आप जिसके प्रशंसक होते हैं और जिसकी एक झलक पाने का ख्वाब देखते हैं, मौका मिलते ही इस ख्वाब को पूरा करने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन बहुत कम ही ऐसे उदाहरण देखने को मिलेंगे जब कोई व्यक्ति अपने चहेते की सिर्फ एक झलक पाने के लिए तड़के चार बजे उठे। जाकर उससे मिले और कहे,‘आपको देखा, यह दिन मेरी जिंदगी की सर्वश्रेष्ठ दिन है।’ डॉ भूपेन हजारिका के साथ ऐसा ही हुआ। 1949 में हजारिका पीएचडी करने के लिए अमेरिका गए हुए थे। दरअसल वह बुनियादी शिक्षा में दृश्य-श्रव्य माध्यम के इस्तेमाल विषय पर शोध कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने तय किया कि यूरोप भी घूम लिया जाए। लिहाजा हजारिका फ्रांस पहुंच गए।
हजारिका की कोशिश थी कि किसी तरह से मशहूर चित्रकार पाब्लो पिकासो की एक झलक देखने को मिल जाए। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद पिकासो चित्रकला की दुनिया में लोकप्रिय नाम था। स्पेनिश मूल के पिकासो उन दिनों फ्रांस में थे और चित्रकला के साथ कविता लेखन में भी सक्रिय थे। हजारिका को बुजुर्ग गार्ड से पता चला कि पिकासो को देखा जा सकता है, बशर्ते तड़के चार बजे उठा जाए। उन्हें बताया गया कि चार बजे पिकासोमित्रों के साथ सैर के लिए निकलते हैं। यह उन्हें देखने का सबसे बढ़िया समय होगा।
हजारिका तड़के चार बजे उठे और वहां पहुंच गए जहां पिकासो सैर करने आते थे। कुछ ही समय में पिकासो अपने मित्रों के साथ नजर आए। हजारिका ने इस मौके को गंवाना ठीक नहीं समझा और तुरंत पिकासो के सामने जा पहुंचे। इससे पहले कि पिकासो कुछ कहें हजारिका ने कहा,‘सर! यह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन है।’
पद्मभूषण और दादा साहेब फालके पुरस्कार पा चुके डॉ हजारिका ने पिकासो को देखने और मिलने की अपनी दिली ख्वाहिश पूरी की और अमेरिका में रह कर पीएचडी भी की। यहीं पर उनकी मुलाकात और मित्रता मशहूर अमेरिकी गायक पॉल रॉबसन से हुई। साम्यवादी विचारधारा की ओर झुकाव के कारण उन्होंने अमेरिकी सरकार की ज्यादातियां खूब सहन की। उनके गाए गाने ‘ओल्ड मैन रिवर…’ (1936) से प्रभावित होकर हजारिका ने ‘गंगा बहती हो क्यों…’ जैसा अपार लोकप्रिय गाना गाया। बाल कलाकार के तौर पर फिल्मों में शुरुआत करने वाले हजारिका ने कॉलेज के संगीत कार्यक्रम में एक गाना गाया तो कॉलेज के संरक्षकों में से एक ने उन्हें 50 रुपए का पुरस्कार देने के साथ ही यह भी कहा था, ‘कुछ भी करना मगर गाना गाना मत छोड़ना।’
असमिया और बांग्ला लोक संगीत के इस अनुरागी ने 10 साल की उम्र से जो गाना शुरू किया तो 2011 में प्रदर्शित ‘गांधी टू हिटलर’ फिल्म तक लगातार गाते रहे। वक्त ने चाहे उनके नाम से सबसे लंबा पुल बनवा दिया हो, उन्हें 1967 से 1972 तक असम विधानसभा का सदस्य बनाया हो, मगर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के इस छात्र को उनके चाहने वाले ‘गंगा बहती हो क्यों…’ से ज्यादा जानते हैं तो इसलिए कि वह लोकसंगीत के ज्यादा निकट रहे। लोकसंगीत उनके जीन में था और मां की लोरियां सुनकर वह परवान चढ़ा था। लोकसंस्कृति के प्रेमी हजारिका ने बतौर निर्देशक अपनी पहली असमी फिल्म ‘ऐरा बातोर सुर’ (1956) में पहली बार लता मंगेशकर से गवाया था और इस गाने के बाद देखते ही देखते उनकी फिल्म बिक गई थी। 1992 में उन्हें दादा साहेब फालके और 2011 में पद््मभूषण से नवाजा गया था।

