Lok Sabha Elections: समय के साथ ही चुनाव पर लगातार खर्चा बढ़ता जा रहा है। आज के समय में चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष और सुचारु ढंग से चुनाव कराना महंगा हो गया है। देश में पहले लोकसभा चुनाव से अब तक वोट करने वालों से लेकर वोटिंग के तरीके तक में बहुत बदलाव आया है। पहले बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता था, जो अब ईवीएम और वीवीपैट में तब्दील हो गया है। राजनीतिक दलों की तरफ से भी बीते कुछ सालों में धन-बल का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। इस पर भी चुनाव आयोग ने नकेल कसी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके एक वोट की कीमत क्या है?
पहले आम चुनाव में कितना खर्च आया
इस बार 18वीं लोकसभा के चुनाव होंगे। इस चुनाव में लगभग 97 करोड़ से ज्यादा वोटर्स हिस्सा लेंगे। मतदाताओं की संख्या के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव होने वाला है। देश में पहली बार जब 1951 में आम चुनाव हुए थे, तब करीब 17 करोड़ वोटर्स ने इसमें भाग लिया था। उस वक्त प्रति मतदाता 60 पैसे का खर्च आया था। हालांकि, पहले आम चुनाव में सिर्फ 10.5 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। वहीं, 2019 तक आते-आते 6500 करोड़ रुपये का खर्च आया।
लोकसभा चुनाव के खर्च के आंकड़ों की बात करें तो 1957 के आम चुनाव को छोड़कर हर लोकसभा चुनाव में खर्च में बढ़ोतरी हुई है। 2009 से 2014 के बीच तो चुनाव का खर्च करीब तीन गुना बढ़ गया। 2009 के लोकसभा चुनाव में जहां 1114.4 करोड़ रुपए खर्च हुए थे तो 2014 में 3870.3 करोड़ रुपए खर्च हुए और 2019 के लोकसभा चुनाव में 6500 करोड़ रुपये का खर्च आया था।
अगर प्रति वोटर की बात की जाए तो पहले लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग ने प्रति वोटर 60 पैसे खर्च किए थे। साल 2004 में यह बढ़कर 17 रुपये और 2009 में 12 रुपये प्रति वोटर पर जा पहुचां। वहीं, साल 2014 के चुनाव में इसमें भारी बढ़ोतरी देखी गई। साल 2014 में प्रति मतदाता खर्च 46 रुपये हो गया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यह खर्च बढ़कर 72 रुपये प्रति वोटर पहुंच गया था। देश में सबसे कम खर्चीला लोकसभा चुनाव 1957 का था। तब चुनाव आयोग ने सिर्फ 5.9 करोड़ रुपये खर्च किए थे। यानी प्रति मतदाता तब चुनाव खर्च केवल 30 पैसा आया था। हालांकि, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में इसके और बढ़ने की संभावना है।
कौन उठाता है खर्च
अब सभी के मन में सवाल उठ रहा होगा कि लोकसभा चुनाव का खर्च कौन वहन करता है। तो बता दें कि लोकसभा चुनाव का सारा खर्च केंद्र सरकार वहन करती है। इसमें चुनाव आयोग के प्रशासनिक कामकाज से लेकर, चुनाव में सिक्योरिटी, पोलिंग बूथ बशीन खरीदने, वोटर्स को जागरूक करने और वोटर आईडी कार्ड बनाने जैसे खर्चे शामिल हैं। आजादी के बाद लंबे समय तक बैलेट पेपर के माध्यम से ही चुनाव हुए थे। 2004 से हर लोकसभा क्षेत्र में ईवीएम के जरिए ही वोटिंग होती है। इलेक्शन कमीशन के मुताबिक साल दर साल ईवीएम मशीन की खरीद के खर्च में भी इजाफा हुआ है।
चुनाव के खर्च में बढ़ोतरी क्यों हुई
लोकसभा चुनाव का खर्च भी कुछ वजहों से बढ़ा है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि एक तो वोटर्स की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। दूसरा प्रत्याशियों से लेकर पोलिंग बूथ और संसदीय क्षेत्रों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। 1951-1952 के लोकसभा चुनाव में 53 पार्टियों के 1874 उम्मीदवार 401 सीटों से मैदान में उतरे थे। 2019 में यह संख्या काफी बढ़ गई। पिछले आम चुनाव में 673 पार्टियों के 8054 उम्मीदवारों ने 543 सीटों पर अपनी किस्मत आजमाई थी। देशभर में कुल 10.37 लाख पोलिंग बूथ पर वोटिंग हुई थी।