निर्देशक-जपिंदर कौर, कलाकार-दिव्येंदु शर्मा, प्राची मिश्रा, प्रद्युम्न सिंह, इरा दुबे, जैकी श्रॉफ।

यहां लिफाफे से लगता है कि अंदर का माल कुछ मजेदार होगा। मगर खोलकर माल देखने के बाद लगता है कि यार कहां फंस गए, अच्छा होता लिफाफा नहीं खोलते और सीधे लौटा देते। कोई पहेली नहीं है। मतलब ये कि फिल्म के नाम से जो लगता है वैसा यहां कुछ नहीं है। दिल्लीवाली जालिम गर्लफ्रेंड, नाम से लग सकता है कि ये किसी ऐसी लड़की के बारे में है जो गर्लफ्रेंड के रूप में जालिमाना हरकत करती है। पर शुरू के हिस्से को छोड़ दें तो यह बाद में पूरी तरह कार चोरी और कारचोरों के गिरोह से निपटने को लेकर है। और ये पहलू भी इतना कमजोर है कि मध्यांतर तक मन उचट जाता है और फिर मन मारकर बैठे रहता पड़ता है।

दिव्येंदु शर्मा ने यहां ध्रुव नाम के एक ऐसे युवक की भूमिका निभाई है जो एक पुलिस अफसर बनने के लिए कोचिंग ले रहा है लेकिन हर वक्त खयालों में खोया रहता है। एक दिन ध्रुव कार के लिए कर्ज देनेवाली कंपनी में जाता है और वहां की एक महिला एक्जीक्यूटिव साक्षी (प्राची) से एकतरफा प्यार करने लगता है। ध्रुव का एक दोस्त हैप्पी (प्रद्युम्न) है और वो अपने दोस्त को एक लड़की पर इस तरह फिदा देखकर उसके सामने प्रस्ताव रखता है कि क्यों न एक कार खरीद ली जाए। किसी तरह पैसे का जुगाड़ करके कार खरीदी जाती है और एक दिन वो अचानक चोरी चली जाती है।

ध्रुव जिस साक्षी नाम की लड़की पर फिदा हुआ था वो भी उसे धोखा देती है और उससे उधार पैसे लेकर नहीं चुकाती। इस बुरी स्थिति में फसे ध्रुव और हैप्पी के सामने पहली चुनौती है चोरी की गई कार कैसे बरामद की जाए। उधर कार चोरों के गिरोह का सरगना मिनोचा (जैकी श्रॉफ) पकड़े जाने पर भी पुलिस से सांठगांठ की वजह से छूट जाता है। ध्रुव और हैप्पी महिला पत्रकार मित्र निम्मी (इरा दुबे) की सहायता से एक स्टिंग आॅपरेशन करते हैं जो उनको दूसरे झमेले में फंसा देता है।

ये एक औसत दर्जे की फिल्म है जो कसावट की कमी की वजह से बीच बीच में हांफने लगती है। फिर निर्देशक ने कई गाने बीच में डाल रखे हैं जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। हां यो यो हनी सिंह ने गाना गाया है वो फिल्म के साथ थोड़ा प्रासंगिक है लेकिन कहानी उस दिशा में आगे नहीं बढ़ती जिधर गाना ले जाता है। हां, अगर आपकी इस बात में दिलचस्पी है कि कार चोरों के गिरोह से कैसे निपटें तो ये आपको दिलचस्प लग सकती है।