लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी शंखनाद हो चुका है। इस बार एक तरफ बीजेपी खड़ी है तो वहीं दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन टक्कर देने का काम कर रहा है। इस बार पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए विपक्ष कुनबा ज्यादातर राज्यों में एकजुट हो चुका है। ऐसे में विपक्ष का दावा है कि इस बार वोटों का बिखराव कम रहने वाला है और उसी का सीधा फायदा उसे मिल सकता है। लेकिन कागज पर बने गठबंधन और असल में उससे बनने वाले जमीन पर समीकरण कुछ अलग होते हैं। ऐसें में एनडीए बनाम इंडिया गठबंधन की इस सियासी लड़ाई का एक विश्लेषण किया जाना चाहिए।

उत्तर भारत की क्या है स्थिति?

उत्तर भारत में 2014 के बाद से ही बीजेपी की एक स्पष्ट बढ़त साफ दिखाई दे रही है। कहना चाहिए कि उसकी आंधी में विपक्ष पूरी तरह साफ हो चुका है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ कुछ ऐसे राज्य हैं जहां पर बीजेपी को इस समय कोई भी टक्कर देता नहीं दिख रहा है। इंडिया गठबंधन जरूर बना है, लेकिन जमीन पर समीकरण अभी भी बीजेपी के फेवर में दिखाई देते हैं।

उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां से 80 लोकसभा की सीटें निकलती हैं। एक तरफ इंडिया गठबंधन खड़ा है तो दूसरी तरफ बसपा अकेले ही चुनावी मैदान में उतरी है। ऐसे में जाटव और मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता दिख रहा है। अब इसका कितना फायदा बीजेपी को मिल सकता है, अभी इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। सपा हमेशा की तरह से अपने PDA फॉर्मूले पर आगे बढ़ रही है। उसे पिछड़ों का वोट चाहिए, दलित साथ आने चाहिएं और मुस्लिमों को तो वो अपना कोर वोटर मान ही रही है। लेकिन यहां पिछड़े और दलितों वोटबैंक में ही बीजेपी की सीधी सेंधमारी है। इसके ऊपर जयंत चौधरी के साथ आ जाने से पश्चिमी यूपी में भी बीजेपी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है।

मध्य प्रदेश चलें तो वहां तो मुकाबला वैसे तो कांग्रेस बनाम बीजेपी का है, लेकिन क्योंकि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथ ही चल रही है, ऐसे में एकजुट विपक्ष बनाम एनडीए का मुकाबला कहना ज्यादा सही रहेगा। एमपी में इस समय दोनों बीजेपी और कांग्रेस के सामने कुछ चुनौतियां हैं। एक तरफ बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान की वजह से मोहन यादव को सीएम बना रखा है तो कांग्रेस ने भी कमलनाथ की जगह जीतू पटवारी को राज्य की कमान सौंप दी है। ऐसे में दो नए और युवा चेहरे अब एमपी की आने वाली सियासत को तय करने वाले हैं।

उत्तराखंड चला जाए तो देवभूमि में इस समय बीजेपी का पला कुछ भारी दिखाई देता है। यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने के बाद से पार्टी को यहां पर महिलाओं के एकमुश्त वोट मिलने की उम्मीद है। इसके ऊपर ऑल वेदर चार धाम सड़क भी उसके पक्ष में माहौल बनाती दिख रही है। बीजेपी दावा कर रही है कि यहां पर वो एक बार फिर पांचों लोकसभा सीटें जीतने वाली है। इंडिया गठबंधन की अभी तक कोई खास रणनीति उत्तराखंड में दिखाई नहीं दे रही है।

पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात में तो जनता का माहौल एकमुश्त बीजेपी के पक्ष में जाता दिख रहा है। वैसे भी विधानसभा चुनाव में जिस आंधी पर सवार बीजेपी दिखी थी, उसे देखते हुए लोकसभा चुनाव में भी ज्यादा चुनौतियां सामने आती नहीं दिख रही। यहां पर कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी है और आम आदमी पार्टी अभी भी सिर्फ एक विकल्प बनने की कोशिश कर रही है। लेकिन ज्यादात सीटों पर बीजेपी की स्पष्ट बढ़त दिखाई पड़ रही है। बीजेपी का वोट शेयर वैसे भी पिछले लोकसभा चुनाव में 60 फीसदी से भी ज्यादा चला गया था। इस बार पार्टी का टारगेट हर सीट पांच लांख के अंतर से जीतना है।

राजस्थान की बात करें तो वहां से लोकसभा की 25 सीटें निकलती हैं। लेकिन जब से विधानसभा चुनाव में बीजेपी के तीन सांसदों को हार का सामना करना पड़ा है, पार्टी के लिए इस बार राह उतनी भी आसान नहीं रहने वाली है। तमाम ओपियनिय पोल भी बता रहे हैं कि तीन से पांच सीटों पर इंडिया गठबंधन को इस बार बढ़त मिल सकती है। इसके ऊपर जिस तरह से भजनलाल सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वो केंद्र से चल रही है, उस नेरेटिव से पार पाना भी एक चुनौती है।

राजधानी दिल्ली में भी कागज पर तो इंडिया गठबंधन इस बार ज्यादा बड़ी चुनौती पेश कर सकता है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ आने से वोटों का बिखराव कम होगा और उसका सीधा नुकसान बीजेपी को हो सकता है। लेकिन बीजेपी को भरोसा है कि पीएम मोदी के चेहरे के सहारे वो ऐसे सभी समीकरणों को विफल कर देगी। इसके ऊपर उसे 60 फीसदी से ज्यादा वोटशेयर की उम्मीद है। इसके ऊपर 7 में से 6 सीटों पर क्योंकि बीजेपी ने अपने उम्मीववार ही बदल दिए हैं, ऐसे में एंटी इनकमबेंसी को भी काबू में करने की एक कवायद दिख रही है।

दक्षिण भारत में इंडिया काफी आगे

अब उत्तर भारत में बीजेपी की राह जितनी आसान दिख रही है, दक्षिण भारत में उतनी ज्यादा ही चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। बात चाहे केरल की हो, तमिलनाडु की हो, तेलंगाना की हो या फिर आंध्र प्रदेश की, बीजेपी कहीं पर भी अपने दम पर मजबूत दिखाई नहीं दे रही है। उसकी कोशिश जरूर है कि इस बार केरल में खाता खोला जाए और तमिलनाडु में भी कुछ सीटों पर अच्छा प्रदर्शन हो, लेकिन जमीन पर ज्यादा समीकरण बदलते दिख नहीं रहे हैं। तमाम सर्वे भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। बीजेपी के लिए एक उम्मीद की किरण इस बार आंध्र प्रदेश से निकल रही है जहां पर उसने चंद्रबाबू नायडू की पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है। इसके अलावा कर्नाटक में जेडीएस से हाथ मिलाकर वो सभी सीटों पर मजबूत दावेदारी पेश कर रही है।

लेकिन तमिलनाडु में इंडिया की तरफ से डीएमके, केरल में अपने दम पर यूडीएफ और तेलंगाना में कांग्रेस काफी मजबूत दिखाई दे रही है। ऐसे में यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें इंडिया गठबंधन अपनी झोली में कर सकती है।

बिहार-बंगाल में कैसा खेल?

अब अगर बिहार का रुख किया जाए तो वहां पर नीतीश कुमार की वजह से जमीन पर स्थिति काफी हद तक बदली है। यहां पर पहले इंडिया गठबंधन ज्यादा मजबूत बताया जा रहा था, लेकिन जब नीतीश के एनडीए के साथ आने से फिर कुर्मी, कुशवाहा और अति पिछड़ा वोट एनडीए के साथ जा सकता है। दूसरी तरफ महागठबंधन मुस्लिम और यादव वोटों पर ज्यादा निर्भर है। यहां की 40 सीटों पर लड़ाई तो दिलचस्प रहने वाली है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि जब दो बड़े दल बिहार में साथ मिलते हैं, नतीजे भी उनके पक्ष में रहते हैं।

पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां पर इंडिया गठबंधन में बिखराव हुआ है। पहले माना जा रहा था कि कांग्रेस भी टीएमसी के साथ आएगी, लेकिन ममता ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए। ऐसे में एक बार फिर मुकाबला मुख्य रूप से टीएमसी बनाम बीजेपी का रहने वाला है, इसके ऊपर लेफ्ट भी कांग्रेस के साथ जाएगी, इस पर सस्पेंस है। ऐसे में वोटों का बिखराव एक बड़ा फैक्टर बन सकता है। इसके ऊपर सीएए लागू होने से मतुआ समुदाय भी बीजेपी के पक्ष में माहौल बना सकता है। ऐसे में काटे की टक्कर यहां देखने को मिलेगी।