इस बार भोली पंजाबन (ऋचा चड्ढा) जेल से कुछ ज्यादा ही खूंखार होकर लौटी है। वह चारों फुकरों लाली (मनजोत सिंह), चूचा (वरुण शर्मा), जफर (अली फजल) और हनी (पुलकित सम्राट) को अपने पास बुलाती है और कहती कि उसके लिए काम करें वरना उनको उड़वा देगी। भोली चारों फुकरों को एक रस्सी से बांधकर उनके पीछे पटाखे लगवा देती है। फुकरे डर जाते हैं और भोली का कहना मान लेते हैं। भोली को चूचा के सपनों पर भरोसा है कि वे उसके काम आएंगे और वो उनके बूते लॉटरी के नंबर पहले से जानकर मालामाल हो जाएगी। लेकिन ल़ॉटरी चलानेवाला नेता बाबूलाल भाटिया ज्यादा चालाक निकलता है और जिस नंबर की लॉटरी खुलने वाली है उसे बदलवा देता है। अब वे लोग, जिन्होंने लॉटरी में पैसे लगाए हैं, फुकरों के खून के प्यासे हो जाते हैं। फुकरे भागते हैं लेकिन भोली आखिरकार उनको पकड़वा ही लेती है।
भोली ने एक दूसरा धंधा शुरू कर दिया है। लोगों के गुर्दे निकलवा के बाजार में बेचने का। वह चारों फुकरों के गुर्दे निकलवाना चाहती है ताकि कुछ तो नुकसान की भरपाई हो सके। लेकिन इसी बीच चूचा के पास दूसरी शक्ति आ जाती है। वह छिपे हुए खजाने के बारे में बता सकता है। ऐसा खजाना जिसके ऊपर एक बाघ बैठा है। भोली अब चाहती है चूचा और उसके दूसरे मित्र उस खजाने को खोजें। सब मिलके खोजने निकलते हैं। क्या सचमुच में ऐसा कोई खजाना है? अगर है भी तो किस तरह का है? क्या भोली और फुकरे मिलकर यह खजाना खोज पाएंगे? या नेता बाबूलाल भाटिया की चाल में फिर फंस जाएंगे?
जब ‘फुकरे’ फिल्म आई थी तो उसमें खास तरह की ताजगी थी। कुछ नयापन लगा था। लेकिन ‘फुकरे रिटर्न्स’ में नयापन नहीं है। हालांकि हंसने के कई मौके इसमें हैं। लेकिन जब मूल ‘फुकरे’ से इसकी तुलना होगी तो पुरानी फिल्म ही बीस साबित होगी। सबसे बड़ी कमी तो इसमें यह है कि तीन फुकरों- लाली, हनी और जफर, की भूमिका दमदार नहीं है जैसी कि पहले थी। हां, चूचा की भूमिका में वरुण शर्मा कई दृश्यों में भारी पड़ गए हैं। ऐसा एक दृश्य तो वह है, जिसमें वह अपनी होनेवाली गर्लफ्रेंड से मिलने पर कोई इश्कविश्क की बात नहीं करता बल्कि उससे कहता है कि उसकी पीठ खुजाए क्योंकि उसे घमौरियां हो गई हैं। ऐसे शख्स के पास गर्लफ्रेंड क्या टिकेगी, सो वह चली जाती है। दूसरा वह दृश्य है, जिसमें जब बाबूलाल भाटिया उसे गरमागरम चिकन खिला रहा होता है तो उसकी प्लेट में पानी गिर जाता है। चूचा उस गीले चिकन को तौलिये से गर्म करने की कोशिश करता है। भोली पंजाबन के रूप में ऋचा चड्ढा भी पहले जैसी नहीं जमी हैं।
हालांकि उनके कुछ डायलाग अच्छे हैं। हां, बाबूलाल भाटिया के रूप में राजीव गुप्ता जरूर अच्छा है। पंडित (पंकज त्रिपाठी) की भूमिका का भी विस्तार हुआ है और पंडित जब बुर्के में भोली पंजाबन से मिलने जाते हैं तो वह दृश्य लाजबाब है। ‘फुकरे रिटर्न्स’ और बेहतर फिल्म हो सकती थी अगर इसमें कॉमनवेल्थ घोटाले वाले मसले को न जोड़ा गया होता। उसकी कोई जरूरत नहीं थी। वैसे भी वह मामला पुराना पड़ गया है और उसकी याद भी अब ज्यादातर लोगों को नहीं है। आखिर में फिल्म अचानक घिसटने लगती है। हां, आखिरी दृश्य में भोली पंजाबन ने चूचा का जो चुंबन लिया है वह फिल्म को थोड़ा सा हॉट जरूर कर देता है। अंत में एक बात और। फिल्म के अंत से एहसास होता है कि इस शृंखला की तीसरी फिल्म भी बनेगी और भोली पंजाबन राजनीति में दिखाई पड़ेगी। आखिर वह मुख्यमंत्री के साथ कार में बैठकर जाती है। यह दीगर बात है कि वह मुख्यमंत्री देखने में बड़ा बाबू लगता है, नेता नहीं।