अभिनेत्री और भाजपा सांसद कंगना रनौत की इमरजेंसी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बारे में एक “फैक्चु्अल” और “सहानुभूतिपूर्ण” फिल्म है, इतिहासकार मक्खन लाल को फिल्म देखने और उस पर अपनी टिप्पणी देने के लिए सेंसर बोर्ड ने “विषय विशेषज्ञ” के रूप में आमंत्रित किया गया था। द इंडियन एक्सप्रेस को उन्होंने बताया कि कांग्रेस भी इससे बेहतर काम नहीं कर सकती थी।
फिल्म इमरजेंसी पहले 6 सितंबर को रिलीज होने वाली थी, सीबीएफसी से सर्टिफिकेट न मिल पाने की वजह से फिल्म की रिलीज पोस्टपोन हो गई। 18 सितंबर को, सीबीएफसी ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि उनकी जांच समिति ने, “फिल्म की कहानी और उसकी विषय की वजह से”, स्क्रीनिंग के दौरान एक “एक्सपर्ट” को बुलाया था, और इसके लिए मक्खन लाल पहुंचे थे।
हाईकोर्ट ने सीबीएफसी को 25 सितंबर तक फिल्म के सर्टिफिकेट पर फैसला लेने का निर्देश दिया था। एनडीए-1 सरकार के दौरान एनसीईआरटी की इतिहास की पाठ्यपुस्तकों के सह-लेखक मक्खन लाल ने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “कांग्रेस जानती है कि मैं पार्टी का बहुत बड़ा प्रशंसक नहीं हूं। लेकिन फिर भी, तथ्यों को स्वीकार करना होगा। और श्रीमती गांधी के कद के व्यक्तित्व का सम्मान किया जाना चाहिए। जब मैंने फिल्म देखी, तो मेरी प्रतिक्रिया यह थी कि कांग्रेस भी श्रीमती गांधी पर इससे बेहतर ऐतिहासिक फिल्म नहीं बना सकती थी। उन्होंने (कंगना) तथ्यों से 0.01% भी हेर-फेर नहीं किया है। यह किसी राजनीतिक नेता पर अब तक देखी गई सबसे सहानुभूतिपूर्ण फिल्मों में से एक है। फिल्म में पक्षपात नहीं किया गया है।”
हालाँकि, इतिहासकार ने कहा कि फिल्म के क्लाइमैक्स पर उनका एक सुझाव है। “मेरा मुख्य सुझाव यह था कि फिल्म श्रीमती गांधी के एक शॉट के साथ समाप्त हो। मुझे लगा कि इससे समस्या पैदा होगी। मैंने सुझाव दिया कि फिल्म को उनकी मृत्यु के साथ समाप्त करने के बजाय, फिल्म निर्माताओं को शायद 20 से 30 सेकंड में दिखाना चाहिए कि उसके बाद क्या हुआ: राजीव गांधी का बयान ‘जब एक पेड़ गिरता है…’ और उसके बाद सिखों का नरसंहार। अन्यथा, यह एक समस्या होगी क्योंकि यह एकतरफा फिल्म बन जाएगी।”
मक्खन लाल ने आगे कहा, “इसे संतुलित करने के लिए, आपको दिखाना होगा कि उसके तुरंत बाद क्या हुआ… प्रभाव दिखाना होगा। और मैंने इसे अपने साढ़े तीन पेज के नोट में (सीबीएफसी को) लिखित रूप में पेश किया था।” लाल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं और विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में फेलो रहे हैं।
18 सितंबर की सुनवाई के दौरान, सीबीएफसी ने बॉम्बे हाईकोर्ट को जानकारी दी कि बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने फिल्म के प्रमाणन के मामले को संशोधन समिति को भेजने का फैसला किया है। जांच समिति ने पहले ही फिल्म को यूए प्रमाणन के लिए मंजूरी दे दी थी, लेकिन कई सिख समूहों द्वारा प्राप्त विरोध के मद्देनजर इसे रोक दिया गया था। आज सेंसर बोर्ड ने हाईकोर्ट को जवाब पेश किया जिसमें कहा है कि फिल्म कुछ कट्स के साथ रिलीज हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार फिल्म का विरोध दो कारणों से हो रहा है। एक सूत्र ने कहा, “फिल्म के ट्रेलर में एक सीन है जिसमें कुछ सिखों को निर्दोष लोगों पर गोलियां चलाते हुए देखा जा सकता है, और दूसरे सीन में भिंडरावाले को संजय गांधी के साथ सौदा करते हुए और एक अलग सिख राज्य के बदले इंदिरा गांधी की पार्टी के लिए वोट लाने का वादा करते हुए देखा जा सकता है।”
कई सिख संगठनों ने सिखों के चित्रण पर चिंताओं का हवाला देते हुए सीबीएफसी को लिखा है और फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाया है।
लाल ने कहा कि यह “विवाद पूरी तरह से अनुचित है”। उन्होंने कहा, “क्या भिंडरावाले पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधि है? भिंडरावाले एक व्यक्ति है, एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, सामूहिक संज्ञा नहीं। तो सिखों के गलत चित्रण का सवाल ही कहां उठता है?”
फिल्म की कहानी रनौत ने लिखी है, जो मुख्य भूमिका निभा रही हैं, और इसकी पटकथा रितेश शाह ने लिखी है। इसमें अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, महिमा चौधरी और दिवंगत सतीश कौशिक भी हैं। फिल्म का निर्देशन कंगना रनौत ने किया है।