रुपहले परदे पर बनावटी मुस्कान बिखेरने वाली किसी अदाकारा की निजी जिंदगी कितनी गमगीन व मायूसी से भरी हो सकती है, इसका अंदाजा आप तब तक नहीं लगा सकते जब तक वह खुद इच्छाशक्ति दिखाकर उस दर्द को बयां नहीं करती। ऐसी ही इच्छाशक्ति दिखाने वाली अभिनेत्री दीपिका पादुकोण भी मानसिक बीमारी से गुजर चुकी हैं। शायद इस बीमारी ने उन्हें इतनी तकलीफ दी है कि इसका जिक्र करते हुए वे आज भी रो पड़ती हैं। हालांकि दीपिका ने हार कर टूटने के बजाए इस बीमारी का डट कर सामना किया और अपने जैसे हजारों ऐसे लोगों को मानसिक यंत्रणा से बचाने के लिए ठोस कदम भी उठाया।

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर सोमवार को उनकी पहल से बनाए गए ‘लिव लव लॉफ फाउंडेशन’ ने एक देशव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया। ‘दोबारा पूछो’ नाम का यह अभियान मानसिक स्वास्थ्य विषय पर समाज की मुख्यधारा के बीच बहस शुरू करने और इस बीमारी को लेकर समाज में फैली गलत धारणा को तोड़ने के लिए शुरू किया गया है, ताकि पीड़ित व्यक्ति इस बीमारी को लांछन की तरह झेलने को मजबूर न हो बल्कि आगे बढ़ कर अपना इलाज कराए। इस मौके पर दीपिका ने बताया कि उनके लिए इस स्टिग्मा से बाहर निक लना आसान नहीं था। कार्यक्रम में मौजूद स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी इस मुद्दे पर विचार रखे।

सफल अभिनेत्रियों की कतार में शुमार दीपिका बताती हैं कि पिछले साल वे जब मानसिक अवसाद से पीड़ित थीं तो उनकी मां ने कई बार उनसे इस बारे में पूछा। पहले तो उन्होंने कुछ नहीं बताया, लेकिन बाद में दिल का गुबार बाहर निकला। कई दिनों तक सोच-विचार के बाद तय किया गया कि मनोचिकित्सक की मदद ली जाए। वे कहती हैं कि भले ही कम संख्या में, लेकिन इस बीमारी से बाहर निकलने के विकल्प मौजूद हैं। जैसे दिल की बीमारी का, मधुमेह का या बुखार का इलाज होता है उसी तरह मानसिक बीमारी का भी इलाज है। इसक ो सही ढंग से समझने की दरकार है।  वे कहती हैं कि कामयाबी की अंधी दौड़ में हम असंवेदनशील होते जा रहे हैं। इसलिए संवेदना को बचाए रखना होगा। दीपिका ने आगे कहा कि यह समझना जरूरी है कि आज हम बहुत प्रतिस्पर्र्धी बन गए हैं, जोकि एक अच्छी बात है लेकिन हम अपने आसपास के लोगों को लेकर कम संवेदनशील भी हुए हैं। इस बीमारी से अपने संघर्ष की कहानी बयां करते हुए दीपिका कार्यक्रम के दौरान रो पड़ीं और कहा कि आपके पास परिवार जैसी संस्था और दोस्त होने चाहिए, जो आपके लिए हर समय खड़े हों। इससे अवसादग्रस्त व्यक्ति को इससे उबरने में मदद मिलती है। इस मौके जाने-माने लेखक प्रसून जोशी ने कहा कि मानसिक अवसाद से निस्वार्थ व प्रेम के बूते ही पार पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि पहले के समय में दादी, नानी, मौसी, बुआ सहित तमाम रिश्तों से मिलने वाला बेपनाह प्यार बच्चों को एकाकीपन व मानसिक अवसाद से बचाए रखता था। आज संयुक्त परिवार नहीं हैं तो वह प्यार भी नहीं मिल रहा। नतीजा सामने है। इससे बचने के लिए खुलना जरूरी है। अपने प्रियजनों से खुल कर बात करें।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) के अध्यक्ष डॉ केके अग्रवाल ने कहा आज देश की कम से कम दस फीसद आबादी मानसिक अवसाद से पीड़ित है। इसके इलाज के लिए बातचीत और परामर्श बेहद जरूरी है, लेकिन डॉक्टरों व मरीजों के अनुपात में इतना अंतर है कि डॉक्टरों के पास एक मरीज के लिए चार मिनट से ज्यादा समय ही नहीं है। इसलिए जरूरी है कि मनोचिकित्सक व आम डॉक्टरों के साथ काउंसलर भी हों। उन्होंने कहा कि आइएमए की देशभर की अपनी शाखाओं में आम डॉक्टरों को इस बीमारी के प्रति समझ बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण देने की तैयारी में हैं।