किस्सों की समीक्षा नहीं की जाती, उन्हें तो बस जिया जाता है…अच्छे हों बुरे हों, बस जिंदगी का हिस्सा मानकर उन्हें स्वीकार करना होता है…ऐसी ही है गुल्लक की चौथी किश्त भी जहां मिश्रा परिवार नए संघर्षों, नए किस्सों के साथ हाजिर हो चुका है… अब किस्से आपके कितने हमारे कितने हैं, आप और हम इन्हें कितना महसूस कर सकते हैं, चौथे सीजन की सफलता का पैमाना यही रहने वाला है…यहां इतना जरूर बता दें कि इस बार निर्देशक की कुर्सी श्रेयांश पांडे ने संभाल रखी है, जबकि पिछला सीजन पलाश वस्वानी ने डायरेक्ट किया था।

आम आदमी वाली कहानी

भोपाल का मिश्रा परिवार आज भी मिडिल क्लास वाली जिंदगी जी रहा है… हर छोटी बात पर बहस हो रही है, तिल का पहाड़ बन रहा है और किस्सों की गुल्लक भरती जा रही है…अमन मिश्रा (हर्ष मायर) नाबालिग से बालिग की ओर बढ़ चुके हैं, चेहरे पर दाढ़ी उगाने के टोटके आजमा रहे हैं और लव लेटर लिखना भी शुरू कर चुके हैं। अन्नू मिश्रा (वैभव राज गुप्ता) फॉर्मा कंपनी में नौकरी कर रहे हैं, खड़ूस बॉस से कैसे डील किया जाए, रोज इस सवाल का जवाब खोज रहे हैं। संतोष मिश्रा (जमील खान) एक खुले विचारों वाले पिता बनने की कोशिश कर रहे हैं, सिद्धांतों को ताक पर रखकर ‘सुविधा शुल्क’ देने का गुण भी सीख लिए हैं। इन बदलती आदतों को झेलने का जिम्मा आज भी शांति मिश्रा (गींताजलि कुलकर्णी) ने अपने कंधों पर ले रखा है, जिंदगी तो किचन से घर के आंगन तक सीमित चल रही है, लेकिन बच्चों की परिवरिश को लेकर एक चिंता की लकीर भी खिच चुकी है।

इस बार किस्सों की गुल्लक हमे सरकारी कागज का महत्व बताती है, घर में हुई चोरी और चेन स्नेचिंग के बीच का मतलब समझाती है,सालों से पड़े कबाड़ से जुड़ी यादों को ताजा करती है और पिता-पुत्र के रिश्तों में बीच में आने वाली ईगो को डीकोड करती है।

नो ड्रामा, सिर्फ आपके-हमारे किस्से

गुल्लक के मेकर्स की सबसे बड़ी खासियत ये है कि उन्होंने आम आदमी के जीवन को बखूबी समझने का काम किया है। कहने को मिडिल क्लास की लाइफ बताते हुए कई सीरीज-फिल्म आ चुकी हैं, लेकिन गुल्लक का अंदाज अलग है, यहां पर कहानी में तड़का लगाने के लिए जबरदस्ती वाला ड्रामा नहीं ठूसा जाता है, यहां पर बिना किसी फिल्टर के सिर्फ किस्सों की गुल्लख को फोड़ा जाता है। जैसा आपकी-हमारी लाइफ में होता है, उसे वैसा ही दिखाने का काम होता है।

पहली बार गुल्लक के मेकर्स ने की गलती

पिछले तीन सीजन में गुल्लक की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वो बिना बोर करे, एक तेज कहानी के साथ किस्सों को दर्शकों तक पहुंचाती रही। इस बार भी वैसा ही किया गया है, सिर्फ एक बदलाव है, कहानी बीच-बीच में थोड़ी धीमी दिखाई पड़ती है। किस्से तो पूरी तरह रिलेटेबल लगते हैं, लेकिन कहानी पर मेकर्स की पकड़ कुछ कमजोर हो जाती है। गुल्लक का चौथा एपिसोड ‘घर का कबाड़’ काफी फ्लैट और खिचा हुआ सा लगता है। कई बार ऐसा महसूस होता है कि अगर उस एपिसोड को हटा भी दिया जाता तो दर्शकों के व्यूइिंग एक्सपीरियंस में कोई फर्क नहीं आता।

बाकी कहानी में इस बार भी हंसी-मजाक के साथ इमोशन को जगह दी गई है, फिर एक बार मां-बेटे से ज्यादा पिता-पुत्र के रिश्तों पर फोकस दिखा है। अब तमाम एक्सपेरिमेंट इस सीरीज में किए गए हैं, किस्से अलग हैं, निर्देशक अलग हैं, लेकिन कलाकार वही पुराने वाले। इस सीरीज की सबसे बड़ी यूएसपी भी यही है, पुराने कलाकारों को रखना पुराने दर्शकों को भी खींचने का काम कर रहा है।

एक्टिंग की कोई जगह नहीं, सबकुछ रियल

एक बार फिर गुल्लक की स्टार कास्ट ने सबसे ज्यादा खुश किया है। पहले भी कह चुके हैं जहां एक्टिंग की कोई जगह नहीं है, वो गुल्लक का सेट है। इस सीरीज ने फिर साबित कर दिया है कि जितना नेचुरल रखा जाएगा, उतना मजा आएगा। किसी भी कलाकार को उठाकर देख लीजिए, कमी निकालने का कोई मौका नहीं मिलने वाला क्योंकि सभी हमारे बीच से ही निकले हुए हैं, हम में से ही एक हैं। जमील खान फिर पिता और पति के रोल में कमाल कर गए हैं, घर का मुखिया जैसा होना चाहिए- कभी कठोर, कभी नरम, कभी डाटता, कभी समझाता, सारे इमोशन वो साकार करते दिख रहे हैं।

उनका तगड़ा साथ गींताजलि कुलकर्णी ने दिया है। उनकी और जमाल की जोड़ी कोई फिल्मी हीरो-हीरोइन जैसी नहीं है, बल्कि जैसा कपल हम अपने घर में देखते हैं, वैसा ही अहसास सीरीज देख भी हो जाता है। ये परफैक्ट नहीं हैं, लेकिन उनकी गलतियां हमे अपनेपन का अहसास करवा रही हैं। अन्नू मिश्रा बने वैभव आपको बड़े भाई की याद पक्का दिलवाने वाले हैं, थोड़ा टांग खीचने वाले, थोड़ा ज्ञान पेलने वाले, थोड़ा ध्यान रखने वाले। छोटे भाई के रोल में हर्ष मायर को भी नजरअंदाज नहीं कर पाएंगे, उनका बोलने का अंदाज सबसे ज्यादा इंप्रेस करने वाला है। थोड़ी मासूमियत है, खुराफाती दिमाग है और बालिग होने का क्रेज साफ दिखाई दे रहा है। बिट्टू की मम्मी यानी की सुनीता राजभर तो पूरे सीजन में आपको अपनी उपस्थिति दर्ज करवाती रहेंगी।

बदला निर्देशक, बदले मिजाज, मजा कितना?

इस बार गुल्लक का निर्देशन श्रेयांश पांडे ने किया है। वैसे तो सबकुछ पुराने जैसा ही रखा गया है, लेकिन नए डायरेक्टर के आने से कुछ चीजें बदल गई हैं। शुरुआत में ही कहा था कि कहानी की पेस इस बार परेशान करने वाली है। इसके ऊपर जो डायलॉग्स रखे गए हैं, उनमें पंच की थोड़ी कमी भी दिख जाती है। गुल्लक का ये पहला ऐसा सीजन है जहां ये कहना पड़ेगा कि सारे जोक ठीक तरह से लैंड नहीं कर पाए हैं। इन कमियों को नजरअंदाज कर दिया जाए, तो इस बात का क्रेडिट दिया जा सकता है कि सीरीज ने अपनेपन का अहसास अभी भी कायम रखा है। इसके ऊपर मैसेज देने का काम भी एंड में कर दिया गया है।

कैमरे में कैद भोपाल की गलियां, सीरीज देखें?

सीरीज का एक पहलू जिस पर सभी की नजर नहीं जाती है, वो है सिनिमेटोग्राफी। गुल्लक देखते समय भोपाल की गलियों का अहसास बखूबी हो जाता है। पुलिस थाने वाले सीन, चाट खाने वाले सीन, सबकुछ सही मात्रा में सही तरीके से कैप्चर किया गया है। बीच-बीच में आने वाला बैकग्राउंड म्यूजिक भी शोर नहीं कहानी को आगे बढ़ाने वाला महसूस होता है। यानी कि किस्सो की गुल्लक जो इस बार फूटी है, उसमें हंसी निकली है, इमोशन निकले हैं, लेकिन थोड़ा खालीपन भी रह गया है।