डॉक्यूमेंट्री सीरीज ‘एंग्री यंग मैन’ की रिलीज के साथ ही भारत की सबसे प्रसिद्ध राइटर्स की जोड़ी सलीम-जावेद एक बार फिर साथ नजर आई। इस डॉक्यूमेंट्री के साथ मूवी लवर्स को आखिरकार इनकी लाइफ और करियर के बारे में काफी कुछ जानने को मिलने वाला है। इस जोड़ी की तमाम फिल्मों में से एक ‘जंजीर’ से जुड़ा एक बेहतरीन किस्सा भी इसमें बताया गया है, जो हम आपको बताने जा रहे हैं।

यह डॉक्यूमेंट्री सलीम-जावेद के बारे में है, जिसे उन दोनों के अलावा उनके करीबी लोगों और साथ काम करने वालों ने शेयर किया है। बातचीत के दौरान सलीम-जावेद ने बताया कि अपनी लिखी फिल्म में कैसे उन्होंने खुद का नाम मेंशन किया था, क्योंकि उन्हें लगता था कि वो भी पहचान के हकदार हैं।

राइटर्स को नहीं मिलता था क्रेडिट

सलीम ने कहा, “हमने ‘जंजीर’ की पूरी स्क्रिप्ट लिखी थी, लेकिन जब पोस्टर लगे तो हमारे नाम कहीं नहीं दिखे। फिल्म मेकिंग में स्क्रिप्ट सबसे जरूरी होती है, फिर भी राइटर्स को अहमियत नहीं दी जाती और कई बार तो क्रेडिट तक नहीं दिया जाता।” इसके बाद जावेद अख्तर ने कहा, “कई अच्छे राइटर थे, लेकिन मैंने किसी बैनर पर उनका नाम नहीं देखा, उन्हें पैसे मिलते थे लेकिन एक दो को छोड़कर, किसी सीनियर राइटर को भी सम्मान या क्रेडिट नहीं दिया जाता था।”

पेंटर को बुला लिखवा लिया नाम

इसके बाद सलीम ने बताया कि वो इस चलन को बदलना चाहते थे और उन्होंने ‘जंजीर’ फिल्म के वक्त एक पेंटर को पकड़ा और उसे ब्रश देकर पोस्टर पर अपना नाम लिखने को कहा। इसपर जावेद ने बताया कि पेंटर ने ऐसा काम किया कि उसने हीरोइन की नाक पर उनके नाम लिख दिए। उन्होंने कहा, ” उसने हीरोइन की नाक, हीरो के माथे और यहां तक कि प्राण के मुंह पर भी हमारा नाम लिख दिया। उसने बड़े अक्षरों में ‘सलीम-जावेद द्वारा लिखित’ लिख दिया और अगली सुबह पूरे बॉम्बे में पोस्टर लग गए।”

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें पोस्टर पर अपना नाम रखने का आइडिया कैसे आया? इसपर मुस्कुराते हुए जावेद ने कहा कि सलीम जवाब दें तो बेहतर होगा। उन्होंने कहा, “वह मुझे उकसाता था और मैं पूछता था, ‘क्या तुम श्योर हो’ वह कहता, ‘क्यों नहीं?” जावेद ने कहा कि नाम लिखने के बाद उन दोनों का सोचना था कि जो होगा देखा जाएगा।

बता दें कि सलीम और जावेद की जोड़ी ने 16 साल एक साथ कई फिल्में लिखीं। जिनमें ‘जंजीर’ (1973) के अलावा ‘मजबूर’ (1974), ‘दीवार’ (1975), ‘शोले’ (1975), ‘त्रिशूल’ (1978), ‘डॉन’ (1978), ‘काला पत्थर’, ‘दोस्ताना’ (1980), ‘शक्ति’ (1982), ‘मिस्टर इंडिया'(1987) शामिल है।