कलाकार- टाइगर श्रॉफ, दिशा पाटनी, मनोज वाजपेयी, रणबीर हुड्डा, दर्शन कुमार, प्रतीक बब्बर, दीपक डोब्रियाल
‘बागी-2’ एक दमदार और मनोरंजक फिल्म है। इसमें लगभग हर वह मसाला है जो इसे जायकेदार बना देता है। जबर्दस्त और लोमहर्षक एक्शन है, रोचक कहानी है, दिल को छूने वाला रोमांस है और सस्पेंस है। नशाखोरी की समस्या है, पुलिस का भ्रष्टाचार है, सैनिकों की वीरता है तो राष्ट्रवाद भी है। वॉलीबाल है तो अपराध का तिलिस्म भी। मनोज वाजपेयी के खलनायकी वाले दृश्य भी असरदार हैं। टाइगर श्रॉफ ने रॉनी उर्फ कैप्टन रणबीर प्रताप सिंह नाम के ऐसे कड़क सेना अफसर की भूमिका निभाई है जो कश्मीर में आतंकवादियों के छक्के छुड़ा देता है। उसे किसी भी हालत में तिरंगे का अपमान बर्दाश्त नहीं है। एक दिन उसे ड्यूटी पर पुरानी प्रेमिका नेहा (दिशा पाटनी) का खत मिलता है – ‘जल्द आओ’। नेहा और रॉनी चार साल पहले तब बिछुड़े थे जब दोनों की शादी लगभग होने ही वाली थी। लेकिन परिस्थितिवश नेहा की शादी किसी और से हो जाती है। चार बरस बाद नेहा के साथ एक दुर्घटना घटती है, उसकी छोटी-सी बेटी को कोई अगवा कर लेता है। नेहा का खत पाकर रॉनी गोवा पहुंचता है जहां वह रहती है। नेहा उसे बेटी रिया को खोजने को कहती है। रॉनी उस काम में लग भी जाता है।
पहले पुलिस से उसकी झड़प होती है जिसमें उसकी जमकर धुनाई होती है। फिर परिस्थितियां ऐसी बनने लगती हैं कि ऱॉनी को लगने लगता है कि नेहा तो मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गई है और उसकी कोई बेटी थी ही नहीं, रिया तो बस कल्पना की उपज थी। इसी बीच नेहा अपने फ्लैट से कूदकर जान दे देती है? अब क्या? फिर कुछ ऐसी घटनाएं घटती हैं कि कहानी में नाटकीय मोड़ आते हैं और आते ही रहते हैं। रिया सच में थी या नहीं, थी तो उसे किसने अगवा किया और पूरा मामला क्या है-जैसे पहलू धीरे धीरे उभरते हैं। क्लाइमेक्स ताज्जुब पैदा करने वाला है।
फिल्म में रणदीप हुडा का भी मजेदार किरदार है। फिल्म की खूबी ये है कि हर चरित्र अपनी खासियत लिए हुए है। एक्शन सीन जोरदार है। दिशा पाटनी भी अच्छी लगी हैं। एक चरसी खलनायक सनी के रूप में प्रतीक बब्बर जमे हैं। दीपक डोब्रियाल की भूमिका छोटी सी है लेकिन बेहतरीन है। ‘बागी-2’ एक पारिवारिक फिल्म है और परिवार के हर सदस्य के लिए इसमें कुछ न कुछ है। वैसे यह एक तेलुगु फिल्म का रिमेक है। इसलिए मौलिकता की तलाश करनेवाले यहां ज्यादा मगजमारी नहीं करें।