1950 में हिंदी सिनेमा म्यूजिक पर निर्भर हुआ करता था। उस वक्त फिल्मों में लोग गानों को अधिक पसंद किया करते थे। तभी साल 1960 में बीआर चोपड़ा ने कुछ ऐसा किया था जिसे अब भी याद किया जाता है। दरअसल चोपड़ा ने बिना संगीत के फिल्म बनाई, जिसे नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया। हम बात कर रहे हैं उनकी फिल्म ‘कानून’ की। जिसमें अशोक कुमार, राजेंद्र कुमार और नंदा था। ये हिंदी सिनेमा की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसमें गीत नहीं थे और इसने केवल अपनी कहानी से ही दर्शकों का दिल जीत लिया था।
उनकी पिछली कई फिल्मों, ‘नया दौर’ और ‘साधना’ की तरह ‘कानून’ ने भी समाज के कामकाज को प्रभावित करने वाली एक समस्या को उठाया और उसके इर्द-गिर्द अपनी कहानी गढ़ी। फिल्म की कहानी मृत्युदंड के बारे में थी। कानून की शुरुआत एक ऐसे व्यक्ति से होती है जिससे किसी की हत्या करने के लिए पूछताछ की जा रही है, और दोषी साबित होने पर उसे जेल की सजा दी जाएगी, या मौत की सजा दी जाएगी।
अगर आप इस फिल्म को 2023 में देखेंगे, तो ये शायद आपको उतनी खास नहीं लगेगी। इस दौर में भले ही फिल्म को उतना सराहा न जाए, लेकिन उस वक्त फिल्म को खूब पसंद किया गया था। फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म इन हिंदी कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था।
इसके अलावा बीआर चोपड़ा की ‘महाभारत’ भी काफी पसंद की गई थी। आज चोपड़ा की 109वीं बर्थ एनिवर्सरी है, इस मौके पर हम आपको उनकी महाभारत के बारे में भी काफी खास बात बताने जा रहे हैं। उन्होंने 1988 में महाभारत बनाई थी, जो कई सालों तक टीवी पर चली। इसे बनाने के लिए उस वक्त भी बीआर चोपड़ा को 9 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे।
भारत में इन्होंने नए सिरे से करियर शुरू किया। पहली फिल्म फ्लॉप रही, लेकिन उसके बाद एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं। बी.आर. चोपड़ा के ही कोर्ट केस के कारण मधुबाला और दिलीप कुमार का रिश्ता टूटा था, जो उस समय का चर्चित अफेयर था। 1988 में टीवी सीरियल महाभारत बनाने में इन्होंने 9 करोड़ रुपए खर्च किए थे। 35 साल पहले भी उनकी क्रिएटिविटी को खूब पसंद किया जाता था। 80 के दशक में ऐसा शो बनाने के लिए आज भी उन्हें सराहा जाता है।