लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश का अहम योगदान रहने वाला है। 80 सीटों वाला ये राज्य सत्ता का फैसला हर बार से ही करता आ रहा है। पिछले दो लोकसभा चुनाव से बीजेपी का यूपी पर पूरी तरह कब्जा रहा है। लेकिन मोदी लहर के बाद भी 2019 में यूपी की सहारनपुर सीट पर बीजेपी जीत दर्ज नहीं कर पाई थी। उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। मुस्लिम बाहुल माने जाने वाली ये सीट कभी कांग्रेस और फिर सपा-बसपा का भी गढ़ माना गया है।

सहारनपुर सीट पर पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा प्रत्याशी हाजी फजुर्लरहमान ने बड़ी जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में क्योंकि सपा-बसपा और कांग्रेस का गठबंधन था, ऐसे में विपक्षी गठबंधन के वे संयुक्त विजेता रहे थे। दूसरे नंबर पर बीजेपी के राघव लखनपाल शर्मा रहे थे जिनके खाते में 4,91,722 वोट गए थे। उस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को 20 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।

वैसे बड़ी बात ये है कि सहारनपुर सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस की जीत हुई है। 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस का ही इस सीट पर दबदबा रहा है। इस सीट से दो बार अजित प्रसाद और दो बार सुंदरलाल सांसद चुने गए हैं। 1984 में भी कांग्रेस ने वापसी करते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2004 में सपा तो 2009 में बसपा ने यहां जीत का परचम लहराया था। 2014 की मोदी लहर में जरूर बीजेपी ने इस सीट को अपने नाम किया था। अब पिछले चुनाव में विपक्ष ने सहारनपुर से जीत दर्ज की थी।

सहारनपुर के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर मुस्लिम समुदाय के ज्यादा लोग हैं, उनकी संख्या 35 फीसदी से ज्यादा है। इस सीट पर दलित फैक्टर भी मायने रखता है और उन पर बहुजन समाज पार्टी की मजबूत पकड़ है। गुर्जर-सैनी जैसी जातियां भी निर्णायक भूमिका निभा जाती हैं।