CineGram: 90 के दशक में कई बेहतरीन एक्टर्स रहे हैं। फिर चाहे बात लीड एक्टर की हो या फिर विलेन की। कई बार तो विलेन लीड हीरो पर भी भारी पड़ जाते थे। जब उस जमाने के पॉपुलर विलेन की बात आती है तो इसमें अमरीश पुरी, ओमपुरी और आशीष विद्यार्थी जैसे एक्टर्स का जिक्र खूब होता है। मगर एक और एक्टर था जिसने न विलेन के रोल में अपनी छाप छोड़ी थी। हम बात कर रहे हैं सदाशिव अमरापुरकर की। उन्होंने ना केवल नेगेटिव बल्कि दोस्त, बाप, भाई और अन्य किरदारों में भी दर्शकों का दिल जीता। लेकिन उन्हें ‘महारानी’ के किरदार से जाना जाता था। वो किसी पहचान के मोहताज नहीं थे लेकिन, बताया जाता है कि अंत में उनके दो सपने कभी पूरे नहीं हुए। आइए जानते हैं उनके बारे में…
सदाशिव अमरापुरकर ने स्क्रीन पर दर्शकों का खूब दिल जीता था। उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों को खूब गुदगुदाया और उनका खून भी जलाया था। आज वो भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन, आज भी लोगों के जहन में अपने अभिनय की वजह से जीवित हैं। उनसे जुड़ी तमाम यादें और फिल्में हैं। सदाशिव को बचपन से ही एक्टर बनना था। उनके अंदर एक्टिंग का ऐसा कीड़ा था, जो कभी निकला ही नहीं। इसे खत्म करने के लिए पिता ने लाख कोशिशें की थी। कमरे में बंद किया था। शादी करा दी फिर भी सदाशिव ने कहा था, ‘आप रोकेंगे तो भी रुक नहीं पाऊंगा।’
‘अर्ध सत्य’ से किया डेब्यू
सदाशिव गुजरात के अहमदनगर से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म 11 मई, 1950 को हुआ था। वो हमेशा से ही थिएटर में दिलचस्पी रखते थे। एक्टिंग उनके रगों में दौड़ती थी। उन्हें फिल्मों में पहला मौका गोविंद निहलानी की पहली फिल्म ‘अर्ध सत्य’ से मिला था। इसके लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था। एक्टर ने एक इंटरव्यू में खुद को लेकर बताया था कि कॉलेज के दिनों में वो नाटक लिखा करते थे और उसमें परफॉर्म भी करते थे। उन्होंने बताया था कि एक्टिंग उनकी सांस थी। वो इसके बिना रह ही नहीं सकते थे। उनके पिता ने उन्हें नाटक करने से काफी रोका। लेकिन फिर भी वो नहीं माने। वो शादीशुदा थे। उनके बच्चे भी हो गए थे। तब तक वो सिर्फ नाटक ही करते रहे थे। लेकिन, फिल्मों में आने से पहले सदाशिव को लेकर बताया जाता है कि वो नासिक में ऑटो भी चलाया करते थे।
‘महारानी’ बनकर छा गए सदाशिव
सदाशिव ने अपने करियर की शुरुआत साल 1983 में फिल्म ‘अर्धसत्य’ से की। इसके बाद उन्होंने ‘हुकूमत’,’ऐलान-ए-जंग’ (1989), ‘सड़क’ (1991), ‘छोटे सरकार’ (1996) जैसी फिल्मों में शानदार अभिनय कर दर्शकों का दिल जीत लिया था। हालांकि, उन्हें ‘सड़क’ में किन्नर महारानी के किरदार के लिए जाना गया, जिसके बाद बॉलीवुड में उनकी पहचान ‘महारानी’ बनकर ही रह गई। सदाशिव ने अपने इस किरदार से इतिहास ही रच दिया था। उनका ये रोल ना केवल लोगों को बल्कि अमरीश पुरी तक को खूब पसंद आया था। अमरीश पुरी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि सदाशिव से अच्छा ये किरदार कोई नहीं निभा सकता था। इसके लिए बेस्ट विलेन का अवॉर्ड भी सदाशिव को मिला था।
अधूरे रह गए सदाशिव के दो सपने
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो बताया जाता है कि एक्टर सदाशिव अमरापुरकर के दो सपने कभी भी पुरे नहीं हो पाए। अगर उनके उन सपनों की बात करें तो बताया जाता है कि इसमें पहला सपना था कि वो अपने गांव अरमापुर में एक घर बनाकर अपनी बाकी की जिंदगी वहीं बिताना चाहते थे। लेकिन तबीयत खराब हो जाने की वजह से वो अपना सपना पूरा नहीं कर पाए और उनकी ख्वाहिश अधूरी रह गई। इतना ही नहीं, इस बात का भी दावा किया जाता है कि वो अपने ही गांव में एक म्यूजियम भी खोलना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पैसे भी इकट्ठा कर लिए थे लेकिन उनका ये सपना भी अधूरा रह गया।