कर्नाटक चुनाव में इस बार बीजेपी के सामने एक नहीं कई चुनौतिया हैं। एक तरफ वो सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ 38 साल पुरानी एक परंपरा भी उसकी चिंता बढ़ा रही है। पिछले 38 सालों से लगातार राज्य में सत्ता परिवर्तन हो रहा है। कोई भी पार्टी सत्ता में वापस नहीं लौट पाती है। अब इन्हीं सब चुनौतियों के बीच बीजेपी अपने सियासी समीकरण साधने का काम कर रही है। एक तरफ येदियुरप्पा को आगे कर फिर लिंगायत समुदाय को एकमुश्त अपने पास लाने की कोशिश है तो दूसरी तरफ पीएम मोदी की लोकप्रियता को भी भुनाने का प्रयास है। अब कर्नाटक में बीजेपी की क्या चुनौतियां हैं, उसकी क्या कमजोरी है, उसके लिए क्या बड़े खतरे हैं, सब का जवाब SWOT Analysis है।

Strengths

कर्नाटक में बीजेपी ने बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री जरूर बना दिया है, लेकिन उनका सबसे बड़ा चेहरा अभी भी बीएस येदियुरप्पा ही है। कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी के लिए येदियुरप्पा ही सबकुछ हैं।पहली बार जब 2008 में बीजेपी ने कर्नाटक में सरकार बनाई थी, तब भी येदियुरप्पा के सिर ही जीत का सेहरा बंधा था। अब सियासी तौर पर येदियुरप्पा इसलिए मजबूत हैं क्योंकि एक तो वे लिंगायत समाज से आते हैं जिसकी राज्य में कुल आबादी 17 फीसदी के करीब है, तो वहीं दूसरी तरफ स्थानीय मुद्दों को लेकर उनकी जबरदस्त पकड़ है। ऐसे में चुनावी संन्यास के बावजूद भी बीजेपी ने अपने प्रचार की कमान येदियुरप्पा को ही सौंप रखी है। उन्हीं को आगे कर जनता से फिर वोट मांगे जा रहे हैं। बड़ी बात ये है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की 28 में से 25 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी, तब दक्षिण कर्नाटक में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा था, वो क्षेत्र जो जेडीएस का गढ़ माना जाता है।ऐसे में पार्टी इस बार विधानसभा चुनाव में भी उस प्रदर्शन को दोहराना चाहती है।

चुनाव कोई भी हो, बीजेपी के लिए मोदी फैक्टर जरूरी रहता है। हारी हुई बाजी को भी जीत में पीएम मोदी की लोकप्रियता ने तब्दील करके दिखाया है। ऐसे में बीजेपी को चुनावी मौसम में जिस एक्स फैक्टर की जरूरत रहती है, वो पीएम मोदी लाकर देते हैं। इस साल भी चार महीने के अंदर ही पीएम मोदी आठ बार राज्य का दौरा कर चुके हैं, ऐसे में वे पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुके हैं और बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अब बीजेपी के पास एक तरफ येदियुरप्पा और पीएम मोदी जैसे बड़े चेहरे हैं, तो दूसरी तरफ जमीन पर उसका संगठन भी काफी मजबूत माना जाता है। हर बूथ पर पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रखी है और कार्यकर्ताओं के साथ लगातार संवाद स्थापित किया जाता है। ऐसे में संसाधनों के मामले में बीजेपी दूसरी पार्टियों से काफी आगे दिखाई देती है। उसको कर्नाटक में संघ के संगठन का भी पूरा सहयोग मिलता है, ऐसे में प्रचार से लेकर दूसरे मामलों में वो प्रभावशाली बन जाती है।

जातियों के लिहाज से बात करें तो बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में दलित वोट भी अच्छा खासा मिला था। पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अपनी राजनीति को इस कदर बदला है, उसने अपनी योजनाओं को इस तरह से लागू किया है कि जमीन पर इसका सीधा फायदा पिछड़े समाज को पहुंचा है। कर्नाटक में 19।5 फीसदी दलित हैं और उनके लिए 36 सीटें रिजर्व रहती हैं। पिछले चुनाव में इन 36 सीटों में से बीजेपी के खाते में 17 सीटें गई थीं। अब एक बार फिर बीजेपी लिंगायत के साथ इस समुदाय को अपने पाले में लाना चाहती है। पार्टी परंपरागत रूप से उत्तर कर्नाटक और मुंबई कर्नाटक में मजबूत है, ऐसे में वहां पर अपने प्रदर्शन को बेहतर करने की वो कोशिश करेगी। वैसे इस बार कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को ध्रुवीकरण का फायदा भी हो सकता है। असल में जब से राज्य में मुस्लिमों का चार फीसदी आरक्षण खत्म कर दो- दो प्रतिशत लिंगायत और वोकलिंगा को देने की बात कही गई है, जानकार इसे बड़ा चुनावी दांव मानते हैं। बीजेपी ने एक फैसले के जरिए सीधे-सीधे दो सबसे निर्णायक समुदायों को एक साथ साधने का काम किया है।

Weaknesses

कर्नाटक में बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत बीएस येदियुरप्पा रहे हैं और उन्हीं की तरफ से चुनावी संन्यास का ऐलान किया जा चुका है, यानी कि वे चुनाव नहीं लड़ने वाले हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी को अपने परंपरागत वोटबैंक को एकमुश्त रखने में चुनौती हो सकती है। पार्टी को एक और झटका जगदीश शेट्टार की वजह से भी लग चुका है। वे भी लिंगायत समाज से आते हैं और इस समय कांग्रेस के पाले में चले गए हैं। ऐसे में 17 फीसदी वाला ये समुदाय बीजेपी की टेंशन बढ़ा सकत है। इस बार बीजेपी की एक कमजोर कड़ी उसका सीएम चेहरा है। अभी के लिए तो मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई चल रहे हैं, लेकिन पार्टी ने चुनाव के लिए कोई सीएम फेस घोषित नहीं किया है। इससे पहले तक येदियुरप्पा पार्टी के लिए इस कमी को पूरा कर दिया करते थे, लेकिन अब बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है।

कर्नाटक में बीजेपी की एक कमजोरी उसकी सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं। 40% कमीशन वाली सरकार के आरोप उस पर लगातार लग रहे हैं, कोई रैली नहीं जहां कांग्रेस ने जनता के बीच ये ना बताया हो। केएस ईश्वरप्पा के इस्तीफे के बावजूद भी पार्टी खुद से ये दाग नहीं मिटा पा रही है। अब एक तरफ भ्रष्टाचार का मुद्दा पार्टी की चिंता बढ़ा रहा है, प्रत्याशियों के ऐलान के बाद जिस तरह से पार्टी के अंदर ही बगावत के सुर तेज हुए हैं, वो भी परेशानी का सबब है। पूर्व डिप्टी सीएम रहे लक्ष्मण सावदी ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया, जब उन्हें अथानी से टिकट नहीं दिया गया, उन्होंने तीखे तेवर दिखाते हुए पार्टी ही छोड़ दी। इसी तरह एमपी कुमारस्वामी, नेहरू ओलेकर और गोलीहट्टी शेखर जैसे विधायकों ने भी टिकट ना मिलने की नाराजगी पार्टी छोड़ दिखाई।

वैसे बीजेपी ने मुस्लिमों का जो चार फीसदी आरक्षण लिंगायत और वोकलिंगा समाज में बांटा है, उसके कुछ साइड इफेक्ट भी दिख रहे हैं जो पार्टी को चुनाव में नुकसान पहुंचा सकते हैं। असल में कर्नाटक सरकार ने दलित समुदाय को आरक्षण तो दिया, लेकिन उसे आतंरिक रूप से बांटने का काम भी कर दिया, यानी कि शेड्यूल कास्ट के लिए उसने 6 फीसदी आरक्षण रखा, शेड्यूल कास्ट (राइट) के लिए 5.5 प्रतिशत,एससी टचेबल्स के लिए 4.5 फीसदी। अब विवाद इस बात को लेकर है कि बंजारा, गोवी और कोरमा जैसी छोटी जातियां एससी टचेब्लस के अंदर आती हैं जिन्हें पुरानी आरक्षण प्रणाली के तहत 10 फीसदी तक लाभ मिलता था, लेकिन इस फैसले के बाद वो घटकर 4.5 फीसदी रह गया। अब चुनावी मौसम में दलितों के कुछ समुदायों के बीच पनप रहा ये रोष बीजेपी को भारी पड़ सकता है।

Opportunities

कर्नाटक चुनाव में बीजेपी के लिए इस बार कई नए अवसर भी बनते दिख रहे हैं. इस बार पार्टी को किच्चा सुदीप जैसे बड़े साउथ स्टार का समर्थन हासिल हो गया है. सीएम बसवराज बोम्मई के करीबी माने जाने वाले किच्चा बीजेपी के लिए राज्य में प्रचार करने जा रहे हैं. यहां ये समझना जरूरी है कि किच्चा ‘नायक’ जाति से आते हैं जो एक अनुसूचित जनजाति है. चित्रदुर्गा, बेल्लारी और रायचूर जैसे क्षेत्रों में इस समुदाय की अच्छी संख्या है. ओल्ड मैसूर और सेंट्रल कर्नाटक में भी उनका फैन बेस है जो बीजेपी को डायरेक्ट फायदा दे सकता है. पिछले कुछ चुनावों पर नजर डालें तो बीजेपी को डबल इंजन सरकार वाले नेरेटिव का फायदा मिला है. यूपी, गुजरात, उत्तराखंड, त्रिपुरा में हुए चुनाव ये साबित कर चुके हैं कि सत्ता विरोधी लहर को बीजेपी ने डबल इंजन वाले नेरेटिव से कम किया है. अब एक बार फिर कर्नाटक में बीजेपी उसी फॉर्मूले पर चल रही है.

Threat

इस बार कर्नाटक चुनाव के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की तर्ज पर गारंटी का ऐलान किया है. फ्री बिजली से लेकर महिलाओं को 2000 रुपये देने तक जैसे कई वादे कर दिए गए हैं. अभी तक बीजेपी के पास ऐसे लुभावने वादों का तोड़ नहीं आ पाया है, पार्टी का तर्क है कि वो सिर्फ विकास और डबल इंजन सरकार के नारे के साथ आगे बढ़ रही है. लेकिन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने जो वादे किए हैं, वो सीधे-सीधे गरीब और मध्यम वर्ग के लिए हैं, जो जातियों से ऊपर उठकर भी वोट करते हैं. ऐसे में इन्हें अपने पाले में रखना बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है.