उत्तर प्रदेश की रामपुर लोकसभा सीट हमेशा से ही सपा नेता आजम खान की वजह से चर्चा का विषय बनी रही है। यहां से लगातार उनका जीतना भी इसका एक बड़ा कारण रहा है। लेकिन विवादों के साथ उनका नाता इतना मजबूत हो चुका है कि वर्तमान में आजम खान ना खुद चुनाव लड़ सकते हैं और ना ही रामपुर सीट उनके खाते में चल रही है।
पिछले साल हुए उपचुनाव में बीजेपी ने रामपुर सीट को समजावादी पार्टी और आजम खान से छीन लिया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान भी उस प्रदर्शन को दोहराया गया और सपा के गढ़ में बीजेपी का कमल दो बार खिल गया। इसी वजह से इस बार का मुकाबला और ज्यादा दिलचस्प रहने वाला है। एक तरफ अगर बीजेपी को अपनी लीड को बरकरार रखना है तो वहीं सपा को पुराने किले को फिर फतेह करना है।
रामपुर के बदले सियासी खेल की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान आजम खान ने जीत दर्ज की थी। लेकिन उसके कुछ दिन बाद ही कोर्ट ने उन्हें सजा सुना दी और वे जेल चले गए। उस वजह से उनकी सदस्यता चली गई और रामपुर में उपचुनाव करवाने पड़े। अब जेल से उन्होंने 2022 में फिर चुनाव लड़ा और जीत भी गए, लेकिन सजा के चक्रव्यूह ने उन्हें सक्रिय रहने नहीं दिया। उस जीत के कुछ महीनों बाद आजम फिर जेल चले गए और उनकी सदस्यता भी गई। तब उपचुनाव में बीजेपी ने खेल करते हुए समाजवादी पार्टी को हरा दिया और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी रामपुर को अपने पास ही रखा।
2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मुकाबला सपा के आजम खान और बीजेपी की तरफ से जया प्रदा के बीच था। उस चुनाव में आजम ने जया प्रदा को हराते हुए सीट फिर अपने नाम की थी। सपा नेता ने उस चुनाव में जया प्रदा को एक लाख 10 हजार 388 वोटों से हरा दिया था। तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी संजय कपूर रहे थे।
रामपुर के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर मुस्लिम आबादी 52 फीसदी के करीब है। इस क्षेत्र में हिंदू अल्पसंख्यक माने जाते हैं और वहां भी वे अलग-अलग जातियों में बंटे हुए हैं।