यह फिल्म हॉलीवुड फिल्म ‘शेफ’ का हिंदी रूपांतर है और बाकायदा कानूनी स्वीकृति लेकर ऐसा किया गया है। फिल्म के मूल में यह विचार है आप जिंदगी में एक सपना जरूर पालें लेकिन उस सपने को पूरा करने के सिलसिले में अपने परिवार का भी खयाल रखें। अगर परिवार को भूल गए तो सपना भी पूरा नहीं होगा। फिल्म में सैफ अली खान रोशन कालरा नाम के शेफ (हिंदी में सबसे नजदीकी शब्द है बावर्ची) बने हैं। रोशन बचपन से खाना बनाना सीखना चाहता है पर उसके पिता नहीं चाहते कि वह रेस्तरां या ढाबे के धंधे में जाए। लेकिन वह मानता नहीं और घर से भाग जाता है। आगे चलकर अमेरिका के एक रेस्तरां में काम करने लगता है। मगर एक दिन नौकरी से निकाल दिया जाता है।
इसके बाद कहानी लौटती है केरल के कोच्चि शहर यानी भारत में। नौकरी से हटाए जाने के बाद रोशन अपनी तलाकशुदा पत्नी राधा (पद्मप्रिया जानकीरमण) और बेटे अरमान (स्वर कांबले) से मिलने कोच्चि आता है। बेटे से उसका रिश्ता प्रगाढ़ होने लगता है। कोच्चि में रहते रहते रोशन एक पूड र्ट्क शुरू करता है जिसमें रोट्जा बनाना शुरू करता है। रोट्जा यानी रोटी और दूसरे मसाले मिलाकर पिज्जा की तरह का एक डिश (पता नहीं रोट्जा वाला पक्ष फिल्म में उभारा क्यों नहीं गया है)। उसका धंधा चल निकलता है पर उसके पास अमेरिका के एक अन्य रेस्तरां में काम करने का आॅफर आता है। क्या रोशन फिर से अमेरिका जाएगा और अपने बेटे अरमान का दिल तोड़ देगा? ‘शेफ’ अपने मूल में जजबाती फिल्म है और मानवीय रिश्तों की गरमाहट पर ध्यान देती है। सैफ अली खान और पद्मप्रिया जानकीरमण ने अपने किरदारों को बड़ी ही खूबसूरती से निबाहा है।
पद्मप्रिया की भूमिका ऐसी औरत की है जो सूक्ष्म तरीके से अपनी बात करती है, धमाकेदार तरीके से नहीं। अरमान की भूमिका में स्वर कांबले की मासूमियत और शरारत भी दर्शकों को पसंद आती है। रोशन के वृद्ध पिता के रूप में वरिष्ठ रंगकर्मी राम गोपाल बजाज हैं जिनकी अदा में दर्द भी है और उल्लास भी। फिल्म को देखते हुए केरल के दैनिक जीवन के दृश्य भी लुभावने लगते हैं। अब तक किसी हिंदी फिल्म में केरल इतना लुभावना नहीं लगा है। हो सकता है कि इसे देखने के बाद आपके मन में यह खयाल आए कि अगली छुट्टी केरल में बिताई जाए।फिल्म का एक अंतर्निहित संदेश यह भी है कि जो रिश्ते टूट गए या जिनमें दरार आ गई, उनको फिर से जोड़ा जा सकता है।