पिछले 10 सालों में मोदी सरकार की अगर एक ऐसी उपलब्धि है जिसे लेकर विपक्ष भी ज्यादा सवाल नहीं उठाता है, वो है प्रधानमंत्री उज्जवला योजना। इस एक योजना ने यूपी में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई है, इस एक योजना ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी एक निर्णायक भूमिका निभाई। लेकिन 2019 के बाद से जमीन पर स्थिति बदली है, महंगाई से लेकर कई ऐसे फैक्टर सामने आए हैं, जिसने इस गेमचेंजर योजना को भी सवालों में ला दिया है। इसी वजह से ‘हिसाब जरूरी है’ की तीसरी किश्त में बात प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की।

समय से पहले सरकार ने पूरे किए टारगेट

पेट्रोलियम मंत्रालय ने साल 2016 में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। पीएम मोदी का तर्क था कि चूल्हे पर बनने वाले खाने से मां-बहनों को कई सारी सांस संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ता था, ऐसे में उन्हें भी हक है कि वे बिना धुएं के खाना बनाए, बिना धुंए के उन्हें जीवन यापन करने का मौका मिले। इसी वजह से प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना का उदेश्य था कि हर गरीब घर में गैस सिलेंडर पहुंचाया जाए जिससे चूल्हे की जगह उसके जरिए खाना बने। सरकार ने तब टारगेट रखा था कि मार्च 2020 तक 8 करोड़ घर को गैस सिलेंडर देगी।

अब मोदी सरकार का दावा है कि उसने 7 सितंबर, 2019 तक ही उस टारगेट को पूरा कर लिया था, यानी कि समय से पहले ही योजना के पहले चरण को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया। इसके बाद सरकार ने इस योजना के दूसरे चरण को हरी झंडी दिखाई और कहा गया कि 1 करोड़ और घरों में गैस सिलेंडर पहुंचाया जाएगा, इस बार सरकार का फोकस माइग्रेंट घरों पर रहा। अब सरकार तो कहती है कि उसने इस टारगेट को भी समय से पहले ही अचीव कर लिया।

रीफिल वाला आंकड़ा सरकार पर उठाता सवाल

वैसे एक तरफ समय से पहसे टारगेट का अचीव होना अच्छी बात है, लेकिन यहां समझने वाली बात ये भी है कि आखिर सिलेंडर पाने वाले कितने लाभार्थियों ने बार-बार अपने सिलेंडर को रीफिल करवाया है। ये जो आंकड़ा है, वो सरकार के खिलाफ जाता है। ये आंकड़ा बताता है कि महंगाई की मार ने उज्जवला योजना को भी गरीबों के लिए महंगा कर दिया है। बड़ी बात ये है कि ये आंकड़ा भी सरकार का ही है, किसी विपक्षी नेता या कहना चाहिए मीडिया पोर्टल ने ये जारी नहीं किया है।

साल 2022 में मॉनसून सत्र हुआ था, चब पांच सालों का केंद्र सरकार ने एक आंकड़ा जारी किया। उस आंकड़े के मुताबिक 4.13 करोड़ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों ने एक बार भी अपना सिलेंडर रीफिल नहीं करवाया। अब ये आंकड़ा बताता है कि इन लोगों के घर में एक बार का एलपीजी सिलेंडर तो लगा, सरकार ने इसे अपनी उपलब्धि भी माना, लेकिन बाद में उन्हीं लोगों ने कभी वो सिलेंडर रीफिल नहीं करवाया। पेट्रोलियम राज्य मंत्री रामेश्वर तेली के मुताबिक 7.67 करोड़ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लाभार्थी ऐसे हैं जिन्होंने मात्र एक बार गैस सिलेंडर को रीफिल करवाया है। बात अगर 2021-22 की करें तो तब 30.53 करोड़ एक्टिव एलपीजी लाभार्थियों में से 2.11 लोग ऐसे रहे जिन्होंने अपना एक भी सिलेंडर रीफिल नहीं करवाया, वहीं 2.91 करोड़ एलपीजी कस्टमर्स ने उसी अंतराल में सिर्फ 1 सिलेंडर रीफिल करवाया।

सब्सिडी के बाद भी गरीब की जेब हो रही ढीली

अगर चुनावी सब्सिडी का अभी जिक्र ना किया जाए तो पिछले कई महीनों से उज्जवला का गैस सिलेंडर 900 रुपये तक का मिल रहा है। ये रेट तो सरकार की सब्सिडी मिलने के बाद था, इसी वजह से कई गरीब परिवार रीफिल करवाने से ही बचते दिख रहे थे। अगर नए रेट की बात करें तो सरकार ने अभी चुनाव को देखते हुए सब्सिडी को 300 रुपये करने का फैसला किया। इस समय लोगों को उज्जवला के तहत मिलने वाला एलपीजी सिलेंडर 503 रुपये में पड़ रहा है, वहीं सामान्य एलपीजी सिलेंडर के लिए 803 रुपये देने पड़ रहे हैं।

नेरेटिव बिल्डिंग के लिए अच्छा, पलीता तो लगा है

लेकिन ये चुनावी सब्सिडी की वजह से हुआ है, असल में तो गरीब की जेब भी ज्यादा ढीली होती दिखी है। ये कौन भूल सकता है कि जनवरी 2018 तक एक सब्सिडी वाले सिलेंडर के लिए 495.64 रुपये देने पड़ रहे थे, लेकिन मार्च 2023 में वही सिलेंडर 903 रुपये में मिलने लगा था, यानी कि सीधे-सीधे 82 फीसदी का उछाल देखने को मिला। अब एक तरफ सभी को चूल्हे से मुक्ति देने की बात, दूसरी तरफ उसी सिलेंडर को इतना महंगा कर देना कि सभी के लिए उसे खरीदना मुश्किल हो जाए। ऐसे में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना मोदी सरकार के लिए आंकड़ों के लिहाज से हिट जरूर है, नेरेटिव बिल्डिंग में भी ये योजना अपनी भूमिका निभा सकती है, लेकिन महंगाई ने इसकी सक्सेस को पलीता लगाने का काम भी अच्छे से किया है।