Dunki Movie Review & Rating: बॉलीवुड किंग शाहरुख खान इस साल फुल फॉर्म में दिखे हैं। ‘पठान’ से जोरदार कमबैक करने के बाद जवान से कई रिकॉर्ड भी उन्होंने अपने नाम किए। दोनों ही फिल्मों को ‘ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर’ तक कहा गया। अब सोने पर सुहागा करने के लिए शाहरुख ने डायरेक्टर राजकुमार हिरानी के साथ हाथ मिला लिया। बॉलीवुड का वो डायरेक्टर जिसका सक्सेस रेट 100 फीसदी है और जिसकी फिल्मों की दीवानगी फैमिली ऑडियंस में अलग ही दिखती है। अब शाहरुख के चार्म और मास्टर स्टोरी टेलर हिरानी एक साथ लेकर आए हैं नई पेशकश- ‘डंकी’। सभी के मन में सिर्फ एक सवाल- एंटरटेनमेंट का डंक लगा है या बोरियत का?
कहानी
राजकुमारी रिहानी की जब इस फिल्म की अनाउंसमेंट हुई थी, सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की थी कि ये ”डंकी” होता क्या है? आम बोलचाल में जो सिरफिरा होता था या जिसे हम कम दिमाग वाला कहते थे, उसके लिए ‘डंकी’ शब्द का प्रयोग कर लेते थे। लेकिन राजकुमार हिरानी हमे ‘डंकी’ के जरिए एक रूट पर लेकर जाते हैं। ‘डंकी’ का मतलब है अवैध रूट, ऐसा रास्ता जिससे आप एक देश से दूसरे देश में तो चले जाएंगे, लेकिन जान का जोखिम बना रहेगा। गोलियां भी चलेंगी, जेल भी होगी और मौत पूरे समय सिर पर मंडराती रहेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि वीजा नहीं होगा, पासपोर्ट नहीं होगा और बस विदेश जाने की चाह दिखेगी। अब इसी विदेश जाने वाले भूत की कहानी है ‘डंकी’।
‘डंकी’ पूरी तरह पंजाब के उस ट्रेंड को एक्सप्लोर करती है जहां पर हर युवा विदेश भागना चाहता है। उसका गोल या तो कनाडा जाने का रहता है या फिर लंदन। अब इस कहानी के पांच मेन किरदार हैं- हार्डी (शाहरुख खान), मन्नू (तापसी पन्नू), बल्ली (अनिल ग्रोवर), बग्गू (विक्रम कोच्चर) और सुख्खी (विक्की कौशल)। इनमें से चार किरदार मन्नू,बल्ली, बग्गू और सुख्खी का सिर्फ एक सपना है- लंदन जाने का। इन सभी की अपनी मजबूरी है, किसी को अपना प्यार पाना है, किसी को परिवार को सुरक्षित भविष्य देना है और कोई बस बेहतर जिंदगी की आस लगाए बैठा है। वहीं हार्डी फौज का बंदा है जो मन्नू के प्यार में पागल है, ऐसे में उसका सपना पूरा करने के लिए वो खुद भी ‘डंकी’ वाले सफर पर जाने को तैयार हो जाता है। इन सभी के सपनों के बीच में सबसे बड़ा रोड़ा अंग्रेजी है, ऐसे में एक टीचर का किरदार भी रखा गया है, नाम है गुलाटी (बमन ईरानी)। अब किस तरह से इस सफर को तय किया जाता है, किन चुनौतियों का सामना होता है, क्या कभी इनकी वतन वापसी भी होती है या नहीं, यही है ‘डंकी’ की कहानी।
कमजोर कॉमेडी, इमोशन हावी
राजकुमार हिरानी के निर्देशन की एक बड़ी खासियत है- वे कॉमेडी और इमोशन को एक साथ बैलेंस करना जानते हैं। उनकी कोई भी फिल्म उठाकर देखी जाए तो सही संतुलन मिल ही जाएगा, फिर चाहे बात 3 इडियट्स की हो या हो रणबीर कपूर की संजू की। अब हिरानी की नई फिल्म ‘डंकी’ में भी यही कॉम्बो देखने को मिला है- फर्क इतना है कि इस बार कॉमेडी कुछ फीकी लगी है, लेकिन इमोशन वाले सीन्स दमदार रहे हैं। अब ये जो थोड़ा सा तालमेल गड़बड़ा गया है, इसका असर ओवरऑल फिल्म पर भी पड़ा है। जो मैसेज देने की कोशिश हुई है वो दिल को नहीं लगता है, हंसाने का जो प्रयास दिखा है उससे पेट में दर्द नहीं उठा है। यानी कि सबकुछ एवरेज सा लगा है।
3 इडियट्स और पीके से कई सीन प्रेरित
‘डंकी’ का फर्स्ट हाफ पूरी तरह किरदारों को सेट करने में लगाया गया है। पूरी फिल्म में जितनी भी कॉमेडी दिखाई गई है, उसका अधिकांश हिस्सा फर्स्ट हाफ में ही रखा गया है। अब फिल्म हंसाती है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन कई जोक्स आपको रिपीटेशन वाले लगेंगे, कुछ ऐसे होंगे जिन्हें देखकर आपको हिरानी की ही पुरानी फिल्म पीके या फिर 3 इडियट्स की याद आ जाएगी। एक तरफ पीके का जेल वाला सीन जहां पर आमिर ‘अच्छा-अच्छा’ कहते रहते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ 3 इडियट्स में जब मशीन की सरल भाषा में डेफिनेशन बताई जाती है, वैसे ही कुछ सीन्स ‘डंकी’ में रखे गए हैं। फिल्म को ध्यान से देखने वाले दर्शक ये प्वाइंट मिस नहीं कर पाएंगे।
शाहरुख दमदार, बाकी कलाकार भी शानदार
‘डंकी’ का सेकंड हाफ ज्यादा इमोशनल रखा गया है, कह सकते हैं हिरानी जो मैसेज डिलीवर करना चाहते हैं, उसकी रूपरेखा पोस्ट इंटरवल तय करता है। सेकंड हाफ में कुछ सीन्स है जो स्टैंड आउट करते हैं, शाहरुख का कोर्ट में रोना, इमिग्रेंट्स के दर्द को सही तरह से बयां करना, वो पार्ट जरूर दिल को लगता है। लेकिन बाकी फिल्म नॉर्मल सी लगती है, कुछ जोक्स लैंड करते हैं तो कुछ बुरी तरह फ्लॉप भी होते हैं। हिरानी की फिल्म में एक पहलू जरूर बेहतरीन लगा है, वो है फिल्म की कास्टिंग। शाहरुख खान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे किसी भी किरदार में खुद को ढाल सकते हैं। शुरुआत में उनके बोलने का लहजा कुछ अजीब सा जरूर लगता है, लेकिन जब वो किरदार आपकी पकड़ में आता है, आप उसके साथ बहना शुरू कर देते हैं।
तापसी पन्नू को फिल्म में एक मजबूत रोल दिया गया है। पंजाब की एक देसी कुड़ी वाली पूरी वाइप उनके किरदार में दिख जाती है। शाहरुख खान के साथ उनके जितने भी सीन्स फिल्माए गए हैं, वो भी एक फील गुड फैक्टर देने का काम करते हैं। अच्छी बात ये भी है कि असल जिंदगी में जरूर तापसी और शाहरुख की उम्र में काफी फर्क है, लेकिन स्क्रीन पर वो महसूस नहीं हुआ है तो क्रेडिट एक्टर के साथ मेकर्स को देना पड़ेगा। विक्रम कोच्चर और अनिल ग्रोवर का काम भी बढ़िया कहा जाएगा, फिल्म के जो लाइट मोमेंट्स हैं, उनमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल इन दोनों किरदारों का हुआ है। स्पेशल अपीयरेंस में विक्की कौशल और बमन ईरानी भी अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह कामयाब हुए हैं। विक्की की एक्टिंग को तो 100 में से 100 नंबर देना एकदम तय है।
हिरानी से इस बार हुई चूक
राजकुमार हिरानी के निर्देशन ने इस बार निराश किया है। उनसे तो उम्मीदें भी इतनी ज्यादा रहती हैं कि कुछ भी कमी रह जाए तो उसका हाईलाइट होना लाजिमी है। ‘डंकी’ में हिरानी स्टाइल सारी सामग्री रखी गई है, लेकिन उसका निचोड़ इस बार एंटरटेन कम बोर ज्यादा करता है। हिरानी अपने टॉपिक पर जितनी रिसर्च करते हैं, उम्मीद की जाती है कि वे मुद्दे की गहराई तक जाएंगे। लेकिन ‘डंकी’ में वे इस डिपार्टमेंट में चूक गए हैं, उन्होंने गरीब इमिग्रेंट्स का मुद्दा तो उठाया है, लेकिन कुछ ऐसा नहीं बताया जो पहले से ना पता हो, यानी कि नवीनता की कमी है। फिल्म का क्लाइमेक्स भी एक हाई नोट पर एंड नहीं होता है, आप अपने साथ बहुत कुछ साथ लेकर नहीं जाने वाले हैं। हां फिल्म के जितने भी गाने हैं, वो हिट कहे जाएंगे, सोनू निगम की आवाज में ‘निकले थे कभी हम घर से’ से तो आंखें नम भी कर सकता है।
अब ‘डंकी’ को लेकर कहा जा सकता है कि शाहरुख की एक्टिंग को जरूर एक नई ऊंचाई मिल गई है, लेकिन राजकुमार हिरानी के निर्देशन के लिहाज से ये एक एवरेज पेशकश है जिसे ‘मास्टर स्टोरी टेलर’ वाली श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।