कर्नाटक के अगले मुख्यमंत्री को लेकर तीन दिन से जारी उथल-पुथल अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती नजर आ रही है। सीएम पद के लिए पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस में बैठकों का दौर चल रहा है। हालांकि अब सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री बनना करीब-करीब तय माना जा रहा है। मुख्यमंत्री पद की रेस में डीके शिवकुमार और सिद्धरमैया का नाम सबसे आगे है। इसके चलते, दोनों दिग्गज नेता पिछले दो दिन से दिल्ली में हैं। पार्टी हाईकमान ने दोनों नेताओं से अलग-अलग मीटिंग की हैं और अब सिद्धरमैया का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा है। हालांकि, इसकी अभी तक औपचारिक रूप से कोई घोषणा नहीं की गई है।
सिद्धरमैया ने कर्नाटक चुनाव से पहले ही यह साफ कर दिया था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। उन्होंने कहा था कि अगर पार्टी मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम पर विचार नहीं कर रही है और कांग्रेस पीसीसी प्रमुख डी के शिवकुमार के साथ नेतृत्व में बदलाव देख रही है, तो वह अपना नाम वापस ले लेंगे। इन सब कारणों से भी सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। अब सिद्धरमैया के राजनीतिक करियर पर एक नजर डालते हैं कि एक कार्यकर्ता से सीएम बनने तक का उनका सफर कैसा रहा-
सिद्धरमैया का जन्म 12 अगस्त 1948 को मैसूर जिले में हुआ था। उनके पिता सिद्धारमे गौड़ा एक किसान थे। सिद्धरमैया का जन्म कुरुबा गौड़ा समुदाय में हुआ था और वह 5 भाई-बहनों में दूसरे नंबर के हैं। बचपन में उनकी पढ़ाई में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। वह मवेशियों की देखभाल करते थे और पिता के साथ खेतों में भी काम करते थे। वह बचपन में थोड़े जिद्दी स्वभाव के थे। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी वह सब्जियां और घर का राशन लाने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे और घर आकर मुरमुरा खाते थे, जो कि उन्हें काफी पसंद था। उनकी पढ़ने में ज्यादा रुचि नहीं थी। सिद्धारमैया के एक रिश्तेदार के मुताबिक, सिद्धरमा का मतलब होता है एक ऐसा शख्स जो वह चाहता है उसे पा लेता है। सिद्धारमैया राजनीति में आने से पहले एक वकील थे। उन्होंने ग्रेजुएशन मैसूर यूनिवर्सिटी से की है। उनके पास बीएससी और लॉ की डिग्रीयां हैं।
1978 में की राजनीतिक करियर की शुरुआत
सिद्धरमैया ने साल 1978 में अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत की और 1983 में चामुंडेश्वरी सीट से पहली बार लोकदल पार्टी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा। इसके बाद वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। वह ‘कन्नड़ कवलू समिति’ के पहले अध्यक्ष थे। इस समिति को तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े के कार्यकाल में गठित किया गया था, जिसे कन्नड़ को आधिकारिक भाषा के कार्यान्वयन की निगरानी करने की जिम्मेदारी वाली एक समिति के रूप में जाना जाता था। इसके बाद वह रेशम उत्पादन मंत्री बने। उन्होंने हेगड़े सरकार में पशुपालन और पशु चिकित्सा सेवाओं के मंत्री के रूप में भी काम किया। हालांकि, 1989 और 1999 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 1992 में उन्हें जनता दल का महासचिव बनाया गया। 1994 के चुनाव के बाद उन्हें जनता दल के देवे गौड़ा की सरकार में वित्त मंत्री बनाया गया और 1996 में वह मुख्यमंत्री जे एच पटेल के कार्यकाल में डिप्टी सीएम बनाए गए।
जेडी(एस) छोड़ी और थाम लिया कांग्रेस का हाथ
1980 से 2005 तक सिद्धरमैया का कांग्रेस के साथ छत्तीस का आंकड़ा था, लेकिन जेडी(एस) से उनके निष्कासन के बाद समीकरण बदल गए। 22 जुलाई 1999 को सिद्धारमैया को उपमुख्यमंत्री के पद से बर्खास्त कर दिया गया और मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। इसके बाद जनता दल के विभाजन के बाद वह जनता दल (सेक्युलर) गुट में शामिल हो गए और इसकी राज्य इकाई के अध्यक्ष बने। हालांकि, वह 1999 के विधानसभा चुनाव में वह हार गए।
2004 में कांग्रेस और जेडी(एस) ने साथ मिलकर सरकार बनाई और सिद्धरमैया फिर से उपमुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2005 में देवेगौड़ा के साथ मतभेदों के चलते उन्होंने जेडी(एस) का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए और 2006 में चामुंडेश्वरी उपचुनाव जीता। देवेगौड़ा के बेटे एच डी कुमारस्वामी के राजनीति में कदम रखने के साथ ही सिद्धारमैया के पार्टी में मतभेद शुरू हो गए। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धारमैया तेजी से राजनीति में उभर रहे थे। ऐसे में देवेगौड़ा को यह चिंता सताने लगी कि वह कुमारस्वामी के लिए खतरा बन सकते हैं और 2005 में उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया। 2008 में उन्होंने वरुणा सीट से चुनाव लड़ा और पांचवीं बार फिर से चुने गए। 2013 में वह फिर इसी सीट से चुनाव लड़े और जीतकर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2018 में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उस साल विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडी(एस) की गठबंधन की सरकार बनी और एच डी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बनाए गए।
कर्नाटक के पहले सीएम, जिसने पूरा किया कार्यकाल
इसके अलावा, उन्होंने 13 बार वित्त मंत्री के तौर पर कर्नाटक का बजट पेश किया। वह 40 सालों में राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिसने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया।