कौन बनेगा करोड़पति में पिछले दिनों पूर्व मरीन कमांडो प्रवीण तेवतिया हॉट सीट पर पहुंचे। प्रवीण तेवतिया की कहानी साहस की एक मिसाल है। उन्होंने मुंबई में हुए ताज हमले में आतंकियों की गोली खाते हुए 150 लोगों को बचाने में मदद की थी। प्रवीण ने अमिताभ बच्चन से अपनी साहस की गाथा को शेयर किया। उन्होंने कहा कि ‘मेरे अधिकारी ने मुझे बताया था कि मुंबई में आतंकी हमला हुआ है और तुम्हें चलना होगा। उन्होंने कहा कि मुंबई के टॉप अधिकारी शहीद हो चुके हैं और हमारी दो टीम पहले ही वहां पहुंच चुकी है। मैंने अपना हथियार लिया और बुलेट प्रूफ जैकेट उठाई। हम ताज पहुंचे। वहां ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज आ रही थी, जगह जगह खून फैला हुआ था, वहां हमे एक इंसान मिला जिनकी पत्नी और बच्चे छठे फ्लोर पर फंसे हुए थे, हमने उन्होंने कहा कि आप कहीं मत जाइए। हम लोगों को रेस्क्यू कर लाएंगे। वे ताज के मैनेजर थे और उन्होंने इस हमले में अपनी बीवी और बच्चों को खो दिया था। हमारी टीम में चार लोग थे। मैं पॉइन्ट मैन निर्धारित हुआ, पाइंटमैन यानि या तो मैं पहले गोली मारूंगा या पहले गोली खाऊंगा। पॉइन्ट मैन को फायरिंग के मामले में बेहद शार्प और तेज़ होनी जरूरी है।’

उन्होंने कहा कि ‘हम सेकेंड फ्लोर पर पहुंचे। सेकेंड फ्लोर के चैंबर में मैं आगे बढ़ता रहा, उस रूम में काफी अंधेरा था। मुझे आवाज़ सुनाई दी कि कोई फायरिंग के लिए अपनी गन लोड कर रहा है, चारों आतंकी उसी कमरे में थे।  मैं रोशनी से आया था और उस अंधेरे कमरे में देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे एकदम फ्लैश दिखाई दिया और वहां से फायरिंग हुई, मैने भी फायरिंग की। मैं नीचे गिर चुका था और जैस ही होश आया तो देखा कि गर्दन के पास से खून निकल रहा है। मुझे लगा कि बच गया हूं और अभी और लड़ाई लड़नी है। मुझे जबरदस्त दर्द हो रहा था। मेरे कान के पास गोली लगी थी और मेरे कान का थोड़ा सा हिस्सा लटक गया था। असहनीय दर्द था और मैं बीच-बीच में एक शॉट मारता था और वहां से जबरदस्त फायरिंग होती थी। इसके बाद मुझे याद आया कि मेरे पास दो हैंड ग्रेनेड थे। मैंने अपना लाइव ग्रेनेड निकाला और आतंकियों पर फेंक दिया। आमतोर पर ये ग्रेनेड 7-10 सेकेंड में फट जाता है लेकिन वो बम फटा ही नही। मैं फ्रस्टेट हो गया क्योंकि ग्रेनेड ऐसी परिस्थितियों में काफी मारक साबित होता है।’

उन्होंने आगे कहा कि  ‘हालांकि मैंने उन आतंकियों को व्यस्त किया हुआ था। इस बीच मेरी बाकी टीम उसी फ्लोर पर मौजूद 150 लोगों को बचा रहे थे। उन लोगों में कई विदेशी लोग भी मौजूद थे। अगर आतंकियों के हाथ ये लोग लग जाते तो स्थिति बेहद गंभीर हो सकती थी क्योंकि ये आतंकी फिर सरकार से कुछ भी डिमांड कर सकते थे। मेरी टीम के मेंबर्स को लगा कि मैं शहीद हो चुका हूं और सिक्योरिटी इंचार्ज के माध्यम से पता चला कि इस रूम का एंट्री और एक्जिट एक ही है तो आतंकियों को बाहर लाने के लिए उन्होंने आंसू गैस के गोले अंदर छोड़ दिए। मेरे पास अपनी टीम से कम्युनिकेट करने का साधन नहीं था, इसलिए मैं उन्हें बता नहीं सकता था कि मैं अंदर कमरे में जिंदा हूं। टीयर गैस की वजह से सांस घुटने लगी थी, मैं पहले ही घायल अवस्था में था। मैं खांसा और मेरे ऊपर आतंकियों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाई। एके 47 से एक मिनट में 90 गोलियां फायर की जा सकती हैं। यानि अगर मैं बाहर निकलने की कोशिश करता और वो अंधाधुंध गोलियां भी चलाते तो कई गोलियां मुझे छलनी कर सकती थी। मेरा दुश्मन मुझसे ज्यादा दूरी पर नहीं था। मुझे लगा कि या तो यूं ही बैठे बैठे मर जाऊं या फिर आतंकियों का सामना करते हुए शहीद हो जाऊं। मैंने दूसरा रास्ता अपनाया और फायर करते हुए भागा। वे तैयार बैठे थे और मुझे छाती में तीन गोलियां ली। मैं दरवाजे तक पहुंचा और मेरी टीम ने मुझे बाहर निकाल लिया।’