इंडियन टेलीविजन का बेहद ही लोकप्रिय शो, ‘भाभी जी घर पर हैं’ के सभी कलाकार अपने अभिनय से लोगों के पसंदीदा बने हुए हैं। एक ऐसे ही कलाकार हैं टीका – मलखान की जोड़ी के टीकाराम यानि वैभव माथुर। टीकाराम अपने लुक्स और हरकतों से दर्शकों का खूब मनोरंजन करते हैं। दर्शकों के बीच वैभव माथुर के इस किरदार की लोकप्रियता बहुत ज़्यादा है। लेकिन यह लोकप्रियता उन्हें इतनी आसानी से नहीं मिल गई बल्कि इसके पीछे उनका लंबा संघर्ष छुपा हुआ है। वैभव ने एक यूट्यूब चैनल सीक्रेट वॉलेट से बातचीत में अपने संघर्ष के दिनों को याद किया। उन्होंने बताया कि वो कई किलोमीटर पैदल ही चला करते थे और रास्ते में ही किसी चाय की दुकान से पानी मांगकर पी लिया करते।
उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों की कहानी सुनाई, ‘मुंबई में शुरू में मैं कई लोगों के पास जाता कि काम मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। पर उस वक्त इतना आशावादी हुआ करते थे कि कहीं न कहीं तो जुगाड़ बैठेगा और हमें काम मिलेगा। मैं आराम नगर की तरफ ऑडिशन देने गया था, वहीं पास में यारी रोड था तो मैं पैदल, पैदल ही चलकर गया। उस वक्त एक दो किलोमीटर पैदल ही चलते थे, वो जूनूनियत था एक पागलपन था। कई किलोमीटर के फासले चुटकियों में तय हो जाते थे। किसी से भी पानी मांगकर पी लिया चलते- चलते, चाय की टपरी है तो कहा कि अंकल पानी पिलाना, वहां पी लिया। बिसलेरी अफोर्ड नहीं कर पाते थे कहां से लाएं, क्या करें?’
वैभव माथुर ने आगे बताया, ‘मैं पैदल चलकर ऑडिशन वाले जगह, सातवे फ्लोर पर पहुंचा और उन्हें मैंने अपने बारे में बताया। उन्होंने मेरी 20 – 25 फोटोज ले ली, ये भी ले रहे थे, वो भी ले रहे थे। और इधर मेरी जान सूख रही थी कि पांच रुपए गए, पांच रुपए गए। ऐसे करके वो मेरे कितने पैसे ले गया। वो क्या करेगा, उसे फाड़कर फेंक देगा। मैं नीचे उतर कर जैसे ही वहां से गया, उनका वापस फोन आया और जब मैं पहुंचा तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैंने थियेटर किया है?’
वैभव ने आगे बताया कि जब उन्होंने थियेटर में किया गया एक परफॉर्मेंस दिखाया तो प्रोड्यूसर ने कहा कि वो बहुत लाउड हैं और टीवी सीरियल के लिए लाउड होने की जरूरत नहीं। उन्होंने आगे बताया, ‘मैंने फिर उन्हें टोन डाउन होकर अपना परफॉर्मेंस दिया और वो मेरे परफॉर्मेंस से बहुत खुश हो गए थे। उन्होंने कहा कि आप फिट हो किरदार के लिए। मैंने 2005 में उस सीरियल के 40 एपिसोड किए, वो मेरा पहला ब्रेक था। उसके बाद मेरे पास इतना तो पैसा नहीं हो पाया कि मैं अपने घर भेज सकूं लेकिन मुंबई में मेरा किचन आसानी से चल जाता था।’