Lok Sabha Election 2019: लोकतंत्र के महापर्व लोकसभा चुनाव 2019 के पहले चरण के मतदान में करीब 15 दिन बचे हैं। ऐसे में करीब 22 लाख मतदाताओं वाले लोकसभा क्षेत्र के सभी इलाकों का दौरा या जनसंपर्क संभव नहीं है। ऐसे में चुनावी समर में उतर चुके उम्मीदवार दूर रहते हुए भी मतदाताओं से संवाद स्थापित करने में तकनीकी पेशेवरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वाररूम (युद्ध कक्ष) की तर्ज यहां के कार्यकर्ता परदे के पीछे आंकड़ों को खंगालने, मौजूदा रुझानों का आकलन और विश्लेषण कर रणनीति तैयार कर रहे हैं। राजनीतिक सलाहकार या रणनीतिकार रोजाना 12-14 घंटे काम कर प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के आंकड़े तैयार कर रहे हैं।

इस मुहिम में उनके साथ शोधकर्ता, डिजिटल मार्केटिंग की टीम, विश्लेषक और सॉफ्टवेयर इंजीनियर जैसे कुशल पेशेवर हैं। इनके जरिए चुनाव लड़ने के तौर-तरीके में पूरी तरह से बदलाव आ गया है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मतदाता को लुभाने के लिए चुनाव में उतरे राजनीतिक दल और उम्मीदवार केवल चुनाव प्रचार एवं लुभावने घोषणा पत्र के भरोसे बाजी नहीं जीत सकते हैं। उन्हें अब इसके लिए काफी कुछ और करना पड़ता है। चुनाव विशेषज्ञ, प्रचार प्रबंधक, राजनीतिक विश्लेषक, राजनीतिक सलाहकार, रणनीतिकार और चुनाव प्रबंधक जैसे विभिन्न नाम वाले पदाधिकारी चुनाव रणनीतिक के लिए दिन-रात कॉल सेंटर की तर्ज पर काम करते हैं।

चुनावी दौर में ऐसे पेशेवरों की मांग बढ़ गई है। इनका कार्य जनता के सामने प्रत्याशी की छवि को सकारात्मक रूप में पेश करना होता है। वाररूम की निगरानी प्रत्याशी के इतर कोई और करता है। पर्दे के पीछे काम करने वाली टीम के सदस्यों ने बताया कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में प्रचार का तरीका अलग-अलग होता है। विधानसभा चुनावों में सीधे मतदाता तक संपर्क करने की कोशिश होती है। इसमें स्वयंसेवक और पार्टी कार्यकर्ताओं के घर-घर जाकर संपर्क साधना महत्त्वपूर्ण होता है। वहीं, लोकसभा चुनाव में इलाका बहुत बड़ा होने की वजह से अप्रत्यक्ष संपर्क महत्त्वपूर्ण होता है।

इसके माध्यम के रूप में सोशल मीडिया, पोस्टर एवं मार्केटिंग विशेषज्ञ इस्तेमाल किए जा रहे हैं। पहले चरण के मतदान में समय कम होने की वजह से वाररूम के हर क्षण की उपयोगिता साबित करने की कोशिशें की जा रही हैं। हर रोज सुबह की शुरुआत विश्लेषण से होती है। इसके बाद एक दिन पहले तय की रणनीति पर काम किया जाता है। दिन आगे बढ़ने के साथ मुद्दों का फिर से विश्लेषण कर, जमीनी स्तर पर काम करने वाले दस्तों से मिली प्रतिक्रिया (फीडबैक) की लगातार निगरानी के अलावा मसौदा तैयार किया जाता है। दिन के आखिर में पूरे दिन भर के काम का आकलन कर, जमीनी स्तर पर काम करने वाली टीमों से मिली प्रतिक्रिया के अधार पर अगले दिन की रणनीति पर काम होता है।