शनिवार को बिहार में तीसरे चरण के मतदान हो रहे हैं। बिहार में जाति के नाम पर वोटों का बंटवारा आम बात है। आपको जानकर हैरानी होगी कि राज्य में एक दलित तीन बार मुख्यमंत्री बना लेकिन आज उसका नाम भी गुमनाम है। वह नाम है ‘भोला पासवान शास्त्री।’ 1968 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि वह केवल तीन महीने ही सीएम रहे। इसके बाद साल 1969 में 13 दिन और 1971 में 7 महीने के लिए वह फिर मुख्यमंत्री बने। उनके गांव बैरगाछी के लोग आज भी उनका नाम सम्मान के साथ लेते हैं। लेकिन उनके मन में कुछ बातों का अफसोस भी है।
आज मुख्यमंत्री की कुर्सी दौलत-सोहरत का प्रतीक बन गई है। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद भोला पासवान ने सुख-सुविधाओं से इनकार कर दिया। वह झोपड़ी में ही रहते थे और ज़मीन पर ही सोते थे। शास्त्री के घर के बाहर बैठे सागर पासवान उन्हें याद करते हुए बताते हैं, ‘वह इतने ईमानदार थे कि तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद न तो उन्होंने अपने लिए कुछ किया और न ही गलत तरीके से गांव का ही पक्ष लिया। अगर वह आज के मुख्यमंत्रियों की तरह होते तो उनके पास भी महल होता।’ आज भी उनके गांव का हाल बेहाल है। हां शास्त्री के पैत्रक घर के पास में एक बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है, ‘भोला पासवान शास्त्री ग्राम।’ इसी के बगल में एक सामुदायिक भवन बना है जो कि उनके ही सम्मान में धमदाहा से विधायक लेशी सिंह ने बनवाया था।
बिहार के अन्य पिछड़े इलाकों की तरह शास्त्री के गांव में भी लोग रोजगार की समस्या से जूझ रहे हैं । गांव के ज्यादातर लोग मजदूरी से ही काम चलाते हैं। भोला पासवान शास्त्री का कोई बेटा या बेटी नहीं थी। उनके परिवार के अन्य लोग आज भी मेहनत मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन के समय जब नेताओं ने टीवी पर स्टोरी देखी की भोला पासवान के परिवार के लोग भूख से जूझ रहे हैं तो आर्थिक मदद करने के लिए दौड़े लेकिन तब तक उनका परिवार कमाने के लिए पूर्णिया जा चुका था। सागर पासवान ने कहा, ‘तब से आज तक गांव में कोई काम नहीं हुआ है। हां कुछ सड़कें बनी हैं लेकिन लोगों के पास काम नहीं है। कमाने के लिए लोग बिहार से बाहर जाते हैं।’
बैरगाछी गांव में सरकारी स्कूल, सामुदायिक भवन के अलावा कुछ भी खास नहीं है। हां यहां पर पक्की सड़क और बिजली जरूर है। लेकिन पेट पालने के लिए लोगों को रोजगार की जरूरत है। पिछले चुनाव में यहां से जेडीयू की लेशी सिंह को जीत हासिल हुई थी। भोला पासवान शास्त्री साल 1973 में इंदिरा सरकार में केंद्री मंत्री भी रहे थे। शास्त्री के गांव में सामुदायिक भवन के पास ही उनका परिवार रहता है। यहां एक नल, आसपास कीचड़ और छप्पर के अलावा कुछ नहीं दिखता है।
