कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने अप्रत्याशित जीत दर्ज नहीं की है, बल्कि ऐसा विजय तिलक हुआ है जिसमें पार्टी को सभी समुदाय, सभी धर्म का पूरा समर्थन मिला है। 2014 के बाद से कहा जाता रहा है कि बीजेपी को कई चुनावों में जाति से ऊपर उठकर भी वोट किया गया है, यानी कि उसका एक ऐसा लाभार्थी वोटबैंक तैयार हो गया है जो पार्टी को लगातार वोट करता रहता है। अब कर्नाटक चुनाव में भी ऐसा ही पैटर्न देखने को मिला है जहां पर कांग्रेस को जातियों से इतर भी कई लोगों का वोट मिला है। बड़ी बात ये है कि जो कभी किसी दूसरे दलों के परंपरागत गढ़ माने जाते थे, उन इलाकों में भी कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया है।
जेडीएस के गढ़ में कांग्रेस की क्रांति
कांग्रेस की इस बंपर जीत की कहानी में सबसे बड़ी हाईलाइट ओल्ड मैसूर के नतीजे रहे हैं। ये वहीं इलाका है जिसे जेडीएस का गढ़ माना जाता है, पिछले कई चुनावों से जेडीएस जो किंगमेकर बनती थी, उसे इसी इलाके से ज्यादातर सीटें मिलती थीं। लेकिन इस बार यहां पर पूरी तरह कहानी पलट चुकी है। कांग्रेस की सीटों का आंकड़ा जो 140 के करीब तक पहुंच रहा है, उसका बड़ा कारण ये है कि उसे इस बार ओल्ड मैसूर में जबरदस्त फायदा पहुंचा है। अभी तक के जो आंकड़े आए हैं, उसके मुताबिक ओल्ड मैसूर की 49 सीटों में से 30 पर कांग्रेस लीड कर रही है, वहीं जेडीएस सिर्फ 14 सीटों पर सिमट कर रह गई है। वहीं बीजेपी के खाते में पांच सीटे गई हैं।
अब पिछले विधानसभा चुनाव में ओल्ड मैसूर की सियासी तस्वीर बिल्कुल भी ऐसी नहीं थी। तब हमेशा की तरह उस इलाके में जेडीएस का दबदबा था, उसके खाते में 25 सीटें गई थीं। तब कांग्रेस ने सिर्फ 16 सीटें जीती थीं यानी कि इस बार से 14 कम। वहीं बीजेपी को भी पिछली बार 9 सीटें मिली थीं, ऐसे में इस बार उसे चार सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है।
मुस्लिम समाज का कांग्रेस को एकतरफा वोट
अब इस ओल्ड मैसूर रीजन की सियासत को समझना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि तभी कांग्रेस की इस इलाके में मिली अप्रत्याशित जीत को भी समझा जा सकता है। असल में ओल्ड मैसूर में वोक्लिंगा और मुस्लिम समाज की सबसे ज्यादा तादाद है। पिछले चुनावों का वोटिंग पैटर्न बताता है कि इस इलाके में एक तरफ वोक्लिंगा वोट जेडीएस को जाता है, तो वहीं मुस्लिम वोट हमेशा से ही कांग्रेस और जेडीएस दोनों में बंट जाता है। इसी वजह से इस इलाके में इतने सालों तक जेडीएस का एकतरफा राज देखा गया है।
बजरंग बलि का साथ कांग्रेस को, बीजेपी का ध्रुवीकरण फेल
लेकिन अब स्थिति बदल गई है, नतीजे बताते हैं कि इस बार मुस्लिम वोट ने एकतरफा होकर कांग्रेस को वोट दिया है। वहीं वोक्लिंगा समाज का भी उसे यहां अच्छा खासा समर्थन मिला है, उसी वजह से पार्टी को 14 सीटों की ये जंप मिली है। पूरे कर्नाटक की बात भी करें तो वहां कम से कम 9 सीटों का ट्रेंड बताता है कि 8 पर कांग्रेस अच्छी बढ़त के साथ लीड कर रही है, यानी कि मुस्लिम वोट कांग्रेस को काफी मिला है। इसका कारण भी है- Reverse Consolidation। असल में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंल दल जैसे संगठनों पर बैन लगाने की बात कही थी। बीजेपी ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा समझा और बजरंग दल को बजरंग बलि से जोड़ दिया। यानि कि कांग्रेस पर भगवान हनुमान के अपमान का आरोप लगा दिया गया।
लिंगायत वोट में कांग्रेस की सेंधमारी
अब बीजेपी को उम्मीद थी कि चुनाव में ये मुद्दा उठा हिंदुओं को एकमुश्त किया जा सकेगा। लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि इसका उल्टा हुआ है, इस एक फैसले की वजह से मुस्लिमों का एकतरफा वोट कांग्रेस की तरफ गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में 78 फीसदी मुस्लिमों ने कांग्रेस को वोट किया था, इस बार ये आंकड़ा उससे भी ज्यादा हो गया है। अब कांग्रेस को इस चुनाव में मुस्लिमों का तो समर्थन मिला ही है, उसने लिंगायत वोटबैंक में भी सेंधमारी की है। कर्नाटक में 16 फीसदी के करीब लिंगायत वोट है और पिछले कई चुनावों से ये एकमुश्त तरीके से बीजेपी के साथ जा रहा है।
बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस हुई मजबूत
लेकिन इस बार कहानी में बड़ा उलटफेर हुआ है। राज्य की करीब 78 लिंगायत बहुल सीटों में से 50 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस आगे चल रही है। ये आंकड़ा ही बताने के लिए काफी है कि बीजेपी का आरक्षण वाला दांव भी फेल हुआ है और येदियुरप्पा का चुनाव ना लड़ना भी कांग्रेस को ही डायरेक्ट फायदा देकर गया है। यानी कि जेडीएस के गढ़ में की गई क्रांति, बजरंग दल से हुआ मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण और बीजेपी के परंपरागत लिंगायत वोटबैंक में सेंधमारी ने ही कांग्रेस की इस प्रचंड बहुमत की सियासी स्क्रिप्ट लिखी है। इस बार ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने सिर्फ अपने गढ़ में अच्छा परफॉर्म किया हो, उसने बीजेपी के गढ़ में भी जीत का परचम लहराया है। बॉम्बे कर्नाटक और तटीय कर्नाटक में इस बार पार्टी ने अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज करवाई है। इसी वजह से कांग्रेस की झोली में ये बड़ी जीत भी गई है जिसकी गूंज अब कई राज्यों तक सुनाई देने वाली है।