दिल्ली से एनएच 24 के जरिए लगभग 150 किलोमीटर की दूरी का सफर तय करके आप बिजनौर जिले के चांदपुर विधानसभा क्षेत्र में पहुंच सकते हैं। 2007 और 2012 के चुनाव में यहां के विधायक बीएसपी के मोहम्मद इकबाल चुने गए। क्षेत्र के कई लोग अपने सिटिंग एमएलए के कार्यों से संतुष्ट नजर आए तो कुछ नहीं। कुछ लोगों ने तो यह भी कहा कि 2012 के चुनाव में बीएसपी की सरकार न बनने की वजह से ही यहां के विकास कार्य ठीक से नहीं हुए। हालांकि किसी के जीतने पर संशय की स्थिति बरकरार है। दूसरी तरफ यहां पर एक और चौकाने वाली बात यह है कि यहां से कांग्रेस और सपा, दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। यानी दोनों ही पार्टियां गठबंधन के बाद भी आपस में मुकाबला करेंगी। क्षेत्र में समाजवादी पार्टी, बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी चारों ही पार्टियों के उम्मीदवारों के बीच कड़ी टक्कर है।

क्षेत्र में तीन पार्टियों ने मुस्लिम उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है ऐसे में मुस्लिम वोट बंटने की पूरी संभावनाएं बनी हुई है। बीजेपी की उम्मीदवार कमलेश सैनी हैं। बीएसपी के उम्मीदवार दो बार के सिटिंग एमएलए मोहम्मद इकबाल ही हैं और कांग्रेस से शेरबाज पठान और समाजवादी पार्टी से अरशद अंसारी चुनावी मैदान में हैं।

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2011 की जनगणना के मुताबिक इस क्षेत्र की आबादी लगभग 7 लाख लोगों से ज्यादा की है। इसमें से एससी/एसटी आबादी लगभग ढ़ाई लाख के करीब है और मुस्लिम आबादी भी लगभग डेढ़ लाख के करीब है। बाकी जाट, यादव समेत अदर बैकवर्ड वोटर भी यहां मौजूद है लेकिन लोगों का दावा है कि जाती या धर्म फैक्टर यहां चुनाव में ज्यादा मायने नहीं रखता और लोग अपने उम्मीदवार के काम को देखते हैं।

चांदपुर के एक मोहल्ले में जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा।

यहां पर पहली बार विधानसभा चुनाव 1957 में हुए थे जिसमें निर्दलीय उम्मीदवार नरदेव सिंह ने जीत हासिल की और अगले दो चुनावों में भी विजयी रहे। चांदपुर कभी किसी एक पार्टी का गढ़ नहीं रहा और यहां पर लोगों की पसंद उनका नेता रहा है न कि कोई पार्टी। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं, 1989 में तेजपाल जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े थे और जीत गए इसके बाद तेजपाल ने 1993 का चुनाव निर्दलीय लड़ा और जीत गए। इसी तरह से स्वामी ओमवेश 1996 में निर्दलीय जीते थे और फिर 2002 के चुनाव में वह आरएलडी से जीत गए। बीते दो विधानसभा चुनाव (2002 और 2007) से यह सीट बीएसपी के मोहम्मद इकबाल ने जीती है। वहीं इस क्षेत्र ने जनता दल, भारतीय क्रांति दल और कांग्रेस के उम्मीदवारों को जिताया है लेकिन बीजेपी यहां से सिर्फ एक बार 1991 का चुनाव ही जीती थी जिसमें अमर सिंह विधायक चुने गए।

चांदपुर को देश के कुछ पुराने शहरों, कस्बों, कारोबारी गढ़ों की सूची में शुमार करना शायद गलत नहीं होगा। इस क्षेत्र को चांदपुर स्याऊ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां पर कभी स्याऊ नाम की रियासत थी जिसके राजा गुलाब सिंह थे। उनके नाम पर गुलाब सिंह डिग्री कॉलेज भी है जिसकी स्थापना उनकी पत्नी ने 1962 में की थी। साथ ही यहां के लोगो का कहना है कि यह इलाका कभी मीठे के कारोबार का गढ़ था। इस इलाके में बड़ी तादद में कोल्हू और क्रेशर हुआ करते थे और आज भी यहां पर भूरा(बारीक चीनी) और बताशे की काफी सारी दुकाने हैं।

विकास कितना हुआ ?

चांदपुर विधानसभा क्षेत्र में कई लोगों का दावा है कि विकास कार्य हुए हैं लेकिन इसका श्रेय कोई बीएसपी के सिटिंग एमएलए मोहम्मद इकबाल को देता है तो कोई सपा सरकार को। स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो लोग खुश नहीं हैं। लोगों का दावा है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मरीजों को ठीक से नहीं देखते  और कई बार बाहर से दवाईयां लिख देते हैं। वहीं सड़कों के विकास की बात करें तो हालात बाहर से ठीक नजर आती है लेकिन भीतर की स्थिति खराब है। मोहल्लों की सड़कों की स्थिति अच्छी नहीं है। वहीं अखिलेश सरकार द्वारा लाई गई योजनाओं के बारे में लोगों के बीच एक हद तक सकारात्मक राय है। कई का दावा है कि उन्हें लैपटॉप, पेंशन, बत्ता जैसी प्रदेश की सभी  योजनाओं का लाभ मिला है। इसके अलावा क्षेत्र में घूमते हुए पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटिड द्वारा लाई गई सचल विद्युत बिल भुगतान कराने वाली एक वैन भी नजर आती है जो इस इलाके में 3-4 महीने पहले ही लाई गई थी। ये वैन लोगों को बिल भुगतान करने की सेवा उनके घर पर मुहैया कराती है। अधिकारियों/कर्मचारियों के मुताबिक यह सुविधा अभी सिर्फ शहरों में ही लाई गई है और इसे लॉन्च हुए लगभग डेढ़-दो साल का समय हो चुका है।

सड़कों की हालत कुछ ऐसी है।
इलाके में बिजली की किल्लत से जूझ रहे युवा।

चुनावी मैदान में खड़ी सभी मुख्य पार्टियों के उम्मीदवारों से जनसत्ता ने बातचीत की लेकिन बीएसपी के उम्मीदवार और सिटिंग एमएलए मोहम्मद इकबाल ने बातचीत करने से इंकार कर दिया। बात करने वालों सभी उम्मीदवारों का दावा है कि वो जरूर जीतेंगे और प्रदेश में उन्हीं की सरकार बनेगी। लेकिन इन दावों की हकीकत 11 मार्च को सबसे सामने आएगी।