कर्नाटक चुनाव में इस बार बीजेपी के सामने सत्ता वापसी की चुनौती है। पार्टी ने जोर-शोर से प्रचार शुरू कर रखा है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं। लेकिन इस बार कुछ विवाद चुनावी मौसम में पार्टी के लिए गले की फांस बन गए हैं। ये ऐसे विवाद हैं जिसने ना सिर्फ राज्य में बीजेपी की छवि को धूमिल किया है, बल्कि जमीन पर कई समीकरणों को भी बदलने का काम किया है। इसमें आरक्षण मुद्दे के साथ छेड़छाड़ से लेकर भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं।
आरक्षण में बदलाव
देश की सियासत में आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जो किसी भी पार्टी को जीत भी दिलवा सकता है और उसे हार का स्वाद भी चखवा सकता है। बिहार का वो 2015 वाला विधानसभा चुनाव कोई भूला नहीं है, जब बीजेपी को आरक्षण मुद्दे की वजह से ही जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ गया था। अब कर्नाटक में भी ऐसी ही स्थिति बन रही है। असल में बीजेपी ने आरक्षण को लेकर दो बड़े फैसले किए हैं। एक तरफ राज्य की बीजेपी सरकार ने मुस्लिमों के चार फीसदी आरक्षण को दो-दो फीसदी लिंगायत और वोकलिंगा को देने की बात कही है तो वहीं दूसरी तरफ दलितों को दिए गए आरक्षण को चार हिस्सों में बांट दिया गया है। अब मुस्लिम आरक्षण खत्म कर तो पार्टी ध्रुवीकरण वाली सियासत को हवा दे सकती है, लेकिन उसके दलित आरक्षण वाले फैसले ने बंजारा समुदाय को नाराज कर दिया है।
असल में बीजेपी सरकार ने दलितों को मिलने वाले 15 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 17 प्रतिशत कर दिया, यानी कि दो फीसदी का इजाफा किया गया। लेकिन इस दलित आरक्षण को चार हिस्सों में बांट दिया गया, यानी कि शेड्यूल कास्ट के लिए उसने 6 फीसदी आरक्षण रखा, शेड्यूल कास्ट (राइट) के लिए 5.5 प्रतिशत,एससी टचेबल्स के लिए 4.5 फीसदी। अब विवाद इस बात को लेकर है कि बंजारा, गोवी और कोरमा जैसी छोटी जातियां एससी टचेब्लस के अंदर आती हैं जिन्हें पुरानी आरक्षण प्रणाली के तहत 10 फीसदी तक लाभ मिलता था, लेकिन इस फैसले के बाद वो घटकर 4.5 फीसदी रह गया। इसी बात की नाराजगी है और बीजेपी की चुनावी मौसम में टेंशन बढ़ गई है। अब ये टेंशन कर्नाटक की 36 आरक्षित सीटों पर क्या असर डालती है,इस पर सभी की नजर रहेगी।
हिजाब विवाद
पिछले साल तक कर्नाटक की सियासत में हिजाब विवाद पर सबसे ज्यादा बवाल देखने को मिला है। छात्रों का प्रदर्शन, बीजेपी नेताओं के विवादित बयान और कोर्ट में चली कई दिनों तक सुनवाई ने इस मामले को सुर्खियों में रखा। उडूप्पी विधायक रघुपति भट्ट ने तो जिस तरह से पूरे मामले पर बयानबाजी की, उस वजह से पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ी थीं। उनकी तरफ से इस संवेदनशील मामले में NIA जांच की मांग कर दी गई थी। इसके अलावा उन्होंने एक बयान में यहां तक कहा था कि विरोध कर रहीं लड़कियां टुकड़े टुकड़े गैंग की कठपुतली बन गई हैं। एक और बयान में उन्होंने बड़ा दावा करते हुए कहा था कि इस विवाद पर चुप रहने के लिए उन पर विदेशी ताकतों की तरफ से दबाव डाला जा रहा है, उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है। अब जो भी विवाद रहा, लेकिन बीजेपी को इससे ज्यादा फायदा नहीं पहुंचा है। मुस्लिम आरक्षण के जरिए जरूर ध्रुवीकरण का बड़ा दांव चला गया है, लेकिन हिजाब विवाद से पार्टी को वो माइलेज नहीं मिला है। इसी वजह से बीजेपी ने अपने Uduupi विधायक रघुपति भट्ट का टिकट काट दिया है।
भ्रष्टाचार पर बड़ा बवाल
2014 के बाद से बीजेपी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर काफी आक्रमक बैटिंग की है।पीएम मोदी ने एक नारा दिया था- ना खाउंगा और ना खाने दूंगा। इसी नेटेरिव को हर चुनाव में बीजेपी ने भुनाया है और उसे फायदा भी पहुंचा है। लेकिन इस बार कर्नाटक में स्थिति उलट दिख रही है। बीजेपी खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। कांग्रेस ने उस पर 40% कमीशन वाली सरकार चलाने का आरोप लगा दिया है। हर चुनावी रैली में कांग्रेस का हर बड़ा नेता इस मुद्दे को उठा रहा है। इस वजह से भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी डिफेंसिव हो गई है और कांग्रेस ड्राइविंग सीट पर बैठ नेरेटिव सेट कर रही है। अब बीजेपी के लिए ये नेरेटिव चुनौती इसलिए बन गया है क्योंकि उन्हीं के पार्टी के एक नेता के एस ईश्वरप्पा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। असल में ईश्वरप्पा पर आरोप लगा है कि उन्होंने सरकारी ठेके में 40 प्रतिशत कमीशन की मांग की थी, ये आरोप भी उन पर उस शख्स ने लगाया जिसने एक होटल रूम में सुसाइड कर लिया।
पुलिस जांच में तो ईश्वरप्पा के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे को इस तरह से उठाया कि बीजेपी नेता को मंत्री पद भी गंवाना पड़ा और इस बार चुनाव में उन्हें टिकट भी नहीं दिया गया है। वैसे राज्य की बीजेपी सरकार पर बालेहोसुर मठ के संत डिंगलेश्वर स्वामी ने भी कमीशन का ही गंभीर आरोप लगा दिया था। दावा हुआ है कि संतों तक अनुदान राशि पहुंचती तो है, लेकिन उसके लिए 30 फीसदी कमीशन देना पड़ता है। अब चुनौती ये है कि बालेहोसुर मठ लिंगायत समुदाय से जुड़ा हुआ है, ऐसे में पार्टी के लिए इस एक आरोप के गंभीर परिणाम निकल सकते हैं।
बसवराज बोम्मई का सीएम बनना
कर्नाटक में बीजेपी के लिए बहुत बड़ी चुनौती खुद बसवराज बोम्मई बन रहे हैं। एक तो येदियुरप्पा वाला अनुभव और करिश्मा मिसिंग है, तो वहीं दूसरी तरफ राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर भी सीएम पर कई सवाल उठ चुके हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्ष जिंगड़े की हत्या और फिर भारतीय जनता युवा मोर्चा के सदस्य प्रवीन नेट्टारू की मौत ने भी बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती खड़ी की है। जानकार मानते हैं कि सीएम इन दोनों ही मामलों को और बेहतर तरीके से हैंडल कर सकते थे। लेकिन क्योंकि ऐसा नहीं हुआ, ऐसे में अब जमीन पर कुछ वर्गों में गुस्सा है। बीजेपी के लिए टेंशन की बात ये भी है कि बसवराज बोम्मई की राज्य में लोकप्रियता ऐसी नही है कि उनके दम पर पार्टी को वोट मिल सके। सीएम जरूर बना दिए गए हैं, लेकिन प्रचार एक बार फिर येदियुरप्पा से करवाया जा रहा है, केंद्र में उन्हें ही रखा जा रहा है।
टिकट वितरण के बाद बगावत
कर्नाटक में बीजेपी के लिए इस बार हिमाचल प्रदेश वाली स्थिति भी बन रही है।जिस तरह से टिकट वितरण के बाद पार्टी के अंदर एक अंदरूनी लड़ाई शुरू हुई है, उससे पार पाना पार्टी के लिए मुश्किल हो रहा है।जिन्हें टिकट नहीं मिला, उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी है। जगदीश शेट्टार, लक्ष्मण सावड़ी तो इस लिस्ट में सबसे बड़ा नाम हैं। कई और छोटे नेताओं ने भी बगावती तेवर दिखा दिए हैं, यानी कि बीजेपी के अंदर ही इतने झगड़े शुरू हो गए हैं कि उन्हें संभालना पार्टी के लिए चुनौती बन गया है। जगदीश शेट्टार तो लिंगायत समुदाय से आते हैं, ऐसे में उनका छोड़ना तो बीजेपी को और ज्यादा टेंशन में डाल गया है। जब राज्य में इस बार येदियुरप्पा ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है, उस स्थिति में जगदीश शेट्टार एक बड़ा चेहरा साबित हो सकते थे।