हरियाणा का नूंह अपने पिछड़ेपन की वजह से सुर्खियां बटोरता आया है। खराब सड़कें, खराब कानून व्यवस्था और जमीन पर तनावपूर्ण माहौल, नूंह के लिए ये सबकुछ अभिप्राय बन चुके हैं। यहां पर सरकारें कई बनी हैं, लेकिन जमीन पर माहौल ज्यादा सुधरता नहीं दिखता। आलम ये है कि आज भी नूंह में धर्म के आधार पर सांप्रदायिक दंगे भड़क जाते हैं। पिछले साल हुई हिंसा को कोई नहीं भूल सकता है।

अब उन दंगों को एक साल बीत चुके हैं, तनाव से निकलर नूंह भी चुनावी माहौल में जा चुका है। गुरुग्राम सीट के अंदर ही नूंह भी आता है। अब हमने अपनी चुनावी यात्रा में गुरुग्राम के नूंह जाने का फैसला किया। समझने का प्रयास रहा कि ये इलाका दंगों के दंश से कितना बाहर निकल पाया है? अपने इसी सवाल के साथ हमने गाजियाबाद से अपना सफर शुरू किया और 80 किलोमीटर दूर नूंह तक पहुंचे। उम्मीद के मुताबिक नूंह ने हमारा स्वागत दो तरह से किया, पहली तपती गर्मी और चिलचिलाती धूप और दूसरी खराब सड़कें।

टूटीं सड़कें, पतली गलियां और थोड़ा तनाव

पहले तो सिर्फ सुना था कि सड़कों में गड्डा है या गड्डों में सड़क बना दी गई हैं, नूंह जाकर इस बात की तस्दीक हो जाती है। जैसे ही अपना कैमरा ऑन किया, सबसे पहले नूंह के बड़े और खतरनाक गड्डे दिखाई पड़ गए। गड्डे देखे तो सामने खड़े एक बुजुर्ग व्यक्ति से इसे लेकर सवाल भी पूछ लिया। दो टूक जवाब मिला- यहां सिर्फ कागजों पर विकास हुआ है, काफी विकास हुआ है, बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान होता है। लेकिन हकीकत ये है जो आप देख रहे हैं, खुद देखिए सड़कों पर कैसे गड्डे पड़े हैं, कैसे जगह-जगह कचरा है।

अब नूंह की सड़कों पर हमे गड्डे तो मिले ही, इसके साथ-साथ अतिक्रमण की समस्या से भी रुबरू होना पड़ा। सड़कें तो पतली थीं, लेकिन वहां भी हर मोड़ पर रेड़ी वालों की दुकान लगी थी। लाइन से कई दुकानें, छोटी-बड़ी हर तरह की। इसी सफर में हमारी मुलाकात एक तंबाकू विक्रेता से हो गई। बात करने में दिलचस्पी दिखा रहे थे तो हमने भी पंचायती कर ली। सीधे पूछा- आपका बिजनेस कैसा चल रहा है। उन्होंने बोला बिजनेस तो ठीक है, लेकिन पुलिस बहुत परेशान करती है।

अतिक्रमण की समस्या और उसमें दिखा धार्मिक रंग

हम समझ गए थे अगर पुलिस परेशान कर रही है, मतलब समस्या अतिक्रमण वाली ही है। उम्मीद के मुताबिक उस शख्स ने हमे बताया कि ये सच है कि यहां पर सारी दुकानें ऑथराइस्ड नहीं है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप सभी को मारेंगे। उस शख्स ने हमे बताया कि नूंह में धर्म के आधार पर अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। हम खुद इस बात की पुष्टि नहीं कर पाए, लेकिन वो लगातार बोलता रहा कि मैं कई ऐसी दुकानें गिनवा दूंगा जो अवैध तरीके से चल रही होंगी, लेकिन उन पर कोई एक्शन नहीं होता, लेकिन हमारे खिलाफ सबकुछ किया जाता है।

उस शख्स ने आखिर में हमसे दो टूक कह दिया कि मेवात का एक-एक वोट कांग्रेस को जाएगा। यहां से बीजेपी को कुछ भी नहीं मिलने वाला। अब आप लोगों को यहां बता दें कि गुरुग्राम सीट से बीजेपी ने एक बार फिर राव इंद्रजीत को उतार रखा है, वहीं कांग्रेस ने अभिनेता राज बब्बर पर दांव चला है। नूंह में जब लोगों से बात कर रहे थे तो ये नोटिस करने वाली बात थी कि हर कोई बब्बर को दिल खोलकर समर्थन देने की बात कर रहा था।

बाहरी राज बब्बर, फिर भी कांग्रेस की लहर!

कुछ आवाजें उठ रही थीं कि राज बब्बर तो बाहरी हैं, लेकिन कांग्रेस के नाम पर उन्हें वोट देने की बात फिर भी की जा रही थी। पूरे नूंह में ही हमे ये माहौल देखने को मिला, हर कोई कांग्रेस के प्रति अपना रुझान दिखा रहा था। लेकिन हां कुछ अपवाद भी थे, कुछ ऐसे मुस्लिम समुदाय के लोग हमे मिले जो मोदी को पसंद कर रहे थे। एक सब्जी बेचने वाले शख्स ने हमे कहा कि मोदी ने तो काम किया है, कांग्रेस को हमने यहां देखा ही नहीं, राव इंद्रजीत कम से कम जमीन पर आता तो है, हमारी बात तो सुनता है, राज बब्बर को कोई नहीं जानता। हां खराब पानी की समस्या है, लेकिन वो भी सुलझ जाएगी।

EVM को लेकर दिखा अविश्वास

अब उस शख्स की बात को सुन जब हम थोड़ा और आगे बढ़े तो एक आदमी ने हमे रोककर बोला कि भैया अगर मोदी को 400 से ज्यादा सीटें जीतनी हैं तो ईवीएम में खेल करना पड़ेगा। हम हैरान रह गए, बिना सवाल पूछे, बिना हमारे उसके पास गए अगर कोई ऐसा बयान दे रहा था, समझना मुश्किल नहीं कि कुछ नेरेटिव किस हद तक लोगों में घर कर जाते हैं। उस शख्स ने अपनी बात को आगे जारी रखा और दो टूक बोला कि अगर ईवीएम सही रहीं तो 400 नहीं 13 सीटों पर बीजेपी रुक जाएगी।

शिकरावा और पिछड़ेपन में भी आदर्श गांव

वैसे इन लोगों की बात सुन हम समझ गए कि नूंह का मिजाज मोदी के खिलाफ और कांग्रेस के समर्थन में है। लेकिन नूंह का ही एक और गांव पड़ता है, नाम है शिकरावा। किसी ने हमे बताया कि अगर विकास देखना है तो शिकरावा चले जाओ। हमने भी बोरिया बिस्तर समेटा और फिर एक और सफर पर निकल गए। 30 किलोमीटर के करीब चलकर हम शिकरावा में पहुंचे जहां पर हमे आदर्श गांव देखने को मिल गया। आदर्श इसलिए क्योंकि वहां नूंह वाला पिछड़ापन देखने को नहीं मिला।

हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई का संदेश

हमने कई लोगों को शिकरावा में इकट्ठा किया तो फिर शुरू की अपनी चौपाल। शिकरावा गांव के पूर्व सरपंच ने हमे बताया कि इस गांव कोई पार्टी नहीं बल्कि समाजिक संस्थाएं विकास करती हैं। हमारे गांव में हर लड़की को पढ़ाया जाता है, यहां पर बिजली 18 घंटे आती है, स्कूलों में बेहतर सुविधाएं मिल रही हैं। हमे यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि नूंह में इससे उलट तनाव देखने को मिल रहा था। इसके ऊपर हर किसी ने शिकरावा में हमे कहा कि यहां हिंदू-मुस्लिम में कोई तनाव नहीं है, सिर्फ प्रेम है, सभी भाईचारे से रहते हैं। लेकिन एक चीज नूंह और शिकरावा में समान दिखी, कांग्रेस को यहां भी लोग ज्यादा पसंद कर रहे थे, बीजेपी से नाराजगी थी- अब ये धर्म आधारित थी, विकास आधारित या बस बीजेपी को हराने के लिए दिख रहा गुस्सा, आप भी समझदार हैं और हम भी सच्चाई जानते हैं।