड़ लेती है जिसने बम विस्फोट किया था। वह लड़की नव नाजीवादी समूह एनएसयू की सदस्य है। कोर्ट में गलत गवाही ,कात्जा के ड्रग टेस्ट की मांग और बहस को दांव-पेंच में उलझाकर अपराधी बरी हो जाते हैं। कात्जा एक बार आत्महत्या करने की कोशिश भी करती है लेकिन तभी वह खुद ही बदला लेने का मुश्किल निर्णय लेती है। वह आत्मघाती बम बनकर ग्रीस में हत्यारों का पीछा करती है और एक दिन खुद के साथ उन्हें भी बम से उड़ा देती है।
फतिह अकीन ने अपनी पिछली फिल्मों से अलग यहां अलग ड्रामा पेश किया है। घटनाओं को मार्मिक बनाने के लिए जोश होम्स के रॉक ग्रुप ‘क्वींस आॅफ द स्टोन एज’ के संगीत का प्रयोग किया है । फिल्म तीन अध्यायों में है जिसको नाम दिया गया है – परिवार, न्याय और समुद्र। फिल्म में सेक्स और प्रकट हिंसा दूर- दूर तक नहीं है जो फतिह अकीन का सिग्नेचर ट्यून है। डियान क्रूगर ने पति और बेटे को खो देने के दर्द को वैश्विक अभिव्यक्ति दी है। फिल्म के पहले दृश्य जेल में नूरी से शादी से लेकर आत्मघाती बम विस्फोट तक पटकथा बेहद कसी हुई है। कात्जा का मृत पति- बेटे के लिए खुद ही ताबूत खरीदने का हृदयविदारक दृश्य अंदर से हिला देनेवाला है। उसका बार-बार बच्चे का पुराना वीडियो देखना, दुख की इंतेहा से बचने के लिए ड्रग लेना और बम विस्फोट के बाद पूरी फिल्म में नीली आंखों का ठंडापन डराता है। कोर्ट के दृश्य दिलचस्प किंतु हास्यास्पद हैं। पर यह सवाल तो फिर भी बना हुआ है कि इस्लामी आतंकवाद के इस दौर में जर्मन नव नाजीवाद पर फिल्म बनाकर फतिह अकीन ने क्या कोई वैकल्पिक राजनीतिक वक्तव्य देने की कोशिश की है?
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