टीवी पर तमाम पौराणिक शोज आए, लेकिन रामानंद सागर की ‘रामायण’ को कोई टक्कर नहीं दे पाया। ‘रामायण’ टीवी शो 31 जुलाई 1988 से शुरू हुआ था जो कई सालों तक चला। लॉकडाउन के समय इसे टीवी पर दोबारा प्रसारित किया गया और दर्शकों ने इसे खूब पसंद भी किया। अब फिल्मों और ऐसे शोज में वीएफएक्स के जरिए तमाम स्टंट और सीन दिखाए जाते हैं। लेकिन उस पुराने जमाने में जब वीएफएक्स, कंप्यूटर आदि नहीं हुआ करते थे तो जुगाड़ से सीन क्रिएट किए जाते थे।

रामानंद की रामायण में भी कुछ ऐसे ही किया गया था। रामायण में दिखाए गए युद्ध में तीर, अस्त्रों से किए गए वार, बादलों की गड़गड़ाहट आदि के लिए खास तरीके के इफेक्ट्स तैयार किए जाते थे। जो उस वक्त काफी मुश्किल हुआ करते थे।

तकनीकी न होने के कारण उसके लिए आम चीजों का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे धुंआ दिखाने के लिए अगरबत्ती का इस्तेमाल होता था और बादलों के लिए रुई का।

रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने ईटाइम्स के साथ बातचीत में बताया कि उस जमाने में कोई स्पेशल कंप्यूटर नहीं हुआ करते थे। तब कैमरे की मदद से ही इफेक्ट्स तैयार किए जाते थे। बैक प्रोजेक्शन, मिनिएचर जैसे तकनीकों से काम चलाया जाता था। रात में शूट करने के लिए रुई से बादल बनाए जाते थे। रुई को शीशे पर चिपकाकर कैमरे में फिट किया करते थे।

रामायण में जिस सीन में शिव को हिमालय पर्वत पर नाचते दिखाया गया है, उसे स्लाइड्स का इस्तेमाल कर तैयार किया गया था। स्क्रीन पर बैकग्राउंड में प्लेनेट के छोटे-छोटे मिनिएचर रखे गए थे और इसके बाद स्लाइड प्रोजेक्टर में कई स्लाइड्स लगाए जाते थे। पहाड़ पर सीन फिल्माने के लिए 10 से 15 फीट के मिनिएचर इस्तेमाल होते थे।

SEG 2000 से शूट हुए थे तीर-धनुष वाले सीन

प्रेम ने बताया कि रामायण की शूटिंग के वक्त बाजार में एक मशीन लॉन्च हुई थी, जिसका नाम था SEG 2000। जिसकी मदद से धनुष और तीर वाले स्पेशल इफेक्ट्स तैयार किए जाते थे। उन्होंने बताया कि रामायण में तीर के आपस में टकराने वाले सीन में जो चिंगारी और आवाज निकलती थी, उसे क्रिएट करने के लिए शीशे की मैचिंग और मैकेनिकल इफेक्ट का इस्तेमाल किया जाता था। वहीं सुबह के कोहरे को दिखाने के लिए धूप बत्ती और अगरबत्ती के धुंए का इस्तेमाल होता था।