साल 1975 में आई फिल्म ‘शोले’ को 50 साल हो चुके हैं, लेकिन इसका क्रेज और इससे जुड़ी कहानियां खत्म होने का नाम नहीं लेता है। इस फिल्म से कई एक्टर्स की किस्मत चमकी थी। फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी और संजीव कुमार, अमजद खान अहम किरदार में थे। फिल्म का निर्माण रमेश सिप्पी ने किया था और अब वो इसकी डॉक्यूमेंट्री बनाने में व्यस्त हैं। फिल्म के हाफ सेंचुरी पूरी होने के बाद अब सिप्पी ने इससे जुड़े एक्टर्स, क्लाइमेक्स के बारे में खुलकर बताया है।
स्क्रीन के साथ खास इंटरव्यू में सिप्पी ने कई दिलचस्प किस्से भी सुनाए। उनसे पूछा गया कि ‘शोले’ से पहले उन्होंने स्क्रीन प्ले राइटर जोड़ी सलीम-जावेद के साथ ‘सीता और गीता’ (1973) में काम किया था। हालांकि वो एक कॉमेडी थी, फिर ऐसी क्या बात थी जिसके कारण उन्हें यकीन था कि सलीम-जावेद एक इतनी बड़ी हिट दे सकते हैं? इसके जवाब में रमेश सिप्पी ने कहा, “‘सीता और गीता’ को जिस तरह की ज़रूरत थी, उसी तरह पेश किया गया। इसने उसी तरह का प्रतिफल दिया। मेरे लिए ये ‘शोले’ जितना ही शानदार अनुभव था। मैं हर फिल्म बनाते समय उसमें पूरी जान लगा देता हूं। बेशक, ‘शोले’ का कैनवास बड़ा था। 70 मिमी का ये अनुभव अपने आप में एक बड़ा अनुभव था, क्योंकि ये एक ऐसी एक्शन फिल्म थी जिसे आउटडोर में शूट किया गया था। अगर सलीम-जावेद ‘सीता और गीता’ में कमाल कर सकते हैं, तो ‘शोले’ में क्यों नहीं कर सकते? गब्बर के किरदार को इससे बेहतर कौन गढ़ सकता था?”
रमेश सिप्पी ने अमिताभ बच्चन की एंग्री यंग मैन वाली छवि और उनके साथ फिल्म में काम करने के अनुभव के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, “वो एक शांत स्वभाव के इंसान थे। इस लिहाज से, वो धर्मेंद्र जी जैसे नहीं थे, जो एक भड़कीले स्वभाव के थे। बच्चन ज़्यादा शांत स्वभाव के थे, लेकिन उन्होंने अपने हाव-भाव से सब कुछ बयां कर दिया। उन्हें “ये दोस्ती हम नहीं” गाने को छोड़कर, उतना शोरगुल करने की जरूरत नहीं पड़ी। दीप प्रज्वलन के अलावा, ऐसे रिश्ते को जया बच्चन और अमित जी के अलावा और कौन बयां कर सकता था? मौन प्रेम और प्रशंसा, दूरी बनाए रखना क्योंकि यही सही था, और साथ ही उन भावनाओं को भी महसूस करना जो उन्होंने महसूस कीं। मैं जो चाहता था, वो उन्होंने खूबसूरती से बयां कर दिया।”
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जया बच्चन की कास्टिंग थी परफेक्ट
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें लगता था कि जया बच्चन को शांत रोल के लिए सही थीं, क्या वो इस रोल के लिए मान गई थीं? इसके जवाब में सिप्पी ने कहा, “हां, उन्हें मेरी काबिलियत पर पूरा भरोसा था। दूसरी बात, उन्हें अमित जी के साथ कास्ट किया गया था, इसलिए वो पूरी फिल्म के कैनवास को समझती थी। वो एक समझदार महिला हैं, इसलिए उन्हें पता था कि ये कुछ अलग और अच्छा है और उनके पल बस उनके पल हैं। कोई भी उसे उनसे नहीं छीन सकता। आप पहले उन्हें एक विधवा के रूप में देखते हैं। फिर आप पिछली कहानी में जाते हैं और उसकी और भी ज्यादा सराहना करते हैं, क्योंकि वो एक बहुत ही जिंदादिल छोटी बच्ची थी, जो उछल-कूद करती थी और जिंदादिल थी। फिर वो दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। एक तरह से, ठाकुर का बदला भी उसी के लिए था। वो अंदर से जितनी गुस्सैल थी, उतनी ही कोमल और शांत भी थी।”
बसंती का किरदार निभाने में हिचकिचा रही थीं हेमा मालिनी
हेमा मालिनी ‘शोले’ में किरदार निभाने में हिचकिचा रही थीं, लेकिन उन्हें कैसे मनाया गया? इसके जवाब में रमेश सिप्पी ने कहा, “यकीन मानो, ये किरदार भी कमाल का होगा। हां, फिल्म तुम्हारे इर्द-गिर्द नहीं है। लेकिन तुम एक बहुत ही अहम किरदार होंगी, इसकी चिंता मत करो।” उनका सबसे खास किरदार आखिर में आता है जब वो उन गर्म, उबड़-खाबड़ चट्टानों और टूटे हुए कांच पर नाचती है। यही उसके किरदार का सबसे बेस्ट था। वो न सिर्फ गुस्से में भी, बल्कि इमोशनल, मजबूत और अपने प्यार के प्रति जुनूनी भी थी। “जब तक है जान, मैं नाचूंगी।” में उन्होंने अपना किरदार बखूबी निभाया।”
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जब उनसे पूछा गया कि क्या धर्मेंद्र-हेमा मालिनी और अमिताभ-जया बच्चन के असल जिंदगी के रोमांस ने उनकी ऑनस्क्रीन केमिस्ट्री बनाने में मदद की? उन्होंने जवाब में कहा, “मुझे लगता है कि अगर उनके बीच कोई सच्चा रोमांस ना भी होता, तो भी वे सब कुछ उतनी ही अच्छी तरह से बयां कर पाते क्योंकि वो अच्छे कलाकार हैं। लेकिन हो सकता है कि असल घटनाओं ने उनकी भावनाओं में वास्तविकता का एक और तड़का लगा दिया हो। लेकिन अच्छे कलाकार होने के नाते, वे ऐसा तो करते ही।”
गब्बर का किरदार निभाना चाहते थे अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र
फिल्म में अमिताभ बच्चन जय नहीं, बल्कि गब्बर का किरदार निभाना चाहते थे। इसके बारे में बात करते हुए रमेश सिप्पी ने कहा, “इसमें कोई शक नहीं कि जब एक अच्छा एक्टर कोई भी रोल करता है, तो वो उसे बखूबी निभाता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर आप अब पीछे मुड़कर देखें, तो क्या आपको गब्बर के रूप में कोई और नजर आता है? अमजद खान इस तरह से फिट बैठे कि वो बहुत अच्छे लगे! अमिताभ जय के रूप में बहुत अच्छे लगे! यहां तक कि संजीव कुमार को भी लगा था कि उन्हें गब्बर का रोल करना चाहिए। धरम जी को लगा कि पूरी कहानी ठाकुर की है और गब्बर का मुख्य खलनायक बहुत रंगीन है, तो क्या उन्हें दोनों में से कोई एक रोल करना चाहिए? आखिर में, मैंने कहा, “धरम जी, आप कोई भी रोल कर सकते हैं, लेकिन फिर हेमा मालिनी नहीं मिलेगी। लेकिन मुझे उस पानी की टंकी वाले सीन में कोई और नजर नहीं आता। आखिरकार, हर एक्टर ने अपनी भूमिका को स्वीकार किया और पूरे विश्वास के साथ उसे निभाया। और नतीजा सबके सामने है