बॉलीवुड में माला सिन्हा ने उस समय अपनी पहचान बनाई थी, जब फिल्मी पर्दे पर नूतन, नर्गिस और मीना कुमारी जैसी एक्ट्रेसेस का बोलबाला था। इन एक्ट्रेसेस के बीच अपने आप को मशहूर करना आसान काम नहीं था। माला सिन्हा का बचपन का नाम अल्डा सिन्हा था। स्कूल में उनकी सहेलियां उन्हें डालडा कहकर पुकारा करती थीं। माला को अपनी पहली फिल्म अपने स्कूल से ही मिली। एक बार माला सिन्हा स्कूल के प्रोग्राम में अभिनय कर रहीं थीं तभी निर्देशक अर्धेन्दु बोस की नजरें उन पर पड़ी। अर्धेन्दु बोस बंगला फिल्मों के जाने-माने निर्देशक थे। बोस माला की एक्टिंग से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने माला को अपनी फिल्म रोशनआरा में काम करने का ऑफर दिया। बस यही से माला की फिल्मी सफर की शुरुआत हो गई। इसके बाद माला सिन्हा ने कई बंगला फिल्मों में काम किया। बॉलीवुड में माला को गुरुदत्त की प्यासा फिल्म से पहचान मिली। इसके बाद माला सिन्हा ने राजकपूर के साथ परवरिश और फिर सुबह होगी, देवानंद के साथ लव मैरिज और शम्मी कपूर के साथ फिल्म उजाला में हल्के फुल्के रोल कर अपने सिने करियर को एक नई दिशा देने में कामयाब रही।

माला सिन्हा की कामयाबी की कहानी जितनी दिलचस्प है, उतनी ही उनकी शादी की भी। बॉलीवुड में अपने पांव जमाने के बाद माला सिन्हा शादी के बंधन में बंध गई। माला सिन्हा ने अपने साथी कलाकार चिदंबर प्रसाद लोहानी के साथ 16 मार्च, 1968 को शादी की। इनकी शादी आज तक याद की जाती है। इसकी वजह माला की शादी में निभाई गई रस्में थी। सबसे पहले तो ईसाई माला सिन्हा और हिंदू सी.पी. लोहानी सिविल मैरिज कानून के अंतर्गत मैरिज रजिस्ट्रार के सामने मैरिज रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके हस्बैंड ऐंड वाइफ बने।

माला सिन्हा ईसाई थीं, इसी वजह से उनके पिता की इच्छा थी कि बेटी माला की शादी गिरिजाघर में कोई पादरी कराए। फिर इनकी शादी मुंबई के एक गिरजाघर में की गई। दो बार शादी होने के बाद भी लोहानी के परिवार को संतिष्टि नहीं मिली और हिंदू होने की वजह से उन्होंने यह शर्त रखी कि जब तक बहू सात फेरे नहीं लेगी, तब तक उसका गृह प्रेवेश नहीं होगा। इनकी शादी एक बार फिर हिंदू धर्म के मुताबिक रचाई गई।