उत्‍तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजर है। यूपी में मुख्य मुकाबला भाजपा, बसपा और सपा के बीच माना जा रहा है। कांग्रेस और रालोद राज्य में सियासी असर तो रखते हैं लेकिन इतना नहीं कि अकेले दम पर कोई उलटफेर कर सकें। शायद यही भांप कर कांग्रेस ने सपा से गठबंधन कर लिया और रालोद मजबूरी में अलग लड़ रहा है। राजनीतिक जानकार राज्य में अगड़ी जातियों को भाजपा, यादवों को सपा और दलितों को बसपा का मुख्य जनाधार मानते हैं। राज्य में करीब 22 प्रतिशत अगड़ी जातियां, करीब 21 प्रतिशत दलित, करीब 8 प्रतिशत यादव और करीब 19 प्रतिशत मुसलमान हैं। 2012 में सपा को करीब 29 प्रतिशत वोटों के साथ बहुमत मिला था। वहीं बसपा को 2007 में करीब 30 प्रतिशत वोटों के साथ बहुमत मिला था। यानी किसी एक सामुदायिक गुट के वोटों से किसी पार्टी की नाव पार नहीं होगी। इसीलिए मुसलमान मतदाताओं पर सभी दलों की नजर है। आइए एक नजर डालते हैं कि राज्य के मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए राज्य के प्रमुख दल क्या रणनीति अपना रहे हैं।

समाजवादी पार्टी (सपा)- राज्य की राजनीति में पिछले ढाई दशकों से सपा अगर प्रमुख दावेदार बनी हुई है तो इसके पीछे मुस्लिम-यादव समीकरण का योगदान माना जाता है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने 1990 में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवा दी थी। तब से वो राज्य के मुसलमानों की पहली पसंद बने हुए हैं। मुलायम की मुसलमानपरस्ती को देखते हुए उन्हें मौलाना मुलायम भी कहा जाने लगा। 2012 में जब सपा को बहुमत मिला तो मुलायम ने बेटे अखिलेश यादव को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया। अखिलेश ने 2012 में अपने मंत्रिमंडल में 10 मुस्लिम विधायकों को मंत्री बनाया था। पिछले पांच सालों में यूपी में हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण राज्य के मुसलमान सपा से खफा हैं। मुजफ्फरनगर दंगे में करीब 50 हजार मुसलमानों को विस्थापित होना पड़ा। राज्य के मुसलमान इसके लिए भाजपा के साथ ही सपा को भी जिम्मेदार मानते हैं।

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2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में अपनी प्रदर्शन से सभी राजनीतिक पंडितों को चकित कर दिया।

सपा मुसलमान वोटरों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए अपरोक्ष रूप से भाजपा के सत्ता में आ जाने का डर दिखा रही है। पार्टी को उम्मीद है कि मुसलमान-यादव समीकरण के परंपरागत वोटों के साथ ही अखिलेश यादव की लोकप्रियता के सहारे युवाओं एवं अन्य वर्ग के वोट उसे मिलेंगे तो वो आराम से सत्ता में वापस आ जाएगी। स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं की सबसे बड़ी जमात सपा के साथ है। पार्टी को उम्मीद है कि चुनाव के पहले-पहले तक आजम खान, महबूब अली, शाहिद मंजूर, इकबाल महमूद जैसे पार्टी नेता मुसलमान वोटरों को साथ बनाए रखने में कामयाब रहेंगे। लेकिन अभी सपा को सबसे ज्यादा खतरा अंदरूनी कलह से है। 2002 के विधान सभा चुनाव में सपा को राज्य के 54 मुस्लिम वोटरों ने वोट दिया था। 2009 के लोक सभा चुनाव में उसे केवल 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले। 2014 को लोक सभा चुनाव में सपा को 58 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे। यानी सत्ता में वापसी के लिए पार्टी को 50 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम वोटों की जरूरत होगी। मुसलमान उसके खेमे में ही रहें, इसलिए सपा ने कांग्रेस से गठबंधन भी कर लिया है।

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2012 के विधान सभा चुनाव में राज्य के मतदाताओं ने सपा को बहुमत दिया औऱ अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा)- बसपा प्रमुख मायावती इस बार मुस्लिम वोटरों को लेकर बहुत आक्रामक हैं। बसपा ने सबसे पहले राज्य की सभी 403 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। पार्टी ने मुसलमानों को लुभाने के लिए 97 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है। 2012 में बसपा ने 85 मुसलमानों को टिकट दिया था। 2002 में केवल नौ प्रतिशत मुसलमानों ने बसपा को वोट दिया था लेकिन 2014 के लोक सभा चुनाव में पार्टी को 18 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे। मुसलमानों को बड़ी संख्या में टिकट देने के अलावा मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी के रूप में पार्टी का एक मुस्लिम चेहरा भी तैयार करने की कोशिश की। युवा मुसलमानों को लुभाने के लिए मायावती ने नसीमुद्दीन के बेटे अफजाल सिद्दीकी को उतारा गया है। अफजाल के नेतृत्व में बसपा ने भाईचारा समिति का गठन किया है। मुसलमानों को लुभाने के लिए मायावती पिछले कुछ समय से मौके बे मौके कुरान-हदीस का भी जिक्र करती नजर आ रही हैं। तीन तलाक जैसे मुद्दों पर मायावती ने शरिया कानून से छेड़छाड़ को लेकर भाजपा को चेतावनी दी। पार्टी मुसलमानों को अपने पाले में लाने के लिए सपा के कद्दावर मुस्लिम नेताओं पर भी डोरे डाल रही है। साथ ही पार्टी अल्पसंख्यकों को आरक्षण देने जैसे मुद्दों के सहारे भी मुस्लिम वोटों को जोड़ने की कोशिश कर रही है।

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2009 के लोक सभा चुनाव में राज्य में सबसे शानदार प्रदर्शन बसपा का रहा था।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)- आम तौर पर माना जाता है कि ज्यादातर मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते। इतना ही नहीं ये भी माना जाता है कि मुसलमान उसी पार्टी को वोट देते हैं जो भाजपा को हराने की स्थिति में हो। लेकिन पिछले तीन विधान सभा चुनावों में भाजपा मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थित करीब 22 प्रतिशत विधान सभा सीटों पर जीत हासिल करती आ रही है। ऐसा नहीं है कि भाजपा को मुस्लिम वोट बिल्कुल नहीं मिलते। हालांकि पार्टी को मिलने वाले मुसलमान पांच प्रतिशत से भी कम रहे। माना जाता है कि शिया मुसलमान भाजपा को ठीकठाक संख्या में वोट देते हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार मुसलमानों वोटरों को तोड़ने के लिए भाजपा अपना सीधा मुकाबला सपा से बता रही है। पार्टी को उम्मीद है कि अगर मुकाबला उसके और सपा के बीच होगा तो मुसलमानों का एक तबका जो सपा से नाराज है वो उसका मुकाबला कर रही भाजपा के साथ आ सकता है।

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2007 के विधान सभा चुनाव में वोट पाने के मामले में बसपा सबसे आगे रही। पार्टी को 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 सीटों पर जीत मिली और मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
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2004 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा। यूपी में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा।

 

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2002 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में राज्य में वोट प्रतिशत और सीटों दोनों लिहाज से सपा पहले स्थान पर रही थी।