इन दिनों टीवी कलाकार शिल्पा शिंदे और सीरियल ‘भाबीजी घर पर हैं’ की प्रोड्यूसर के बीच तनातनी के चलते एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों, उससे जुड़ी नैतिकता आदि के बारे में काफी बहस छिड़ी हुई है। पर कॉन्ट्रैक्ट के चलते अभिनेता और निर्माता के बीच विवाद का इतिहास नया नहीं है। यह विवाद तब से चला आ रहा है, जब से भारत में फिल्में बननी शुरू हुईं। भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ भी इस विवाद से अछूती नहीं रही। विवाद यहां तक बढ़ा कि मामला कोर्ट पहुंच गया और पाकिस्तान के कायद-ए-आजम कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने अभिनेता की ओर से कोर्ट में मुकदमा लड़ा। तब जाकर उस दौर के मशहूर एक्टर मास्टर विट्ठल ‘आलमआरा’ में पर्दे पर दिखाई दे सके। पूरा किस्सा कुछ यूं है-
1931 में बनी भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ के लिए आर्देशिर ईरानी ने मास्टर विट्ठल को लीड रोल ऑफर किया। विट्ठल उस दौर के नामी सितारे थे। यह ऑफर पाकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वह इतने खुश हुए कि उन्होंने शारदा स्टूडियो से पहले से किए गए करार का भी ख्याल नहीं किया और फिल्म साइन कर ली। जब शारदा स्टूडियो के मालिक को पता चला तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया। पर मास्टर विट्ठल टस से मस नहीं हुए। उन्होंने करार खत्म करने तक की धमकी दे डाली। शारदा स्टूडियो के मालिक किसी भी कीमत पर मास्टर विट्ठल को ‘आलमआरा’ में काम करने से रोकना चाहते थे। वह कोर्ट पहुंच गए। पर विट्ठल साहब भी झुकने के मूड में नहीं थे। उन्होंने उस दौर के मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना को अपना केस लड़ने के लिए रखा। पाकिस्तान के जिन्ना ने भी बड़ी शिद्दत से केस लड़ा और जीत भी गए। तब जाकर मास्टर विट्ठल को लोग ‘आलमआरा’ में देख पाए।
करार को लेकर एक और पुराना, गुमनाम किस्सा 1962 में गुरुदत्त द्वारा निर्मित ‘साहिब, बीवी, गुलाम’ से जुड़ा है। इस फिल्म में गुरुदत्त ने ‘भूतनाथ’ का किरदार भी निभाया था। पहले उन्होंने यह रोल विश्वजीत को ऑफर किया था। पर उनकी एक शर्त के चलते विश्वजीत ने ऑफर ठुकरा दिया था और अंत में गुरुदत्त ने खुद वह रोल करने का फैसला किया। उन दिनों विश्वजीत के एक नाटक की गजब धूम थी। उसका मंचन करने वहां जहां पहुंचते, वहीं भीड़ उमड़ पड़ती थी। एक दिन कलकत्ता (अब कोलकाता) में उसका मंचन होना था। उस दिन गुरुदत्तर भी कलकत्ते में ही थे। वह भी नाटक देखने पहुंच गए। विश्वजीत के अभिनय ने उनके ऊपर गहरी छाप छोड़ी। वह उनसे मिलने पहुंचे। उन्हें नाटक में शानदार रोल के लिए बधाई दी और लगे हाथ ‘साहिब, बीवी गुलाम’ में काम करने का ऑफर भी दे डाला।
गुरुदत्त के ऑफर से विश्वजीत फूले नहीं समाए। उन्होंने झट से ऑफर मंजूर कर लिया। गुरुदत्त ने उन्हें बंबई (अब मुंबई) बुलाया। विश्वजीत बंबई पहुंचे। गुरुदत्त ने फिल्म की अन्य कलाकारों वहीदा रहमान, मीना कुमारी से उनका परिचय करवाया। मेल-मिलाप की औपचारिकता के बाद गुरुदत्त ने विश्वजीत के सामने कॉन्ट्रैक्ट की फाइल रख दी। विश्वजीत ने इसे पढ़ा। उन्हें किसी बात पर कोई आपत्ति नहीं थी। पर एक शर्त पर उन्होंने आपत्ति जता दी। शर्त यह थी कि पांच साल तक विश्वजीत किसी और के साथ काम नहीं करेंगे। उन्होंने गुजारिश की कि यह शर्त हटा ली जाए। पर गुरुदत्त नहीं माने। विश्वजीत भी अड़े रहे और अंत में उन्होंने काम करने से मना कर दिया। इसके बाद ही ‘भूतनाथ’ का किरदार गुरुदत्त ने खुद निभाने का फैसला किया।
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