कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की अप्रत्याशित जीत ने सिर्फ पार्टी को एक सियासी बूस्टर डोज देने का काम नहीं किया है, इस चुनाव ने कई दूसरे चीजों को साबित भी कर दिया है। असल में ये चुनाव जितना कांग्रेस पार्टी के लिए जरूरी बताया जा रहा था, उतना ही जरूरी ये अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए रहा। असल में पिछले साल 26 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए थे। दो दशक बाद ऐसा मौका आया था जब किसी गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को ये पद दिया गया हो। लेकिन तब जानकार मानकर चल रहे थे कि खड़गे ‘रिमोट कंट्रोल’ अध्यक्ष होंगे और असली पावर गांधी परिवार के पास ही रहने वाली है।
कांग्रेस के एक्स फैक्टर निकले खड़गे
अब कर्नाटक चुनाव के जो नतीजे आए हैं, उन्होंने उन जानकरों को आत्ममंथन करने के लिए एक और मौका दे दिया है। कांग्रेस की इस प्रचंड जीत ने साबित कर दिया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ही कर्नाटक में कांग्रेस के लिए वो एक्स फैक्टर साबित हुए जिस वजह से पार्टी को निर्णायक बढ़त मिली और उसने आसानी से बहुमत का आंकड़ा हासिल कर लिया। इस चुनाव में कांग्रेस की झोली में 135 सीटें गई हैं, वहीं बीजेपी के रथ को 65 सीटों पर रोक दिया गया और जेडीएस 19 सीटों पर सिमट कर रह गई।
दलितों का पूरा समर्थन, खेल तो खड़गे ने ही किया
इस जीत में मल्लिकार्जुन खड़गे की निर्णायक भूमिका इसलिए मानी जा रही है क्योंकि इस चुनाव में कांग्रेस को दलित वोटरों का खुलकर साथ मिला है। पिछले कुछ सालों में ये देखा गया है कि समुदाय बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ है। पीएम मोदी की कई योजनाओं ने 2014 के बाद से इस वोटर को बीजेपी के पाले में लाकर खड़ा कर दिया है। कई चुनावों में यहीं ट्रेंड देखने को भी मिल रहा था, पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी दलितों का अच्छा खासा वोट बीजेपी के पास गया था। लेकिन इस बार तस्वीर बदल गई है, कर्नाटक की जो आरक्षित सीटें हैं, वहां पर कांग्रेस का प्रदर्शन बीजेपी के मुकाबले काफी बेहतर रहा है।
जितनी रैलियां, कांग्रेस की उतनी सीटें
कर्नाटक में 36 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व्ड हैं, यहां पर इस बार कांग्रेस ने 21 सीटें जीती हैं और बीजेपी को सिर्फ 12 सीटों पर रोक दिया है। इसी तरह अनुसूचित जनजाति की कर्नाटक में 15 सीटें आरक्षित हैं, आंकड़े बताते हैं कि यहां पर पूरी तरह कांग्रेस का दबदबा रहा है। उसने 14 सीटें अपने नाम की हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इन्हीं 36 सीटें आरक्षित सीटों पर बीजेपी का बोलबाला था। उसने 17 सीटें जीत ली थीं, वहीं तब कांग्रेस सिर्फ 12 सीटें जीत पाई थी, यानी इस बार गेम पूरी तरह पलट गया है।
हैदाराबाद कर्नाटक में दलित वोट सबसे ज्यादा निर्णायक है, यहां की 31 सीटों में से कांग्रेस ने 16 पर जीत दर्ज की है, वहीं बीजेपी का आंकड़ा 10 पर रुक गया है। इसी तरह मुंबई कर्नाटक जो बीजेपी का गढ़ माना जा सकता है, वहां पर 50 सीटों में से कांग्रेस ने इस बार 31 सीटें अपनी झोली में डाली हैं और बीजेपी को सिर्फ 17 सीटें मिली हैं। ये अपने आप में बताने के लिए काफी है कि दलित बहुल इलाकों में इस बार कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बीजेपी से काफी बेहतर रहा है।
अनुभव का ऐसा कमाल, अंदरूनी लड़ाई करवाई शांत
अब इस बेहतर स्ट्राइक रेट का श्रेय मल्लिकार्जुन खड़गे को इसलिए दिया जा सकता है क्योंकि उन्होंने राज्य में कुल 39 रैलियां की थी। वहां भी रणनीति के तहत दलित बहुल इलाकों में उनकी सभाएं ज्यादा देखने को मिलीं। अब पार्टी को इसका पूरा फायदा मिला है। वैसे कर्नाटक में कांग्रेस के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे सिर्फ एक बड़ा दलित चेहरा नहीं हैं। उनके पास इस राज्य में इतने सालों का एक ऐसा अनुभव है, जो इस बार पार्टी के बहुत काम आया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि कांग्रेस को अंदरूनी लड़ाई की वजह से पंजाब में सत्ता गंवानी पड़ी थी, इसी तरह गुजरात में भी उसका हाल बुरा हो गया था। लेकिन कर्नाटक में डीके बनाम सिद्धारमैया की जंग को खड़गे ने अपने अनुभव से ठंडा कर दिया, उसी का नतीजा है कि इस चुनाव में कांग्रेस को सिद्धारमैया और डीके के सियासी डबल इंजन का पूरा फायदा मिल गया है। लेकिन असल किंग तो इस वजह से मल्लिकार्जुन खड़गे ही बन गए हैं।