निर्देशक- अली अब्बास जफर
कलाकार- सलमान खान, अनुष्का शर्मा, रणदीप हुड्डा, अमित साध
सलमान खान की एक और फिल्म रिलीज हुई जिसमें वे बालीवुड के अखाड़े में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर दबंग बनते नजर आते हैं। न सिर्फ बॉक्स आफिस पर बल्कि दर्शकों के दिल में अपनी जगह बनाने में भी। सुल्तान जितनी एक पहलवान की कहानी है उतनी ही सलमान खान की छवि निर्माण की कहानी है। इधर आ रही अपनी फिल्मों में सलमान ही कहानी होते हैं और ज्यादातर दृश्यों में छाए रहते हैं। ‘सुल्तान’ भी उसी तरह की फिल्म है। हालांकि थोड़ा सा फर्क है। इस फिल्म की नायिका अनुष्का शर्मा के पास भी करने के लिए कुछ है। वह सिर्फ दिखावे की चीज बनके नहीं रह गई हैं जैसी कि सलमान खान के फिल्मों की ज्यादातर नायिकाएं होती हैं। अनुष्का भी पहलवान बनीं हैं और उनका किरदार सशक्त है।
किस्से के नाम पर इतना है कि हरियाणा के गांव का रहनेवाला सुल्तान पहलवान (सलमान खान) अपनी गंवई जिंदगी जी रहा है। अपने तरीके से। मिक्स मार्शल आर्ट्स के व्यवसाय में लगे एक व्यावसायी आकाश ओबेराय (अमित साध) का अपना धंधा चौपट हो रहा है और उसका पिता उसे सलाह देता है कि अगर सुल्तान उसके साथ आ जाए तो उसका धंधा फिर से चमक सकता है। आकाश सुल्तान से मिलने उसके गांव जाता है पर सुल्तान मनमौजी है। वह ओबेराय के प्रस्ताव को शुरू में स्वीकार नहीं करता है और फिर सामने आती है सुल्तान की बीती जीवनी की कहानी जिसमें प्रेम है, खुशी है और गम भी। और फिर खुलती है सुल्तान और आरफा (अनुष्का शर्मा) की कहानी। आरफा भी एक पहलवान है और सुल्तान उसपर दीवाना हुआ करता था। ये प्रेम परवान चढ़ता है। शादी भी होती है, मन मुटाव भी होता है। और फिर कई तरह के उथल पुथल भी आते हैं। अब क्या सुल्तान अपनी बुलंदी फिर से पा सकेगा। फिर से अखाड़े में उतरेगा और सामने वाले को चित्त करेगा? हालांकि इन सवालों को पूछने का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि सलमान अगर सुल्तान बने हैं तो ये सब करेंगे ही करेंगे और कैसे करते हैं आगे की फिल्म यही दिखाती है।
फिल्म हरियाणवी अंदाज लिए हुए है। भाषा में भी, लहजे में भी। गाने भी दमदार हैं और वे भी हरियाणवी रंग लिए हुए हैं। ‘जग घूमेया थारे जैसा ना कोई’ और ‘बेबी को बेस पसंद’ है जैसे गाने पहले से ही हिट हो चुके हैं। अनुष्का शर्मा की ‘एनएच 10’ भी हरियाणा केंद्रित थी पर ‘सुल्तान’ पर हरियाणा की रंग ज्यादा गहरा है। वहां की जमीन और वहां के लोग इस फिल्म में ज्यादा वास्तविक लगते हैं। जमीन में ट्रैक्टर को खींचता सुल्तान एक हरियाणवी किसान के श्रम को भी सामने लाता है। पर फिल्म में विदेशी लोकेशन भी हैं। रणदीप हुड्डा भी वैसे हरियाणवी पृष्ठभूमि के हैं पर इस फिल्म में वे मिक्स मार्शल आर्ट्स के ट्रेनर बने हैं।
पिछले कुछ बरसों से इन दिनों सलमान खान की फिल्मों से ही ईद मुबारक होता रहा है। पिछले साल ‘बंजरगी भाईजान’ और इस बार ‘सुल्तान’। हालांकि ‘सुल्तान’ ईद के एक दिन पहले ही आ गई। खैर, ये सब तो तकनीकी बाते हैं। असल बात तो ये है कि सलमान का जादू बरकरार है। और दूसरी बड़ी बात यह है कि ‘सुल्तान’ भारतीय कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बना सकती है। वैसे कुश्ती और अखाड़ेबाजी भारतीय परंपरा में रची बसीं है। लेकिन हाल में आनेवाली लोकप्रिय स्पोर्ट्स फिल्मों में कुश्ती को वह जगह नहीं मिली जिसकी वो हकदार है। आखिर क्रिकेट और हॉकी के अलावा मुक्केबाजी पर फिल्में बनीं और लोकप्रिय हुईं। शायद अब ‘सुल्तान’ के बाद कुश्ती की बारी है। सिर्फ पुरुषों के कुश्ती की नहीं बल्कि महिला कुश्ती की भी। सीमित अर्थों में ही सही, ‘सुल्तान’ महिला कुश्ती के लिए एक शुभ संकेत है। हालांकि हरियाणा में महिला पहलवानों की अच्छी संख्या है लेकिन इस फिल्म के बाद शायद पूरे देश में महिलाओं का कुश्ती में आना और अखाड़े में उतरना बढ़े। इस दृष्टिकोण से ये अनुष्का शर्मा और महिला पहलवानों की भी फिल्म है। यानी इसमें एक जेंडर डिस्कोर्स भी है।