कर्नाटक की सियासत में बीजेपी 38 साल पुराने ट्रेंड को तोड़ने की कवायद में लगी है। उस प्रयास में पार्टी इस बार अलग ही रणनीति पर काम कर रही है। अब ऐसी ही एक रणनीति पार्टी राज्य के प्रवासी लोगों के लिए तैयार कर रही है। असल में कर्नाटक में कई प्रवासी रहते हैं, ये गुजरात से लेकर झारखंड तक, कई राज्यों से आए हैं। ये सारे वो लोग हैं जो काम की वजह से कर्नाटक आए हैं,लेकिन उनकी बोली कन्नड नहीं है, यानी कि उत्तर भारत की सियासत से ही उनका सारा कनेक्शन है। अब इस बात को बीजेपी ने समझ लिया है और इस चुनाव में उन्हीं प्रवासी लोगों को लुभाने के लिए एक रणनीति पर काम किया जा रहा है।

बीजेपी की स्पेशल 50 क्या करने वाली है?

बताया जा रहा है कि बीजेपी ने 50 लोगों की एक अलग टीम तैयार कर दी है। ये टीम इन्हीं प्रवासी लोगों के बीच जाएगी और पार्टी का संदेश पहुंचाएगी। अब इस बार ये प्रवासी वोटर इसलिए इतने अहम हो गए हैं क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव तक कई प्रवासी लोग वोट ही नहीं करते थे क्योंकि उनका वोटर आईडी दूसरे राज्यों का था। लेकिन इस बार स्थिति में बदलाव ये हुआ है कि कई प्रवासी लोगों ने भी चुनाव में वोटिंग के लिए खुद को रेजिस्टर करवाया है। ऐसे में बीजेपी इन लोगों को अवसर वाला वोट मान रही है। उसकी नजर में ये समुदाय दक्षिण की राजनीति से इतर उसकी सियासत को ज्यादा पसंद करेगा जहां पर हिंदी पर जोर है, हिंदुत्व पर खेलने का प्लान है।

प्रचार का नया तरीका, कितना कारगर?

इस प्लान में बीजेपी ने अपनी टीम में सभी युवा सांसद और विधायकों को शामिल किया है. लिस्ट में हार्दिक पटेल, एमपी चीफ एमडी शर्मा, सूरत के पार्षद प्रवीण घोघारी, महाराष्ट्र पार्षद विनोद तावड़े को शामिल किया गया है। अब ये सभी लोग कर्नाटक जाएंगे और उन इलाकों में पार्टी के लिए प्रचार करेंगे जहां पर प्रवासी लोगों की संख्या ज्यादा है या निर्णायक है. यहां ये समझना जरूरी है कि कर्नाटक में साउथ बेंगलुरू और महादेवपुर में ऐसे लोगों की संख्या अच्छी-खासी है, ऐसे में इन्हीं इलाकों में बीजेपी की ये स्पेशल 50 जाने वाली है।

संभावित नुकसान की भरपाई करेगा नया वोटर?

वैसे पार्टी एक कॉमन पैटर्न और देख रही है, उसने महसूस किया है कि प्रवासी वोटरों में हिंदी भाषा भी एक अहम कड़ी है. जिस भाषा को लेकर वैसे कर्नाटक की राजनीति में उबाल आता रहता है, लेकिन यहां पर वहीं भाषा पार्टी के लिए नए सियासी रास्ते खोल रही है. इस बात का अहसास पार्टी को भी है कि ऐसे लोगों की वोटों के लिहाज से संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन जहां भी ये ज्यादा सक्रिय हैं, उन्हें अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश है। इसके अलावा कर्नाटक में तमिल और मलयालम भाषी लोग भी हैं, ऐसे में उनके लिए दोनों ही राज्यों से पार्टी कुछ और लीडर्स को लाने की तैयारी है।

अब पार्टी के लिए चुनावी मौसम में ये रणनीति इसलिए मायने हो जाती है क्योंकि इस समय कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ उसे चुनौती दे रही है। वैसे भी जैसी राज्य की सियासत रही है, किसी भी पार्टी के लिए लगातार दो बार सत्ता में आना मुश्किल रहता है। इसके ऊपर क्योंकि बीएस येदियुरप्पा ने खुद चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, लिंगायत समुदाय के बीच में ज्यादा अच्छा मैसेज नहीं गया है। ऐसे में अब किस तरह से नुकसान को कम किया जाए, कैसे वोटों के नए दरवाजे खोले जाएं, इस पर ही पार्टी का सारा फोकस दिख रहा है और प्रवासी वोटरों पर खेला जा रहा ये दांव उसी रणनीति का एक हिस्सा है।