ऋचा रितेश
कहावत है कि राजनीति में न कोई दोस्ती हमेशा के लिए होती है और न कोई दुश्मनी। इसीलिए बिहार में पिछले कुछ समय से जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से अंदरखाने हाथ मिलाने की अफवाहें रह-रह कर हवा में तैरनी लगती हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में सीएम नीतीश कुमार का प्रचार के लिए न जाना और जदयू का पूरे राज्य में एक भी उम्मीदवार न उतराने के पीछे भी जदयू और भाजपा के अंदरखाने सांठगांठ के आरोप लग रहे हैं। बिहार में जन्मे अंग्रेजी उपन्यासकार तथा पत्रकार जार्ज आॅरवेल ने कहा है कि दूसरे जिस बात को छिपाना चाहते हैं उसे सामने लाना ही पत्रकारिता है बाकी सब प्रचार-प्रसार है। तो क्या है नीतीश और जदयू के यूपी से दूरी बनाने का सच?
बिहार जदयू के नेता और खुद सीएम नीतीश यूपी में प्रचार न करने और प्रत्याशी न उतारने के पीछे धर्मनिरपेक्ष वोटों का बंटवारा रोकने की दलील दे रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता ने बयान दिया कि ‘‘हम चाहते हैं कि यूपी मे सांप्रदायिक शक्तियों की हार हो और सेक्यूलर फोर्स जीतकर सरकार बनाएं। चुनाव मैदान में हमारे उतरने के बाद सेक्यूलर वोट बंट जाएगा और इस तरह भगवा जमात जीत दर्ज कर लेगी।’’ लेकिन बिहार के राजनीति से करीब से जानने वाले इसमें दूसरा ही मकसद देख रहे हैं और खुद जदयू के कुछ नेता खुलकर और कुछ नाम न देने की शर्त पर पार्टी के मंसूबों पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
बिहार के राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा है कि नीतीश और जदयू के यूपी चुनाव से दूर रहने का सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। माना जाता है कि यूपी में कुर्मी समुदाय भाजपा के साथ है। नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से ही आते हैं। ऐसे में अगर वो यूपी में भाजपा के खिलाफ प्रचार करेंगे तो भाजपा के इस वोट बैंक में सेंध लगने का खतरा रहेगा। कहा जा रहा है कि ऐसे में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती और इसीलिए उसने जदयू के साथ अंदरखाने समझौता कर लिया है। लेकिन क्या सचमुच दोनों दलों के बीच ऐसी कोई डील हुई है? बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के घर आयोजित ‘चाय पार्टी” पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता इस सवाल पर छूटते ही बोले, “इसमें आपको शक है क्या?”
जदयू के यूपी से जुड़े कई नेताओं और कार्यकर्ताओं से बात करने पर एक ने भी ये नहीं कहा कि नीतीश और जदयू से यूपी से दूरी का फायदा सपा-कांग्रेस को मिलेगा। लखनऊ निवासी जदयू की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य प्रोफेसर केके त्रिपाठी कहते हैं, “मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पार्टी हाई कमांड का ये निर्णय भाजपा को इलेक्टोरल जंग में जीत दिलाने में सहायक होगा। हमलोगों में इस निर्णय को लेकर आक्रोश, हताशा और निराशा है। अभी से बहुत कार्यकर्ता भागकर बीजेपी का प्रचार करना शुरू कर दिए हैं।” त्रिपाठी आगे कहते हैं, “यूपी के पोलिटिकल वातावरण में ये कामन परसेप्सन है कि हम लोगों द्वारा भाजपा को हेल्प किया जा रहा है।’’
त्रिपाठी का मानना है कि अगर जदयू आलाकमान सचमुच भाजपा को चुनावी पटकनी देना चाहता है तो उसे खुलकर सपा-कांग्रेस गठबंधन के समर्थन में आ जाना चाहिए। त्रिपाठी मानते हैं कि जदयू आलाकमान को पार्टी कार्यकर्ताओं के पास मैसेज भेजना चाहिए कि वो भगवा पार्टी को शिकस्त देने के लिए जी जान से लग जाएं।” त्रिपाठी कहते हैं, “लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है, जिससे हमलोगों को शक पैदा हो रहा है कि दाल में कुछ काला है।”
नवम्बर 2015 में बिहार विधान सभा चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके नीतीश कुमार ने भाजपा गठबंधन को पटकनी दी थी। सीएम बनने के बाद नीतीश ने अगले सात महीनों में यूपी में छह सभाएं कीं। नीतीश ने हर सभा में भाजपा को कोसा और सपा को ललकारा। जदयू के कुछ उत्साही कार्यकर्ता यहां तक कहने लगे कि अगली बार यूपी में जदयू सरकार बनेगी और सीएम होंगे नीतीश के पुराने सहयोगी, पूर्व आईएएस और मौजूदा राज्य सभा सांसद रामचंद्र प्रसाद सिंह। नीतीश के गृह जिले नालन्दा के रहने वाले सिंह पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और यूपी इन्चार्ज भी हैं। सिंह ने कुछ समय पहले राजगीर में हुए पार्टी अधिवेशन में इस संवाददाता से कहा था, “कुर्मी जाति की जनसंख्या यूपी में यादवों से ज्यादा है। मैं वहां कई जिलों में कलेक्टर तैनात रहा हूं। यूपी को ठीक से जानता हूं। यकीनन हम चुनाव लडेंगे और सरकार बनाएंगे।”
पार्टी के कुछ दूसरे कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी सिंह वाला राग ही अलाप रहे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक विधान सभा सीट से जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुके स्थानीय नेता कहते हैं, “सेना तैयार है लेकिन अब जब जंगे मैदान में कूच करने का समय आया तो साहब वाक ओवर ले लिए। जरूर कोई भितरिया गूढ़ माजरा है। ऐसे ही फोकट में हथियार थोड़े ही कोई डालता है?’’ वहीं जदयू के बिहार प्रदेश उपाध्यक्ष सतीश कुमार ने भी आरोप लगाया है कि यूपी में चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय आत्मघाती है। कुमार कहते हैं, “पार्टी ने यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 50 उम्मीदवारों का चयन कर लिया था। राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के लिए काम कर रहे हैं। उनके सुझाव पर ऐसा फैसला लिया गया है। इससे बीजेपी को चुनावी फायदा होगा।”
जदयू के नेता और कार्यकर्ता चाहे जितने दावे कर लें आंकड़े उनके खिलाफ ही जाते हैं। साल 2012 के विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू ने उत्तर प्रदेश में 219 प्रत्याशी उतारे थे लेकिन उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। वहीं राजद ने 2012 विधान सभा में यूपी में चार उम्मीदवार उतारे थे और सबकी जमानत जब्त हो गयी थी। ऐसे में नीतीश के यूपी न जाने और लालू के जाने से वहां की सियासत पर कितना असर पड़ेगा ये समझा जा सकता है।
