अमिताभ बच्चन-जया भादुड़ी की ‘अभिमान’ बताती थी कि पति-पत्नी एक ही पेशे में होते हैं तो उनमें सहज प्रतियोगिता, ईर्ष्या, अंहकार, उपेक्षा के भाव आना स्वाभाविक है। ‘अभिमान’ प्रेरित थी बीना राय और प्रेमनाथ की जिंदगी से। शादी के बाद बीना राय ‘अनारकली’, ‘ताजमहल’ और ‘घूंघट’ जैसी फिल्मों से शोहरत की बुलंदियों पर पहुंची, मगर प्रेमनाथ का कैरियर असफलताओं से घिरने लगा। यहां तक कि जब प्रेमनाथ की पहचान बीना राय के नाम से बनने लगी तो प्रेमनाथ का अभिमान जागने लगा।

निर्माता घर में आते थे प्रेमनाथ को लगता था कि वह उन्हें साइन करने आए, लेकिन वे बीना राय को साइन कर चले जाते थे। इससे उनके अहंकार को चोट लगती थी। वह अवसाद में घिरने लगे थे क्योंकि यह स्थिति लगभग 14 साल, 1956 से 1970 तक चली। इस दौरान प्रेमनाथ खुद से, अपने मनोविकारों से, लड़ते रहे। उन्होंने अपनी कंपनी बनाई। खुद हीरो बने, पत्नी को हीरोइन बनाया। मगर दर्शकों ने उनकी जोड़ी को नकार दिया था। आध्यात्मिक शांति की तलाश में वह भौतिक दुनिया से दूर हिमालय भी गए। कुछेक दिन वहां बिताए।

1970 तक ऐसी ही स्थिति चली और प्रेमनाथ रुद्राक्ष की माला पहने साधु बने नजर आए। प्रेमनाथ एक ओर अपनी कमजोरियों से लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर ‘आम्रपाली’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘बहारों के सपने’ जैसी हिट फिल्में भी कर रहे थे। उनके कैरियर को जिस करंट की जरूरत थी, वह मिला 1970 में विजय आनंद की ‘जॉनी मेरा नाम’ से, जिसने उन्हें नई इमेज दी। फिर एक के बाद एक सफल फिल्मों ने प्रेमनाथ को फिल्मजगत का व्यस्त और महंगा अभिनेता बना दिया। उनके जीजा राज कपूर हिट हीरो थे और 75 हजार मेहनताना ले रहे थे। दिलीप कुमार 50 हजार और देव आनंद को 35 हजार मिल रहा था। तब प्रेमनाथ सवा लाख रुपए रोज की फीस ले रहे थे। वह साल में सात-आठ फिल्में कर रहे थे।

सफलता से हौसला मिला और आध्यात्मिकता से शांति। फिर तो देखते देखते ही राज कपूर के साथ प्रेम चोपड़ा के भी जीजाश्री रहे प्रेमनाथ ने ‘धर्मात्मा’ से लेकर ‘बॉबी’ और ‘कालीचरण’ से लेकर ‘कर्ज’ जैसी सफल फिल्मों की लाइन लगा दी। कभी मधुबाला के इश्क में पड़े और उनसे शादी करने तक जा पहुंचे प्रेमनाथ बहुत भावुक और उदार व्यक्ति थे। मधुबाला से उनकी शादी के रास्ते में चाहे धर्म आड़े आ गया हो, मगर मधुबाला के लिए उनके दिल का एक कोना हमेशा खाली रहा था।

यही वजह है कि मधुबाला के निधन के बाद जब उनके पिता अताउल्लाह बीमार पड़े, तब उन्हें देखने गए प्रेमनाथ चुपके से उनके सिरहाने पर लाख रुपए रख आए थे। यह सोचकर कि अगर मधुबाला से उनकी शादी हुई होती, तब उन्हें अपने ससुर के लिए यह फर्ज निभाना पड़ता।