क्या कोई अभिनेत्री अपने निर्माता से कहेगी कि वह आउटडोर शूटिंग पर मुंबई से बाहर नहीं जाएगी। मगर दिलीप कुमार से मधुबाला की बढ़ती करीबी को देख उनके पिता अताउल्ला खां को दोनों को दूर रखने का यही तरीका समझ आया था। लिहाजा बेटी को लेकर चिंतित पिता के प्रभाव में आकर मधुबाला ने उन्हें लेकर ‘नया दौर’ बना रहे बीआर चोपड़ा से कहा कि वे मध्य प्रदेश जाकर शूटिंग नहीं करेंगी। परेशान चोपड़ा ने पहले उन्हें मनाया, समझाया। फिर न मानने, समझने पर अदालत में खींच लिया। अदालत में दिलीप कुमार की वह मशहूर गवाही थी, जिसमें उन्होेंने कहा था कि वे मधुबाला से प्यार करते हैं। आखिर इस तरीके से ‘न’ कहकर मधुबाला ने ‘नया दौर’ छोड़ी थी।
मधुबाला ने उस हॉलीवुड को भी न कह दिया था, जिसमें काम करने के लिए भारतीय अभिनेत्रियां एक पैर पर खड़ी हो जाती हैं। 1951 में ‘लाइफ’ मैग्जीन के कवर पर आने के बाद हॉलीवुड में भी मधुबाला के हुस्न के चर्चे होने लगे थे। अमेरिकी मैग्जीन ‘थियेटर आर्ट्स’ ने तो 1952 में यहां तक लिख कर मधुबाला का कद बढ़ा दिया था कि जो दुनिया की सबसे बड़ी स्टार हैं, वे बेवरली हिल्स से नहीं है। ‘इट हैपंड वन नाइट’ (जिस पर राज कपूर-नरगिस अभिनीत ‘चोरी चोरी’ और महेश भट्ट की ‘दिल है के मानता नहीं’ बनाई गई) जैसी फिल्म बनाने वाले फ्रैंक काप्रा जब भारत आए थे तो उन्होंने मधुबाला को हॉलीवुड में काम करने का ऑफर दिया था। मगर मधुबाला के पिता, जो तमाम कोशिशों के बावजूद बॉलीवुड में अपना मकाम नहीं बना पाए थे, ने हॉलीवुड को मधुबाला की ओर से न कह दिया था।
गुरु दत्त को घुमा फिरा कर हां कहने का हुनर देखने को मिला मधुबाला से। 1955 में मधुबाला को लेकर ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ बना चुके गुरु दत्त ने 1958 में अबरार अल्वी से ‘साहिब बीवी और गुलाम’ (1962) बनवाना तय किया था। इसमें साहिब रहमान बने थे, बीवी मधुबाला को बनाना चाहते थे और वे खुद गुलाम बने थे। मधुबाला ने गुरु दत्त से फिल्म की पूरी कहानी सुनी और फिर कहा कि वे फिल्म में एक शर्त पर काम करेंगी। शर्त यह है कि फिल्म में साहिब की भूमिका रहमान नहीं गुरु दत्त खुद करें। दत्त उनका मुंह देखते रह गए। दरअसल मधुबाला 1958 तक आते आते ‘महल’, ‘संगदिल’, ‘अमर’ जैसी फिल्मों से चोटी की हीरोइन बन चुकी थीं और नहीं चाहती थी कि फिल्म में वे शराब पीने वाली पत्नी की भूमिका निभा कर अपनी इमेज खराब करें। मगर सीधे गुरु दत्त को न नहीं कह पा रही थीं। मीना कुमारी भी यह भूमिका करने से पहले इनकार कर चुकी थीं और बाद में तैयार हुईं। दूसरी बात यह थी कि मधुबाला नहीं चाहती थीं कि उनके हीरो रहमान बनें, जो लोकप्रिय हीरो नहीं थे।
जाहिर है गुरु दत्त नकारात्मक शेड वाली भूमिका नहीं करना चाहते थे। उससे भी ज्यादा यह बात उन्हें पसंद नहीं आई थी कि उनकी फिल्म की हीरोइन उन्हें यह बताए कि कौनसी भूमिका किसे करनी चाहिए। बहरहाल, फिल्म गुरु दत्त, रहमान, मीना कुमारी और वहीदा रहमान को लेकर बनी और बॉक्स आॅफिस पर फेल हो गई। मगर आलोचकों ने इसकी सराहना की और इसे ऑस्कर में विदेशी फिल्म की श्रेणी में नामांकन के लिए भिजवाया गया। नामांकन तो नहीं हुआ मगर ऑस्कर अकादमी ने पत्र लिख कर ‘शराब पीने वाली महिला उनके यहां स्वीकार नहीं की जा सकती’ जैसी गैरजरूरी टिप्पणी जरूर की थी।
इनकार करना एक कला है और न कहने के कई तरीके होते हैं। कोई सीधे-सीधे न कह देता है, तो कोई घुमा-फिरा कर ऐसे हां कहता है कि सुनने वाला सोचता रह जाए कि हां कहा या न। समय के साथ चोटी के हीरो-हीरोइन यह कला सीख जाते हैं। हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्री मधुबाला (जिनकी गुरुवार को 86वीं जयंती थी) को यह हुनर सीखने में एक दशक लगा। उनके इस हुनर की झलक बीआर चोपड़ा से लेकर गुरु दत्त जैसे फिल्मकारों को देखने को मिली।