देश में लोकसभा चुनाव नजदीक है और एक बार फिर सत्ता का रास्ता सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से होकर गुजरने वाला है। यूपी की नगीना सीट भी हर मायने में दिलचस्प समीकरण दिखती है। कहने को नगीना सीट अस्तित्व में कुछ साल पहले ही आई है, लेकिन यहां पर किसी भी एक पार्टी का दबदबा नहीं दिखता है। समझने वाली बात ये है कि नगीना एक रिजर्व सीट है यानी कि अनुसूचित जाति के लिए इसे आरक्षित रखा गया है। परिसीमन के बाद साल 2009 में ये सीट अस्तित्व में आई थी, इससे पहले तक बिजनौर लोकसभा सीट के अंदर ही नगीना शामिल थी।
पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजे की बात करें तो सपा और बसपा के बीच में गठबंधन था, ऐसे में संयुक्त उम्मीदवार और बीएसपी के नेता गिरीश चंद्र ने नगीना सीट से बड़ी जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में बीजेपी ने यशवंत सिंह को उतारा था लेकिन उन्हें एक लाख से भी बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। बड़ी बात ये है कि अभी तक नगीना में कुल तीन चुनाव हो चुके हैं, लेकिन किसी भी एक दल को लगातार जीत नहीं मिली।
अगर 2009 के चुनाव में सपा की टिकट से यशवीर सिंह ने यहां से जीत दर्ज की तो 2014 के चुनाव में बीजेपी के यशवंत सिंह ने सपा के यशवीर सिंह को हराने का काम किया था। लेकिन फिर 2019 के चुनाव में गठबंधन पॉलिटिक्स का जमीन पर असर दिखा और सीट बीजेपी के हाथों से छिटक गई।
नगीना सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर 70 फ़ीसदी से भी ज्यादा मुसलमान हैं और मात्र 30 फीसदी के करीब हिंदू हैं। वैसे तो इस सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया है, लेकिन पिछले तीन चुनाव से लगातार मुस्लिम आबादी यहां पर निर्णायक साबित हुई है। 21% के करीब नगीना में एससी वोटर भी हैं।