मध्य प्रदेश में चुनावों का रोमांच चरम पर है। मतदान में अब सिर्फ एक हफ्ता शेष है। इस दौरान 29 नवंबर को शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री पद पर 13 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस लंबे दौर में खुद की जगह बेहद मजबूत कर लेने वाले शिवराज के लिए भी मौजूदा कार्यकाल इतना आसान नहीं रहा। कई मौके ऐसे आए जब वे मुश्किलों से घिरे पाए गए। इन मुद्दों की आग अब भी गर्म है ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होता है कि ये मुद्दे मुख्यमंत्री बनने की हैट्रिक लगा चुके शिवराज को चौका लगाने देंगे या इस बार उन्हें रन आउट होना पड़ेगा। एक नजर डालते हैं मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला बताए जाने वाले व्यापमं घोटाले और शिवराज को दोधारी तलवार पर खड़ा करने वाले जातियों के मुद्दे पर।
व्यापमं घोटाला
मध्य प्रदेश में कई सरकारी पदों पर नियुक्ति और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश हेतु परीक्षाएं आयोजित करने वाले व्यावसायिक परीक्षा मंडल का घोटाला शिवराज सरकार के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है। राज्य सरकार के मंत्री, प्रशासनिक अधिकारियों, माफियाओं और कई बड़े कारोबारियों के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया गया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक की जांच में नियमों को ताक पर रखकर भर्ती करना, रिश्वतखोरी, बिना रिकॉर्ड जरूरी सामानों की खरीदारी को अंजाम दिया गया। यह घोटाला कई सालों से चल रहा था लेकिन 2013 में इसका खुलासा हो पाया। इस घोटाले में शिवराज के मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा समेत कई दिग्गजों को जेल भी हुई। मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा घोटाला बताए जा रहे इस कांड में पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव का बेटा शैलेष यादव भी लपेटे में आया था। इस घोटाले की एसआईटी और सीबीआई जांच के दौरान कई दर्जन लोगों की मौत का मामला भी खूब जोरशोर से उठा। हालांकि अंत में शिवराज सिंह चौहान को मामले में क्लीनचिट मिल गई लेकिन घोटाले पर जांच का कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया। इस घोटाले में हजारों प्रतिभाओं के साथ खिलवाड़ हुआ और सिस्टम में बैठे सैकड़ों लोगों ने करोड़ों-अरबों की कमाई की।
आरक्षण और एससी-एसटी अधिनियम
इन दो मुद्दों ने शिवराज सिंह चौहान को सामान्य वर्ग और पिछड़ी जातियों के संतुलन की स्थिति से हिला दिया। आरक्षण को लेकर शिवराज सिंह ने बयान दिया था कि कोई माई का लाल आरक्षण नहीं हटा सकता। इसके बाद बेरोजगारी की मार झेल रहे सामान्य वर्ग में उनके खिलाफ जमकर आक्रोश फूटा। इसके बाद शिवराज ने डैमेज कंट्रोल के लिए एट्रोसिटी एक्ट को लेकर बयान दिया जिसने अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों ने भी उनका विरोध कर दिया। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने जब दुरुपयोग की बात करते हुए अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में सुधार की बात कही तो देशभर में हंगामा हुआ। बाद में आंदोलनों के दबाव में केंद्र की मोदी सरकार ने इस मसले पर अध्यादेश लाकर बदलाव के बजाए इसे और मजबूत करने पर जोर दिया था। इसी तारतम्य में शिवराज ने बयान दिया कि मध्य प्रदेश में कानून का दुरुपयोग नहीं होगा और किसी की बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होगी।