दशकों तक एक ही किरदार करते-करते कोई भी एक्टर उकता जाता है। फिर सभी तरह की भूमिकाओं की तलाश करने लगता है। ऐसा ही हुआ था भोजपुरी सिनेमा के अमिताभ कहे जाने वाले कुणाल सिंह के साथ। 4 दशकों तक हीरो की भूमिका करते-करते कुणाल सिंह काफी बोर हो चुके थे। वह पर्दे पर सीधे-साधे इंसान की भूमिका से निजात पाना चाहते थे लिहाजा फिल्म मेकर्स से अपने लिए अलग किरदार की मांग कर डाली।

एक इंटरव्यू में कुणाल सिंह ने कहा था,  ‘एक दौर ऐसा भी आया जब मैं एक्टर बनते-बनते बोर हो गया। हर फिल्म में एक बेहतर इंसान का रोल। उन्होंने कहा था कि एक ही किरदार से उनके अंदर से मजा खत्म हो गया है। फिर उन्होंने सिनेमा मेकर्स से कहा अब वह विलेन बनना चाहते हैं। कुणाल सिंह ने जब फिल्ममेकर्स के सामने अपनी ये इच्छा जाहिर की तो किसी ने इसे सीरियस नहीं लिया। क्योंकि कुणाल सिंह की जो पर्दे पर छवि थी, उस लिहाज से ये बातें उन लोगों ने मजाक में ही लिया था।

बकौल कुणाल सिंह, ‘कुछ भी ज्यादा हो जाए तो मजा खत्म सा होने लगता है। तो फिर मैंने प्रड्यूसर और डायरेक्टर से कहा कि मैं अब विलेन बनना चाहता हूं। जब मैंने उनसे ये बात कही तो उन्हें लगा कि मैं मजाक कर रहा हूं। पर, मैं गंभीर था।’ कुणाल सिंह ने प्रोड्यूसर से आगे कहा कि कोई ऐसी स्क्रिप्ट लाइए जिसमें मैं विलेन रहूं।

विलेन के किरदार के लिए रखी ये शर्तः कुणाल सिंह ने जब विलेन बनने की अपनी इच्छा जाहिर की तो साथ ही ये शर्त भी रख दी कि अगर वे विलेन बनेंगे तो कोई भी रेप सीन नहीं करेंगे और ना ही किसी लड़की को छेड़ेंगे। इसके बाद कुणाल सिंह ने कई भोजपुरी फिल्मों में विलेन का किरदार निभाया। उन्होंने कहा था कि सच कहूं तो विलेन बनकर भी अच्छा लगा। कुणाल सिंह ने हर किरदार ईमानदारी से निभाया। उन्होंने कहा था कि मैं हर रोल में डूब जाने वाला कलाकार हूं।

बता दें साल 1983 में रिलीज उनकी भोजपुरी फिल्म ‘गंगा किनारे मोरा गांव’ काफी हिट रही थी। बच्चा हो या बूढ़ा भोजपुरी समझने वाले लोग इस मूवी की तारीफ करते नहीं थकते हैं। कुणाल सिंह की यह फिल्म वाराणसी के एक सिनेमा हॉल में लगातार एक साल चार महीने चली थी।लगातार 40 वर्षो से भोजपुरी इंडस्ट्री के लिए काम कर रहे कुणाल सिंह जी लगभग 300 के आस-पास फिल्में कर चुके हैं।