दुनिया के सबसे बड़े फिल्मकार स्टीवन स्पीलबर्ग का अपनी नई फिल्म बीएफजी के साथ कान फिल्मोत्सव में आना मायने रखता है। इससे पहले वे 2013 में यहां जूरी के अध्यक्ष रह चुके हैं। विज्ञान फंतासी पर आधारित अपनी दो बड़ी फिल्मों- ईटी(1982) और जुरासिक पार्क (1993) के बाद वे एक बार फिर अपने पसंदीदा विषय पर यह कहते हुए लौटे हैं कि बच्चे ही हमारी दुनिया को मिटने से बचाएंगे। बीएफजी का मतलब है -बिग फ्रेंड जायंट। लंदन के अनाथालय में दस साल की एक बच्ची सोफी नियम तोड़कर चांदनी रात में खिड़की का दरवाजा खोल देती है। ठीक उसी समय दुनियाभर से सपने इकट्ठे करने वाला एक जायंट ( विशालकाय प्राणी ) उसे उठाकर अपने देश ले जाता है। वहां अधिकतर जायंट नरभक्षी हैं, पर यह जायंट शाकाहारी है और मनुष्यों से प्रेम करता है। दोनों के बीच दादा-पोती का रोमांस शुरू होता है। वे ब्रिटेन की महारानी से मिलकर दूसरे बुरे जायंट को खत्म करने की योजना बनाते है और सफल होते है। सुप्रसिद्ध अमेरिकी लेखक रोअल्ड दहल के क्लासिक उपन्यास बीएफजी पर आधारित इस फिल्म को डिजनी ने पेश किया है जिसमें भारतीय कंपनी रिलायंस भी साझीदार है।

विज्ञान फंतासी वाली दूसरी फिल्मों से अलग स्पीलबर्ग ने मानवीय करुणा को फोकस में रखा है। हैरतअंगेज कारनामों वाले दृश्यों के बीच एक छोटी-सी बच्ची के माध्यम से वे जीवन का बड़ा दर्शन प्रस्तुत कर रहे हैं। यह भी दिलचस्प है कि बीएफजी के घर में सपनों का एक विशाल संग्रहालय है जहां रोशनी की शक्ल में सपने शीशे के बर्तनों में सुरक्षित हैं। स्पीलबर्ग कहते हैं कि उनके लिए सबसे जरूरी चीज है-उम्मीद । सिनेमा का जादू हमें यह उम्मीद देता है। सारी विज्ञान कथाएं हमें उम्मीद देती हैं। सिनेमा का कैमरा स्पेशल इफेक्ट एनीमेशन टेक्नालॉजी इसी उम्मीद को दृश्यों में बदलकर चमकदार बना देती हैं।

वे कहते हैं, मेरे लिए कहानी सबसे महत्त्वपूर्ण है। मेरा सपना है कि मैं ऐसी फिल्में बनाऊं जो दुनियाभर में समान रुचि से देखी जाए। इन कहानियों में मेरे लिए केवल अतीत में जाने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है इतिहास का कैमरे से इमेजिनेशन। मैं जानता हूं कि मुझसे दर्शकों की अपेक्षाएं बहुत बड़ी हैं। यह पूछने पर कि उनकी फिल्मों में रोमांस कम क्यों होता है जबकि हॉलीवुड का काम ही इसके बिना नहीं चलता, वे मुस्कुराते हुए कहते है: क्या दादा-पोती के बीच रोमांस नहीं हो सकता? रोमांस के लिए हमेशा जवान औरत-मर्द का होना जरूरी नहीं है। यहीं वह बिंदु है जो उन्हें दूसरे फिल्मकारों से न सिर्फ अलग करता है बल्कि वैश्विक बनाता है।

रिलायंस के साथ गठबंधन पर स्पीलबर्ग ने कहा कि वे इससे खुश हैं, संतुष्ट हैं। भारत में फिल्में बनाने के सवाल पर सीधा जवाब देने के बजाय उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि उनके लिए देशों की सीमाएं मायने नहीं रखतीं। वे वैश्विक फिल्में बनाना चाहते हैं। बताते हैं कि रिलायंस ने एक अनुमान के अनुसार, 4.500 करोड़ रुपए स्पीलबर्ग की क्पनी में लगाए हैं। भारत में बीएफजी को रिलायंस ही रिलीज कर रहा है। यह फिल्म एक जुलाई को दुनियाभर में रिलीज हो रही है।

दुनिया में कमाई का रिकॉर्ड बनाने वाले इस सत्तर वर्षीय फिल्मकार का मानना है कि जीवन में पैसा सबसे महत्त्वपूर्ण नहीं होता। यही वजह है कि बीएफजी में एक अनाथ बच्ची सोफी के माध्यम से उन्होंने खुशी का रहस्य बताने की कोशिश की है जो बच्चों के सपनों में देखी जा सकती है।